ललित शर्मा

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सूर्योपासना और छठी मैया की आराधना का पावन पर्व : चैती छठ

चैती छठ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और प्रकृति के प्रति सम्मान का पर्व है। इसकी पौराणिक कथाएँ बताती हैं कि यह व्रत सूर्य देव और छठी मैया की कृपा पाने का एक माध्यम है, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।

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भारतीय नव वर्ष का धार्मिक सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक महत्व

भारत में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का प्रारंभ माना जाता है। चैत्र मास सामान्यतः मार्च-अप्रैल के महीने में आता है, और इस समय देश के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से मनाया जाता है

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futuredविश्व वार्ता

बिन पानी सब सून : विश्व जल दिवस

भारत की पारंपरिक जल संरक्षण विधियाँ एक ऐसी विरासत हैं, जो समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं। ये न केवल जल संकट का समाधान प्रस्तुत करती हैं, बल्कि टिकाऊ विकास के सिद्धांतों को भी मजबूत करती हैं। आज जब देश भूजल की कमी, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से जूझ रहा है, इन प्राचीन तकनीकों को पुन; अपनाने का एक सुनहरा अवसर है।

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futuredधर्म-अध्यात्म

माता शीतला की उपासना और पौराणिक मान्यताएँ

शीतला सप्तमी एक महत्वपूर्ण भारतीय पर्व है जो माता शीतला को समर्पित होता है। यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत राजस्थान गुजरात और मध्य प्रदेश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा कर रोगों से मुक्ति और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।

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futuredमेरा गाँव मेरा बचपन

वनों का महत्व और संरक्षण की आवश्यकता : विश्व वानिकी दिवस

छत्तीसगढ़ में स्थित वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान अनेक दुर्लभ और संकटग्रस्त जीवों के लिए प्राकृतिक आवास प्रदान करते हैं। इसके अलावा, यहाँ की नदियों और आर्द्रभूमियाँ (वेटलैंड्स) जल संसाधनों को संरक्षित करने और जैव विविधता को बनाए रखने में सहायक हैं।

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futuredसमाज

गौरैया के लुप्त होने से जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव

गौरैया की घटती संख्या के पीछे कई मानवीय और पर्यावरणीय कारण हैं। आधुनिक जीवनशैली और तकनीकी विकास ने इसके प्राकृतिक वास को नष्ट कर दिया है। शहरों में बड़ी संख्या में बहुमंजिला इमारतों का निर्माण हुआ, जिससे गौरैया के घोंसले बनाने के लिए उपयुक्त स्थान कम होते गए। पहले मकानों की दीवारों में बनी दरारों और छप्परों के कोनों में यह आसानी से घोंसले बना लेती थी, लेकिन आधुनिक कंक्रीट के घरों में इसकी यह सुविधा समाप्त हो गई।

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