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अपने – अपने देवधर : एक समग्र आकलन : पुस्तक समीक्षा

बुक्स क्लिनिक द्वारा सद्य: प्रकाशित ग्रंथ ‘अपने -अपने देवधर ‘ हिंदी और छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. देवधर महंत के बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व का तटस्थ भाव से किया गया एक सार्थक मूल्यांकन है। डा.देवधर महंत की रचनाधर्मिता की विस्तृत रूप से पड़ताल करने वाली इस महत्वपूर्ण कृति की प्रस्तुति का श्रेय संपादक बसंत राघव को जाता है। बसंत राघव एक अच्छे लेखक भी हैं जिन्हें लेखन की कला अपने पिता प्रसिद्ध साहित्यकार डा.बलदेव से विरासत में मिली है।

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तलाश ढाई आखर की : सामाजिक सरोकार की कहानियां

बसंती पवार जी एक सजग और संवेदनशील लेखिका हैं, जो जीवन को शब्दों के वातायन से तलाशती हैं, उन्हीं में कुछ खोजे हुए प्रसंगों पर आधारित ये कहानियां आपसे संवाद करने को उत्सुक हैं।अपनी सरल भाषा शैली में मन की गुत्थियों को सुलझाने की प्रक्रिया हैं ये कहानियां।

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स्वर्णमृगी सपनों के पाखी – एक समीक्षा

गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में स्थान पाए इस काव्य संग्रह के लिए डॉ शुभदा पाण्डेय बधाई के पात्र हैं। यह काव्य संग्रह इसलिए अनूठा है कि इसमें विश्व के कोने-कोने के एक सौ ग्यारह पक्षियों के चित्र सहित चित्रात्मक वर्णन और साथ ही अनेक सामाजिक समस्याओं का उल्लेख है।

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व्यवस्था के अंधेरे पक्ष का निर्मम अनावरण है डा. बलदेव की कविता “अंधेरे में”

27 मई डाँ. बलदेव जी की 82 वीं जयंती के अवसर पर  कविता डा. बलदेव की कविता “अंधेरे में” की

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छत्तीसगढ़ के विधान सभा  चुनाव नतीजों पर महाग्रंथ ‘निर्वाचन सार -छत्तीसगढ़’ प्रकाशित

जी. आर. राना द्वारा रचित  लगभग 602  (छह सौ दो) पृष्ठों का महाग्रंथ एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ के रूप में सामने आया है। इस महाग्रंथ में छत्तीसगढ़ के सभी विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों के वर्ष 1952 से लेकर वर्ष 2018 तक के यानी 66 वर्षों के दौरान हुए चुनावों के  रिजल्ट  और उससे संबंधित प्रामाणिक आँकड़े  और रोचक तथा कई प्रामाणिक तथ्य विस्तारपूर्वक संकलित हैं।

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इतिहास के आइने में बेलसंड-सीतामढ़ी

सीतामढ़ी का महत्व रामायण की कथा के अनुसार सही ढंग से समझा जा सकता है। राजा जनक सीतामढ़ी के पुनौरा और उर्विजा कुंड क्षेत्र में अनावृष्टि को रोकने हेतु हल चलाने, कृषि कर्म का उद्घाटन करने आये थे। इसी-के दौरान सीता जी प्राप्त हुई। इसी क्षेत्र में हलेश्वर स्थान मंडल है, जहाँ कृषि कर्म के उपरान्त हल रखा गया था। सीता जी की स्मृति से ही जुड़ा एक स्थान पंथपाकड़ है, जहाँ पर विवाह उपरान्त आयोध्या जाते हुये सीता जी की डोली रखी गयी थी,

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