दूसरों को दोष मत दो : स्वामी विवेकानन्द
श्री रामकृष्ण परमहंस अक्सर एक कहानी सुनाया करते थे- ‘एक मंदिर के सामने एक सन्यासी रहता था और उसी के पास वाले घर में एक वेश्या भी रहती थी । सन्यासी रोजाना उस वेश्या पर चिल्लाता, उसकी निन्दा करता। उधर वेश्या अपने दुष्कर्म का पश्चाताप करते हुए सदैव ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहती। एक दिन वेश्या मर गयी और संयोगवश उसी दिन वह सन्यासी भी मर गया। यमदूत सन्यासी को नर्क में ले गए और विष्णुदूत वेश्या को बैकुण्ठ में ले गए। यह देखकर सन्यासी जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि यह तो अन्याय है, मुझ साधु को नर्क में क्यूं ? तब विष्णुदूतों ने स्पष्ट किया कि यह वेश्या अपनी अधमता के लिए प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक ईश्वर से प्रार्थना करती थी जबकि सन्यासी वेश्या पर दोषारोपण करने में ही सारा दिन गँवा देता था और कभी ईश – प्रार्थना में मन लगाने की चेष्टा भी नहीं करता था । इसलिए ईश्वर का निर्णय सही और न्यायसंगत है।
यही होता है। हम किसी ओर पर दोष लगाने में इतने अधिक लीन हो जाते हैं कि अपने मूल धर्म, मूल आचरण, मूल कर्म और जीवन ध्येय को भी भूल जाते हैं। दूसरों के दोष गिनाना सुखद भी प्रतीत होता है। किसी की बुराई करने या दोष गिनाने के लिए घर में, कार्यालय में, बाजार में हर कहीं फालतू लोगों का झुण्ड जमा हो जाता है, किन्तु कहीं किसी की प्रशंसा करनी हो तो वही भीड़ तुरन्त छँट जाती है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं—“कभी भी दूसरों की कमियों के विषय में बात मत करो, वे कितने भी बुरे हों इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है । तुम किसी के दोष गिनाकर उसकी मदद नहीं कर सकते, तुम उसे चोट ही पहुँचाते हो और साथ ही स्वयं को भी ।” इसलिए कभी भी दूसरों को दोष मत दो।
वास्तव में जब हमारे अन्दर कुछ कमियां होती हैं तो हम उसे छुपाने के लिए या उसे नजरअंदाज करने के लिए भी अक्सर दूसरों पर दोष मढ़ना शुरू कर देते हैं। स्वामीजी कहते हैं- “दूसरों पर दोष मढ़ने का यह प्रयास उन्हें और भी कमजोर बनाता है । इसलिए अपनी गल्तियों के लिए दूसरों को दोष मत दो।” कुछ लोग होते हैं जो स्वयं लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाते हैं तो कटु शब्दों में दूसरों पर दोष लगाकर ही संतोष पाते हैं । दोषारोपण का यह नकारात्मक व्यवहार उन्हें स्वयं की ओर देखने, आत्मनिरीक्षण करने और असफलताओं के प्रति सुधारात्मक कदम बढ़ाने से रोकता है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं—“अपनी गल्तियों के लिए दूसरों को दोष मत दो, अपने पैरों पर खड़े हो जाओ, सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लो।” दूसरों पर दोष मढने के बजाय स्वयं के दोष देखना है । अपने दोष ढूँढने का यह कृत्य नये उत्साह के साथ आगे बढ़ने और ध्येय प्राप्त करने में उनकी मदद करेगा ।
अपनी असफलता के लिए दूसरों को दोष देना यह एक सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है। पति पत्नि पर दोष लगाता है और पत्नि पति पर टीम कप्तान खिलाड़ियों पर खराब प्रदर्शन का दोष लगाता है और खिलाड़ी कप्तान पर नेतृत्व क्षमता की कमी का दोष लगाते हैं। राजनीतिक दल परस्पर दोष मढ़ते ही रहते हैं। अभिभावक अपने बच्चों को और बच्चे अभिभावकों को दोषी ठहराते हैं । शिक्षक विद्यार्थियों को और विद्यार्थी शिक्षक को दोषी बताते हैं ।…… दोषारोपण की इस सूची का कोई अन्त नहीं है। विवेकानन्द कहते हैं—”मैं दृढ़तापूर्वक विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि कोई भी व्यक्ति दूसरों को गाली देने से कभी आगे नहीं बढ़ सकता, वरन् वह प्रशंसा करके उन्नति प्राप्त कर सकता है ।”
-उमेश कुमार चौरसिया
साहित्यकार एवं संस्कृतिकर्मी
बहुत सुंदर👌👌👌