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शक्ति, संरक्षण और संस्कृति का प्रतीक : रक्षा सूत्र

भविष्य पुराण में बताया गया है कि रक्षा कवच बांधने की प्रथा की शुरूवात महाराज इंद्र की पत्नी शचि ने किया था। जब देव और दानवों के बीच युद्ध चल रहा था तब इंद्राणी ने अपने पति की विजय कामना के लिए उसके दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र और चांवल-सरसों को बांधकर उनकी सुरक्षा और विजय की कामना की थी जिससे वे असुरों पर विजय प्राप्त कर सके थे।

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प्राचीन छत्तीसगढ़ के रचयिता प्यारेलाल गुप्त की साहित्य साधना

रविशकर वि”वविद्यालय रायपुर से सन् 1973 में प्रकाशित इस ग्रंथ में प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक युग के पूर्व तक का श्रृंखलाबद्ध इतिहास है। इस ग्रंथ में न केवल प्राचीन छत्तीसगढ़ का इतिहास बल्कि सांस्कृतिक परम्पराओं, लोक कथाओं, पुरातत्व और साहित्य का उल्लेख है। इस ग्रंथ को ‘छत्तीसगढ़ का इनसाइक्लोपीडिया‘ माना जा सकता है। उन्होंने छत्तीसगढ़ की पदयात्रा करके इस ग्रंथ के लिए सामग्री जुटायी थी।

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ममता, दया और करुणा की प्रतिमूर्ति मिनीमाता : पुण्य स्मरण

छत्तीसगढ़ में अनेक महान लोगों ने जन्म लेकर ऐसे सद्कार्य किया जिसके कारण आज भी उन्हें श्रद्धा से स्मरण किया

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कुलदेव महेश्वरनाथ महादेव : माखन साव के वंशधर

छत्तीसगढ़ के अधिकांश शिव मंदिर सृजन और कल्याण के प्रतीक स्वरूप निर्मित हुए हैं। लिंग रहस्य और लिंगोपासना के बारे

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छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में बरखा ॠतु

छत्तीसगढ़ का अधिकांश भूभाग मैदानी है इसलिए यहां के जन जीवन में वर्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि यहां का

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छत्तीसगढ़ के लोक साहित्य को समेटने वाले पंडित अमृतलाल दुबे

मध्य प्रदेश आदिम जाति कल्याण विभाग में क्षेत्र संयोजक के पद पर नियुक्त होकर कार्य आरंभ करने वाले दुबे जी जंगलों और पहाड़ों की तराई में रहने वाले आदिम जातियों के वाचिक लोक साहित्य को केवल पढ़ा ही नहीं बल्कि उसका दुर्लभ संग्रह भी किया

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