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भारत की स्वतंत्रता में भाई परमानंद का योगदान और बलिदान

1902  में भाई परमानन्द ने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की और लाहौर के दयानन्द एंग्लो महाविद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गये। भारत की प्राचीन संस्कृति तथा वैदिक धर्म में आपकी रुचि देखकर महात्मा हंसराज ने आपको भारतीय संस्कृति का प्रचार करने के लिए अक्टूबर 1905 में अफ्रीका भेजा। डर्बन में भाईजी की गांधीजी से भेंट हुई।

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