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प्रेमचंद साहित्य की मशाल:अगासदिया संस्था ने मनाई यादगार संध्या

भिलाई नगर, 31 जुलाई 2025/ साहित्य के अमर पुरोधा और यथार्थवादी कथा साहित्य के जनक मुंशी प्रेमचंद की 145वीं जयंती की पूर्व संध्या पर, भिलाई की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ‘अगासदिया’ द्वारा 30 जुलाई को एक विशेष कार्यक्रम ‘स्मरण – प्रेमचंद’ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आरंभ प्रेमचंद जी के चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें सादर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हुआ।

कार्यक्रम इस्पात नगरी भिलाई के आमदी नगर स्थित अगासदिया परिसर में आयोजित किया गया। इस अवसर पर प्रेमचंद की अठारह लोकप्रिय कहानियों के छत्तीसगढ़ी अनुवाद संग्रह ‘अगासदिया प्रेमचंद’ की भी चर्चा की गई, जो कुछ वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था। इन कहानियों का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद प्रदेश के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डाॅ. परदेशी राम वर्मा द्वारा किया गया था।
इस अनुवाद संग्रह की सौजन्य प्रतियाँ डॉ. वर्मा ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुधीर शर्मा और विशेष अतिथि सुप्रसिद्ध रंगमंच एवं फिल्म अभिनेता विनायक अग्रवाल को भेंट कीं।

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प्रेमचंद – साहित्य की मशाल:
मुख्य अतिथि डॉ. सुधीर शर्मा ने अपने उद्बोधन में प्रेमचंद के साहित्यिक अवदान को रेखांकित करते हुए कहा,

“प्रेमचंद ही थे, जिन्होंने कहा कि ‘साहित्य वह मशाल है, जो राजनीति के आगे चलकर उसे राह दिखाती है।’
उन्होंने बताया कि प्रेमचंद ने अपनी कलम को आजादी की लड़ाई का हथियार बनाया और देश के सामाजिक, राजनैतिक चेतना को दिशा दी। वे न केवल राष्ट्रीय बल्कि विश्व साहित्य के महानतम साहित्यकारों में गिने जाते हैं। उनका रचना संसार भारतीय लोकजीवन की सजीव छवि प्रस्तुत करता है।

भाषाओं को जोड़ने वाले लेखक:
कार्यक्रम के दौरान डॉ. परदेशी राम वर्मा ने कहा कि प्रेमचंद एक ऐसे लेखक थे जिन्होंने भाषाओं के बीच सेतु निर्माण किया। वे हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी के विद्वान थे और अपने गाँव लमही में रहकर पूरे भारत के ग्रामीण जनजीवन को शब्दों में पिरोया। उनकी कहानियाँ हर क्षेत्र के ग्रामीण जीवन को प्रतिध्वनित करती हैं।
उन्होंने कहा,

“प्रेमचंद ने साम्प्रदायिक सौहार्द्र को साहित्य का विषय बनाया और ‘गोदान’ जैसे कालजयी उपन्यास में भारतीय किसान के जीवन का यथार्थ चित्रण किया।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल का प्रसिद्ध कथन –
“किसान जीवित रहेगा तो सब जीवित रहेंगे, और किसान मरेगा तो सब मरेंगे,”
सीधे प्रेमचंद के विचारों की प्रतिध्वनि है।

हर वर्ग का लेखक:

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वरिष्ठ साहित्यकार डी.पी. देशमुख ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियाँ हर उम्र और हर वर्ग के लिए हैं।

“वे ऐसे लेखक हैं जिनके साहित्य में हिंदुस्तान का दिल धड़कता है। उनकी कहानियाँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, क्योंकि समस्याएँ बदली नहीं हैं – वे अब भी उसी रूप में मौजूद हैं।”

प्रेमचंद और दृश्यात्मकता:
रंगमंच और छत्तीसगढ़ी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता विनायक अग्रवाल ने कहा कि प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ और ‘गबन’ पर बनी फिल्मों और टेलीविजन शृंखलाओं ने उनके साहित्य की चित्रात्मकता को जीवंत किया है।

“प्रेमचंद की कहानियाँ पढ़ते समय ऐसा लगता है मानो हम फिल्म देख रहे हों। वे दृश्यात्मकता के अद्भुत शिल्पी हैं। आज के लेखक भी उनकी परंपरा से प्रेरित होकर सामाजिक सरोकारों को उकेरते हैं।”

सजग सहभागिता:
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथियों का स्वागत चित्तारंजन साहू ने किया। कार्यक्रम में समाज, साहित्य और रंगमंच से जुड़े कई गणमान्य नागरिकों की गरिमामयी उपस्थिति रही, जिनमें मुनीलाल निषाद, महेश वर्मा, राजेन्द्र साहू, बद्रीप्रसाद पारकर, डामन साहू आदि प्रमुख थे।
कार्यक्रम का समापन नीतीश द्वारा आभार प्रदर्शन के साथ हुआ।

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यह आयोजन प्रेमचंद की स्मृति को जीवंत रखने के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में साहित्यिक चेतना और सामाजिक संवाद को भी मजबूती प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास सिद्ध हुआ।