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छत्तीसगढ़ में रंग पंचमी के दिन लट्ठमार होली

छत्तीसगढ़ में रंग पंचमी का त्योहार पारंपरिक उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार होली के पांच दिन बाद आता है और इसमें रंगों की धूम देखने को मिलती है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में इसे एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में मनाया जाता है, तथा इस दिन भी फ़ाग गाने एवं रंग खेलने की परम्परा दिखाई देती है।

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होलिका दहन का वैदिक, पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व

 वैदिक काल में इस पर्व को नवासस्येष्टि यज्ञ कहा गया। उस समय अधपके अन्न को यज्ञ में दान कर प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता था। इस अन्न को होला कहते थे। अतः इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा।

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परंपरा, संस्कृति और सामाजिक समरसता का त्यौहार होली

होलिकोत्सव भारत में ही नहीं भारत की सीमा से बाहर विश्व के अनेक देशों में भी मनाया जाता है। भारत के सभी पड़ौसी देशों नेपाल, बंगलादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, सुरीनाम, मारीशस, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, ट्ररीनाड आदि देशों के साथ अमेरिका, फ्रांस ब्रिटेन जर्मनी आदि देशों में भी प्रवासी भारतीय होलिकोत्सव मनाते हैं। काठमांडू में तो यह उत्सव एक सप्ताह तक चलता है।

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