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स्वराज्य के ज्योतिपुंज लहूजी साल्वे

लहूजी के पूर्वज शिवाजी महाराज के समय पुरन्दर किले के रक्षकों में थे। इसीलिए लहू जी के आदर्श छत्रपति शिवाजी महाराज थे। स्वत्व और स्वाभिमान केलिये लहूजी के संघर्ष का उल्लेख आगे चलकर लोकमान्य तिलक जी ने भी किया है।

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अंग्रेजों ने किया था पूरे गाँव में सामूहिक नरसंहार

भारतीय स्वाधीनता संग्राम में वनवासी वीर बलिदानी बुधु भगत ऐसा क्राँतिकारी नाम है जिनका उल्लेख भले इतिहास की पुस्तकों में कम हो पर छोटा नागपुर क्षेत्र के समूचे वनवासी अंचल में लोगो की जुबान पर है। उस अंचल में उन्हें दैवीय शक्ति का प्रतीक माना जाता है। वन्य क्षेत्र के अनेक वनवासी परिवार उन्हें लोक देवता जैसा मानते हैं और उनके स्मरण से अपने शुभ कार्य आरंभ करते हैं।

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वैदिक पुनर्जागरण के अग्रदूत स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्वामी जी भले असमय संसार छोड़ गये पर उनकी शिक्षाएँ, संदेश और संस्था ‘आर्यसमाज’ के माध्यम से वैदिक आन्दोलन भारतीय इतिहास में अमर है।

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वनवासी संघर्ष के नायक : क्रांतिकारी तिलका मांझी

ऐसे ही एक बड़े संघर्ष का विवरण संथाल परगने में मिलता है। जिसके नायक वनवासी तिलका मांझी थे। जिन्हें अंग्रेजों ने चार घोड़ो से बाँध कर जमीन पर घसीटा था। फिर भी वीर विद्रोही तिलका ने समर्पण नहीं किया।

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गीतों की शब्द शक्ति से राष्ट्रभक्ति और स्वाभिमान जगाने वाले कवि

सैनिकों के बलिदान पर उनका गीत “ऐ मेरे वतन के लोगो, जरा आँख में भर लो पानी” की रचना की। जिस भाव से प्रदीप ने इस गीत की रचना की उसी भावना से लता जी ने गाया। इस गीत के बोल आज भी हृदय को छू जाते हैं। यह गीत देश भक्ति के गीतों में अग्रणी माना गया ।

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अकबर के दरबार में धोखे फ़रेब का खेल : बैरम खान की हत्या

सल्तनतकाल और अंग्रेजी काल का इतिहास धोखे और फरेब से भरा है। दिखावटी दोस्ती और मीठी बातों में फँसाकर ही खून की होली खेलने के असंख्य घटनाएँ घटीं हैं। इसी शैली में मुगल सेनापति बैरम खान की हत्या की गई। हत्या के बाद बैरम खान पत्नि सलीमा सुल्तान बादशाह अकबर के हरम में पहुँचा दिया गया।

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