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वीरांगना रानी दुर्गावती की 500वीं जयंती मनाई गई

श्री टेकाम ने इस दौरान जनजातीय समाज को भारत के संविधान को मिली सहूलियतों और संरक्षण के साथ विकास के लिए किए गए प्रावधानों को भी लोंगो को बताया। इस दौरान वीरांगना रानी दुर्गावती की 500वीं जयंती भी मनाई गई और रानी दुर्गावती के अपने गोंडवाना प्रदेश की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए बलिदान हो जाने के वृत्तंात पर भी प्रकाश डाला गया है।

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पोर्ट ब्लेयर का नाम अब ‘श्री विजयपुरम’

केंद्र सरकार ने अंडमान और निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर ‘श्री विजयपुरम’ कर दिया है। गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर जानकारी दी कि यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुलामी के प्रतीकों से मुक्ति के संकल्प के तहत उठाया गया है।

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भारतीय संस्कृति और धर्म में गणेश जी का स्थान एवं महत्व

विघ्ननाशक और सिद्धि विनायक गणेश या गणपति की विनायक के रूप में पूजन की परंपरा प्राचीन है किंतु पार्वती अथवा गौरीनंदन गणेश का पूजन बाद में प्रारंभ हुआ। ब्राह्मण धर्म के पांच प्रमुख सम्प्रदायों में गणेश जी के उपासकों का एक स्वतंत्र गणपत्य सम्प्रदाय भी था जिसका विकास पांचवीं से आठवीं शताब्दी के बीच हुआ।

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अंग्रेजियत के विरुद्ध संघर्ष और भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पण: माधवहरि अणे

अणे पर लोकमान्य तिलक जी का प्रभाव उनके समाचारपत्र ‘मराठा’ और ‘केसरी’  के कारण पड़ा।  वे इन पत्रों के नियमित पाठक थे। 1914 में जब तिलक जी जेल से छूटकर आये तो अणे जी उनसे मिलने वालों में शामिल थे। इसी भेंट के बाद उनके तिलक जी से संबंध बने और वे तिलक जी के निकट आ गये।

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एक विस्मृत क्रांतिकारी की कहानी

जीवन यापन के लिये भिक्षावृत्ति तक करनी पड़ी। स्वतंत्रता के बाद किसी ने उनकी खबर नहीं ली। उन्होंने अपना पूरा जीवन स्वाधीनता संघर्ष को अर्पण कर दिया था। उन्होंने सशस्त्र संघर्ष में भी भाग लिया और अहिंसक आंदोलन में भी। किन्तु स्वतंत्रता के बाद उनके सामने अपने जीवन  जीने के लिये ही नहीं रोटी तक का संकट आ गया था। पेट भरने के लिये भिक्षावृत्ति भी की और अंत में  सड़क के किनारे लावारिश अवस्था में अपने प्राण त्यागे।

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भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक अनसुनी वीरगाथा

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सन् 1857 में रानी अवंतीबाई लोधी को प्रथम महिला वीरांगना के रूप में माना जाता है, जिन्होंने स्वदेश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। 20 मार्च 1858 को रानी अवंतीबाई ने अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए।

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