राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी राय, अनुच्छेद 143(1) के तहत भेजा अभूतपूर्व संदर्भ
भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत एक महत्वपूर्ण और दुर्लभ कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट से विधायी प्रक्रिया को लेकर राय मांगी है। यह कदम हाल ही में उच्चतम न्यायालय द्वारा विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा समयसीमा में सहमति देने के निर्देशों के संदर्भ में उठाया गया है।
अनुच्छेद 143(1) के अंतर्गत राष्ट्रपति, सार्वजनिक महत्व या कानूनी व्याख्या से जुड़े मामलों में सर्वोच्च न्यायालय से सलाह ले सकते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट को इस पर विचार करने के लिए संविधान पीठ गठित करनी होगी।
राष्ट्रपति मुर्मू ने न्यायालय की उस टिप्पणी पर आपत्ति जताई है जिसमें कहा गया था कि यदि राज्यपाल या राष्ट्रपति समयसीमा के भीतर कोई निर्णय नहीं लेते, तो इसे “माना गया अनुमोदन” (deemed assent) माना जाएगा। उन्होंने इसे संविधान की मूल भावना के विपरीत बताया है।
राष्ट्रपति ने कोर्ट के समक्ष 14 स्पष्ट प्रश्न रखे हैं, जिनमें यह जानना चाहा गया है कि क्या न्यायालय इस प्रकार की समयसीमा तय कर सकता है, और क्या राष्ट्रपति तथा राज्यपाल की संवैधानिक विवेकाधिकारों की न्यायिक समीक्षा संभव है। साथ ही, उन्होंने अनुच्छेद 200 व 201 में निर्धारित प्रक्रिया की सीमाओं पर भी स्पष्टीकरण मांगा है।
इन प्रश्नों में यह भी शामिल है कि क्या अनुच्छेद 142 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति या राज्यपाल के निर्णयों को किसी प्रकार से बदल सकता है, और क्या कोई विधेयक राज्यपाल की स्वीकृति के बिना कानून की स्थिति में माना जा सकता है।
यह मामला संघ और राज्यों के बीच संवैधानिक शक्तियों की सीमा को लेकर भी गंभीर सवाल खड़ा करता है। यह पहली बार है जब राष्ट्रपति ने न्यायालय के आदेश पर सार्वजनिक रूप से असहमति जताते हुए आधिकारिक राय मांगी है।