राज्यपाल की शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: तमिलनाडु के 10 विधेयकों पर राज्यपाल की असहमति को अवैध करार
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसले में तमिलनाडु के राज्यपाल आर. एन. रवि द्वारा 10 विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार करने के निर्णय को असंवैधानिक और कानून के विरुद्ध करार दिया। यह फैसला विपक्ष-शासित राज्यों में राज्यपाल की भूमिका को लेकर चल रहे विवादों में अहम माना जा रहा है।
क्या कहता है संविधान?
राज्यपाल की विधेयकों पर भूमिका संविधान के अनुच्छेद 163 और अनुच्छेद 200 में वर्णित है। अनुच्छेद 200 के अनुसार, राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल को प्रस्तुत किया जाता है, जिसके बाद उनके पास चार विकल्प होते हैं:
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विधेयक को मंजूरी देना,
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मंजूरी देने से इनकार करना,
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विधेयक पुनर्विचार के लिए लौटाना (मनी बिल को छोड़कर),
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विधेयक राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखना।
हालांकि, पुनर्विचार के बाद यदि विधानसभा विधेयक दोबारा भेजती है, तो राज्यपाल उस पर हस्ताक्षर करने से इनकार नहीं कर सकते।
राज्यपाल की देरी और “पॉकेट वीटो” का मुद्दा
तमिलनाडु सरकार ने दलील दी कि राज्यपाल जानबूझकर विधेयकों पर निर्णय लेने में देर कर रहे हैं, जिससे एक तरह से “पॉकेट वीटो” जैसी स्थिति बन रही है — यानी न तो असहमति, न ही मंजूरी, और न ही वापस भेजना। इस तरह की अनिश्चितता चुनी हुई सरकार के काम में बाधा बन सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: समयसीमा ज़रूरी
मंगलवार को कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल को विधेयक वापस भेजने या राष्ट्रपति के पास भेजने का निर्णय एक निश्चित समयसीमा में लेना होगा। फैसले के अनुसार:
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यदि विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजा जाना है, तो राज्यपाल को यह निर्णय अधिकतम तीन महीने के भीतर लेना होगा।
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यदि विधानसभा द्वारा पुनः भेजे गए विधेयक को राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा गया है, तो वे अधिकतम एक महीने के भीतर उस पर फैसला लें।
अनुच्छेद 142 का प्रयोग कर न्याय
कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए लंबित 10 विधेयकों को स्वीकृत घोषित कर दिया। अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह “पूर्ण न्याय” सुनिश्चित करने के लिए वैधानिक सीमाओं से आगे जाकर फैसला ले सके।
अन्य राज्यों पर असर
यह फैसला केरल, पंजाब और तेलंगाना जैसे राज्यों पर भी असर डालेगा, जहां राज्यपालों द्वारा विधेयकों को रोके रखने के मामले चल रहे हैं।
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केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि छह विधेयक राज्यपाल के पास एक से दो वर्षों से लंबित हैं।
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तेलंगाना सरकार ने कहा है कि 10 से अधिक विधेयक राज्यपाल के पास सितंबर 2022 से अटके हुए हैं।
इन मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की अलग-अलग पीठों में लंबित है।