futuredहमारे नायक

सुप्रसिद्ध गौरक्षक और राम जन्मभूमि आँदोलन को जीवन समर्पित करने वाले आचार्य धर्मेंद्र का पुण्य स्मरण

राजनैतिक संघर्ष और स्वसत्ता स्थापित करना तो स्वतंत्रता संघर्ष होता ही है लेकिन इससे बड़ा संघर्ष समाज में स्वत्व और साँस्कृतिक गौरव की स्थापना करना है । इसी अभियान को अपना पूरा जीवन समर्पित किया था आचार्य धर्मेन्द्र ने । गौरक्षा आँदोलन में उन्होंने अनशन किया तो उनकी पत्नि भी जेल गईं थी ।

अद्भुत विचारक और ओजस्वी वक्ता संत आचार्य धर्मेन्द्र अपने यशस्वी पिता संत रामचंद्र वीर की इकलौती संतान थे । उनका जन्म 9 जनवरी 1942 को उस समय हुआ जब उनके पिता जेल में थे । वे आठ वर्ष की आयु से पिता के साथ रहते और प्रवचन सुनते । उनकी स्मरण शक्ति अद्भुत थी । यह स्वतंत्रता के बाद विभाजन से उत्पन्न विभीषिका का समय था । उत्तर मध्य और पश्चिम भारत में हुये रक्तपात और शरणार्थियों के दर्द की कल्पना तक नहीं की जा सकती।बिहार के नवादा में दलितों के 20 से अधिक घरों में आगजनी, राजनीतिक प्रतिक्रियाए

सभी संत और सामाजिक व्यक्ति पीड़ितों की सेवा सुश्रुषा में लगे थे । पिता रामचंद्र वीर भी इसी में व्यस्त थे । बालवय धर्मेन्द्र भी उनके साथ जो समाज सेवा में लगे तो पूरा जीवन समर्पित हो गया । पिता के साथ सेवा कार्य तो करते ही साथ साथ संस्कृत की शिक्षा भी होती रहती । किशोर वय में उनके मन में यह बात आ गई कि समाज और देश के सामने इस संकट का मुख्य कारण संस्कृति से विखराव और असंगठन है ।

उन्होंने तेरह वर्ष की आयु में एक समाचारपत्र निकाल जिसका नाम हनुमान जी के नाम पर “वज्रांग” रखा । इस समाचार पत्र में तीन प्रकार की सामग्री होती । एक भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता और वैज्ञानिकता । दूसरा संगठन का महत्व और तीसरा परंपराओं का महत्व और उनकी रक्षा के लिये जाग्रत रहना । अपने इस अभियान के अंतर्गत देश भर की यात्रा की और लोगों को गौरक्षा एवं गौपालन के लिये प्रेरित किया ।

See also  भाई-बहनों के मिलन और नारी शक्ति का प्रतीक है तीजा तिहार

अपने देश व्यापी अभियान के साथ वेद वेदान्त और उपनिषद का अध्ययन भी नारंतर रहा । समय के साथ विवाह हुआ और पत्नि प्रतिभा भी सनातन संस्कृति की विद्वान थीं। अपने अभियान के अंतर्गत ही विश्व हिंदु परिषद के संपर्क में आये । 1966 के गौरक्षा आँदोलन में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही । उन्होंने गौरक्षा आँदोलन में 52 दिनों का अनशन किया था । वे गिरफ्तार हुये और जेल भेजे गये । इस आँदोलन में उनकी पत्नि प्रतिभा देवी भी गिरफ्तार हुईं और तीन दिन जेल में रहे ।

आगे चलकर वे राजस्थान में जयपुर के समीप विराटनगर स्थित श्री पंचखंड पीठाधीश्वर बने । उन्होंने बालवय में इसी आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण की थी और साधु संतों के सानिध्य में साधना सीखी थी । इस आश्रम का प्रमुख बनने के बाद उनके संपर्क में सभी राजनैतिक दलों के नेताओं से बने । जिनमें काँग्रेस के भी थे । पर गौरक्षा आँदोलन के बाद उनका संपर्क विश्व हिन्दु परिषद से गहरा हुआ और स्थाईरूप से विश्व हिन्दु परिषद के हो गये ।

See also  संघ का कार्य पूरे देश को संगठित करने का, देश का जिम्मा सबकी जिम्मेदारी : डा,मोहनराव भागवत

वे बहुभाषा के ज्ञानी थे । अद्वितीय स्मरण शक्ति और अद्भुत वक्ता थे अपनी प्रतिभा के चलते ही विश्व हिन्दु परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में उनका संपर्क गहरा हो गया । इसका एक कारण यह भी था कि विश्व हिन्दु परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गौरक्षा का न केवल खुलकर समर्थन किया था अपितु उनके असंख्य कार्यकर्ता संतों के साथ आँदोलन में सहभागी बने थे । विश्व हिन्दु परिषद ने उनकी प्रतिभा और क्षमता के अनुरूप दायित्व सौंपे।

वे विश्व हिन्दु परिषद के केन्द्रीय मंडल के प्रमुख सदस्य बने । इसके चलते पहले भारतीय जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी में ऐसा कोई नेता नहीं जिनसे उनका व्यक्तिगत परिचय न हो । विश्व हिन्दु परिषद द्वारा निकाली गई गंगाजलि यात्रा और फिर अयोध्या में रामजन्म भूमि मुक्ति आन्दोलन में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही । उन्होंने
अपना पूरा जीवन हिन्दु, हिंदी, हिंदुत्व और हिंदुस्तान के गौरव की पुनर्प्रतिष्ठा के लिए समर्पित कर दिया था । बातों को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करना उनके स्वभाव में न था । वे दो टूक बात करते थे और तर्क के साथ ।

कई बार उनके वक्तव्यों से असहमति के बाद भी विभिन्न राजनैतिक दलों के नेता उनका सम्मान ही करते थे । वे जो काम हाथ में लेते उसे प्राण पण से पूरा करते थे । श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति मानों उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था । वे इस आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा थे और प्रमुख नेतृत्व कर्ताओं में से एक थे । राम मंदिर मुद्दे पर उन्होंने देशव्यापी यात्रा की, कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया और मीडिया से खुलकर बात की ।

See also  छत्तीसगढ़ के बाढ़ प्रभावित जिलों में राहत-बचाव तेज, मुख्यमंत्री साय ने दिए त्वरित कार्रवाई के निर्देश

1992 में जब विवादास्पद ढांचा ढहा तब जिन्हे भी आरोपी बनाया गया था । जब ढांचा विध्वंस का फैसला सुनाया जाना था तब इन्होने कहा था- “सच से डरना क्या, जो फैसला होगा हमें स्वीकार होगा, हमारा जन्म तो रामकाज के लिये ही हुआ है” । ढांचा विध्वंस मामले में श्री कल्याण सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती को भी इनके साथ आरोपी बनाया गया था ।

आचार्य धर्मेंद्र का पूरा जीवन भारत माँ की सेवा और हिंदुत्व भाव की जाग्रति में समर्पित रहा । वे अनेक आंदोलनों और सत्याग्रहों का हिस्सा रहे और जेल गए ।
उनके जीवन का उत्तरार्ध गहन शारीरिक अस्वस्थता में बीता वे कई दिनों तक जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में भर्ती रहे । वे आंतों से संबंधित गंभीर बीमारी से पीड़ित थे । अंततः 19 सितम्बर 2022 को उन्होने संसार से विदा ली ।

उनका अंतिम संस्कार विराटनगर स्थित उनके मठ में ही किया गया । उनके निधन पर राजस्थान के सभी राजनैतिक दलों से जुड़े नेताओं और विशेष कर हिंदू संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने देश भर में शोक सभाएँ कीं । उनके निधन से राममंदिर आँदोलन जुड़े सभी कारसेवकों को गहरा शोक हुआ । वे अपने जीवन में वहाँ भव्य मंदिर देखना चाहते थे । उनकी यह इच्छा अधूरी रह गई।