गौरैया के लुप्त होने से जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव
आज गौरैया दिवस मनाया जाता है, क्योंकि गौरैया नामक प्रजाति खत्म होने की कगार पर है। हम इसे बांभन चिरई कहते है। मुझे कई वर्ष हो गये गौरैया देखे हुए। पहले गौरैया हमारे आंगन में दिन भर फ़ुदकते रहती थी अपने चिड़े के साथ। दिन भर अठखेलियाँ करती, कभी धूलि स्नान करती। बैठक में फ़ोटो फ़्रेम के पीछे घोंसला बनाती, रोशनदान या खिड़कियों में घोंसला बनाती। अब आंगन में गौरैया नहीं है। मुझे अपने गांव में गौरैया देखे लगभग पचीस बरस से अधिक हो गये, जबकि मेरे यहाँ वृक्षों की कोई कभी नहीं है। पचासों वृक्ष हैं, अनेक तरह के पक्षियों का बसेरा है, पर गौरैया नहीं है। इस तरह गौरैया का आंगन से गायब हो जाना वास्तव में चिंता का विषय है। कभी मन करता है कि इसे फ़िर घर लेकर आऊं, लेकिन लाऊं तो कहाँ से, यह यक्ष प्रश्न मेरे सामने खड़ा है।
गौरैया के विलुप्ति के कारण
गौरैया की घटती संख्या के पीछे कई मानवीय और पर्यावरणीय कारण हैं। आधुनिक जीवनशैली और तकनीकी विकास ने इसके प्राकृतिक वास को नष्ट कर दिया है। शहरों में बड़ी संख्या में बहुमंजिला इमारतों का निर्माण हुआ, जिससे गौरैया के घोंसले बनाने के लिए उपयुक्त स्थान कम होते गए। पहले मकानों की दीवारों में बनी दरारों और छप्परों के कोनों में यह आसानी से घोंसले बना लेती थी, लेकिन आधुनिक कंक्रीट के घरों में इसकी यह सुविधा समाप्त हो गई।
इसके अलावा, मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन ने भी गौरैया के अस्तित्व को प्रभावित किया है। यह रेडिएशन छोटे कीट-पतंगों की संख्या को कम कर देता है, जो गौरैया के मुख्य भोजन होते हैं। जब गौरैया को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता, तो उसकी प्रजनन दर भी घट जाती है और धीरे-धीरे उसकी आबादी कम होती जाती है।
रासायनिक कीटनाशकों और खादों का बढ़ता उपयोग भी गौरैया के लिए घातक सिद्ध हुआ है। कृषि में प्रयुक्त जहरीले रसायन छोटे कीटों को मार देते हैं, जिससे गौरैया के भोजन की आपूर्ति प्रभावित होती है। साथ ही, गौरैया द्वारा खाए गए दाने और कीटों में मौजूद विषैले तत्व उसके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं।
इसके अलावा, शहरीकरण के बढ़ते प्रभाव से वृक्षों और प्राकृतिक जलस्रोतों की संख्या में भारी कमी आई है। वृक्षों पर बने घोंसले गौरैया को सुरक्षा प्रदान करते थे, लेकिन पेड़ों की कटाई ने इस प्राकृतिक संरक्षण को समाप्त कर दिया। जलस्रोतों की कमी ने इनके पानी तक पहुंच को भी सीमित कर दिया।
जैव विविधता में गौरैया का महत्व
गौरैया जैव विविधता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है। गौरैया मुख्यतः छोटे कीट-पतंगों और अनाज के दानों का सेवन करती है। यह कीटों की संख्या को नियंत्रित करने में सहायक होती है, जिससे फसलों पर हानिकारक कीटों का आक्रमण कम होता है।
इसके अतिरिक्त, यह परागण प्रक्रिया में भी सहयोगी होती है। खेतों, बाग-बगीचों और वृक्षों पर बैठकर गौरैया पराग कणों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाती है, जिससे पौधों का प्राकृतिक रूप से संवर्धन होता है।
गौरैया के गायब होने से जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। खाद्य श्रृंखला में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है, क्योंकि यह छोटे कीटों को खाकर उनके असंतुलित प्रसार को रोकती है। यदि गौरैया पूरी तरह से विलुप्त हो गई, तो इससे कीटों की अधिकता बढ़ सकती है, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न होगा।
विश्व गौरैया दिवस: संरक्षण की दिशा में एक कदम
गौरैया की घटती संख्या को देखते हुए इसे संरक्षित करने के लिए विश्व गौरैया दिवस मनाने की शुरुआत की गई। यह दिवस प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों को गौरैया और अन्य छोटी चिड़ियों के संरक्षण के प्रति जागरूक करना है।
इस दिवस को मनाने की पहल ‘नेचर फॉरएवर सोसाइटी’ नामक संस्था द्वारा की गई, जिसे भारतीय पर्यावरणविद् मोहनलाल भगवत ने स्थापित किया था। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य लोगों को गौरैया के प्रति संवेदनशील बनाना और उनके संरक्षण के लिए प्रयास करने को प्रेरित करना था।
आज, कई गैर-सरकारी संगठन और पर्यावरण प्रेमी गौरैया को बचाने के लिए विभिन्न स्तरों पर काम कर रहे हैं। घरों में गौरैया के लिए दाना-पानी रखने की व्यवस्था करना, कृत्रिम घोंसले तैयार कर उन्हें सुरक्षित स्थानों पर लगाना, मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन के प्रभाव को कम करने की मांग करना और रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम करना जैसे प्रयास इस चिड़िया के संरक्षण में सहायक हो सकते हैं।
गौरैया केवल एक चिड़िया नहीं, बल्कि हमारी प्राकृतिक धरोहर का हिस्सा है। इसके अस्तित्व पर संकट केवल गौरैया तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संकेत देता है कि हमारा पर्यावरण भी धीरे-धीरे असंतुलित होता जा रहा है। यदि हमने समय रहते आवश्यक कदम नहीं उठाए, तो यह खूबसूरत चिड़िया सिर्फ चित्रों और कहानियों में ही रह जाएगी।
इसलिए, हम सभी को मिलकर गौरैया के संरक्षण के लिए कार्य करना चाहिए। अपने घरों के आंगनों और छतों पर पानी और दाने की व्यवस्था करें, पेड़-पौधे लगाएं, और जैविक खेती को बढ़ावा दें। यदि हम गौरैया को बचाने के लिए जागरूक होकर प्रयास करेंगे, तो निश्चित रूप से यह प्यारी चिड़िया फिर से हमारे घरों और बाग-बगीचों में चहचहाने लगेगी।
बहुत सुन्दर जानकारी..