भारतीय संस्कृति

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार RSS मुख्यालय नागपुर का दौरा करेंगे, 30 मार्च को हो सकती है बैठक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 मार्च को पहली बार नागपुर में RSS मुख्यालय का दौरा करेंगे, जहां वे संघ प्रमुख मोहन भागवत और अन्य नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं। इस दौरे के दौरान, मोदी माधव नेत्रालय के बिल्डिंग विस्तार की नींव भी रखेंगे। यह बैठक भाजपा और RSS के रिश्तों को मजबूत करने के संदर्भ में महत्वपूर्ण मानी जा रही है, खासकर जब भाजपा नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया में है।

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होलिका दहन का वैदिक, पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व

 वैदिक काल में इस पर्व को नवासस्येष्टि यज्ञ कहा गया। उस समय अधपके अन्न को यज्ञ में दान कर प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता था। इस अन्न को होला कहते थे। अतः इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा।

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खेलत अवधपुरी में फाग, रघुवर जनक लली

होली हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। भारतीय संस्कृति का अनूठा संगम उनकी त्योहारों और पर्वो में दिखाई देता है। इन पर्वो में न जात होती है न पात, राजा और रंक सभी एक होकर इन त्योहारों को मनाते हैं। सारी कटुता को भूलकर अनुराग भरे माधुर्य से इसे मनाते हैं। इसीलिए होली को एकता, समन्वय और सदभावना का राष्ट्रीय पर्व कहा जाता है।

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परंपरा, संस्कृति और सामाजिक समरसता का त्यौहार होली

होलिकोत्सव भारत में ही नहीं भारत की सीमा से बाहर विश्व के अनेक देशों में भी मनाया जाता है। भारत के सभी पड़ौसी देशों नेपाल, बंगलादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, सुरीनाम, मारीशस, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, ट्ररीनाड आदि देशों के साथ अमेरिका, फ्रांस ब्रिटेन जर्मनी आदि देशों में भी प्रवासी भारतीय होलिकोत्सव मनाते हैं। काठमांडू में तो यह उत्सव एक सप्ताह तक चलता है।

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भारतवर्ष के अमृतकाल मे वंदे मातरम की प्रासंगिकता

विश्व इतिहास मे नारों का अपना इतिहास रहा हैं, कभी कभी तो एक नारा पूरे आंदोलन को बदल के रख देता हैं। इतिहास मे ऐसे कई उदाहरण हैं, जैसे स्वराज मेरा जन्मसिद्धह अधिकार हैं, गरीबी हटाओ आदि आदि। वर्तमान के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मे भी हमने देखा होगा की कैसे कुछ नारे “एक हैं तो सेफ हैं” या “बटेंगे तो कटेंगे” पूरे चुनाव मे हावी रहा

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सामाजिक समरसता और भारतीय सांस्कृतिक एकता का महोत्सव महाकुंभ

भारत के इतिहास में जहाँ तक दृष्टि जाती है कुंभ के आयोजन का संदर्भ मिलता है। मौर्यकाल में भी और शुंग काल में भी। गुप्तकाल में तो कुंभ का बहुत विस्तार से वर्णन मिलता है। गुप्तकाल के इस विवरण में ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुंभ के आयोजन का उल्लेख है।

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