पूर्ण एकाग्रता से लक्ष्य साधो : स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानन्द जब अमरीका में थे, तब की एक रोचक घटना है। एक दिन जब वे नदी किनारे टहल रहे थे, उन्होंने देखा कि कुछ युवक नदी में डूबते-उभरते अण्डों के छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगा रहे थे। वे सभी बारी-बारी से प्रयास करते किन्तु कोई भी लक्ष्य को भेद नहीं पा रहा था। यह देख स्वामी विवेकानन्द को हँसी आ गई। एक युवक ने उन्हें इस तरह हँसते हुए देख लिया तो वह चुनौति देते हुए बोला – “यह काम जितना आसान दिख रहा है, उतना है नहीं श्रीमान्। जरा हम भी तो देखें आप इसे कैसे करते हैं।”
स्वामी विवेकानन्द ने बिना कुछ कहे उस युवक के हाथ से बन्दूक ली और एक के बाद एक लगातार बारह छिलके पर सटीक निशाना लगाया। सारे युवक आश्चर्यचकित हो सोचने लगे कि स्वामी निश्चित ही वे कोई बड़े निशानेबाज हैं। स्वामी जी उनकी मनःस्थिति भाँपकर बोले – ” मैंने अपने जीवन में कभी भी गोली नहीं चलाई है बन्धु । आज ये जो निशाना ठीक लगा है उसकी सफलता का रहस्य है- पूर्ण एकाग्रता । ”
स्वामी विवेकानन्द जब भी कोई पुस्तक पढ़ते तो एक बार पढ़ने पर ही उन्हें पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ पूरा याद हो जाता था। सभी लोग इस पर आश्चर्य करते और समझते कि उनमें कोई दैवीय गुण है । किन्तु विवेकानन्द स्पष्ट कहते – ” मैंने केवल पूर्ण एकाग्रचित्त होकर पुस्तक को पढ़ा है, बस इतना ही ।” निश्चित रूप से एकाग्रचित्त होकर पढ़ना ही स्मरण शक्ति का द्योतक है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है- “शुद्ध एवं शांत मस्तिष्क वाला एक व्यक्ति पच्चीस व्यक्तियों का कार्य कर सकता है।”
यही है लक्ष्य को साधने का अचूक सूत्र –पूर्ण एकाग्रता । जो भी कार्य हमारे सामने है, उसको पूरा करने के लिए एकाग्र मन से जुट जाना है। यदि हमने एकाग्र होकर परिश्रम का निशाना लगाया, तो वह निश्चित ही लक्ष्य की मंजिल पर लगेगा। किन्तु यदि हमारा ध्यान भटक गया, भ्रमित हो गया तो फिर मंजिल तक पहुँचना असंभव हो जाएगा। हमारे पौराणिक ग्रन्थों में यह उल्लेखित है कि अनेकों ऋषि-मुनि – संत जब प्रभु – साधना में लीन होते थे तो वे आस-पास के वातावरण, मौसम आदि से विरत रहकर साधना में एकाग्रचित्त रहते । तभी उन्हें ईश्वर के साक्षात दर्शन एवं इच्छित वरदान प्राप्त होते थे।
स्वामी विवेकानन्द कहते हैं- ” मैं कई बार प्रश्न करता था कि यदि हममें कार्य के प्रति उत्तेजना नहीं है तो फिर हम कार्य को कैसे पूरा कर सकेंगे । किन्तु जैसे-जैसे मुझे अनुभव प्राप्त हुए मैंने जाना कि यह सत्य नहीं है। उत्तेजना जितनी कम होगी हम उतने बेहतर ढंग से कार्य सकेंगे। हम जितने शांत होंगे, उतना बेहतर और अधिक कार्य हम कर सकेंगे। जब भी हम भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं, अपनी ऊर्जा को बर्बाद करते हैं, अपनी हिम्मत को तोड़ते हैं, मस्तिष्क को बाधित करते हैं और इस कारण बहुत थोड़ा कार्य ही कर पाते हैं ।
यदि तुम विश्व के प्रमुख महान् व्यक्तियों की जीवनी पढ़ो तो तुम्हें ज्ञात होगा कि वे सब आश्चर्यजनक रूप से शांत प्रकृति के व्यक्ति थे । कहीं भी, कुछ भी उन्हें असंतुलित नहीं कर पाता था। एक व्यक्ति जो स्वयं को क्रोध, उत्तेजना या द्वेष – घृणा के मार्ग पर डाल देता है, वह कोई कार्य नहीं कर सकता, वह केवल स्वयं को टुकड़ों में बांटता है ।”
कहा भी गया है – “चिता मृत शरीर को जलाती है और चिन्ता जीवित शरीर को ।” इसीलिये यह अत्यन्त आवश्यक है कि जब हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर अगसर हों, तब तनाव व चिन्ता से मुक्त रहें । कमजोर मन-मस्तिष्क का व्यक्ति कभी भी गहराई से नहीं सोच सकता । लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, निर्धारित कार्य की सफलता के लिए जरूरी है “तनाव मुक्त पूर्ण एकाग्रता” (Full Attention and No Tension)।
लेखक वरिष्ठ संस्कृतकर्मी एवं साहित्यकार हैं।
बंदूक वाली घटना अभी तक न पड़ी थी न सुनी थी ।
लेख को पढ़कर मन प्रसन्न हो गया
जानकारी में वृद्धि हुई
एकाग्रता का महत्व तो पहले से पता था