दूसरों को दोष मत दो : स्वामी विवेकानन्द
‘एक मंदिर के सामने एक सन्यासी रहता था और उसी के पास वाले घर में एक वेश्या भी रहती थी । सन्यासी रोजाना उस वेश्या पर चिल्लाता, उसकी निन्दा करता। उधर वेश्या अपने दुष्कर्म का पश्चाताप करते हुए सदैव ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहती।
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