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सीय राममय सब जग जानी : सीता जयंती विशेष

जानकी जयंती माता सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व विशेष रूप से भारत और नेपाल साथ विदेशों में प्रवासी भारतीयों द्वारा श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मनाया जाता है। माता सीता को त्याग, समर्पण, धैर्य और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस दिन भक्तजन माता सीता की पूजा-अर्चना करते हैं और उनकी कथा का श्रवण कर अपने जीवन को कृतार्थ करते हैं। तुलसीदास रचित रामचरितमानस में माता सीता के जीवन, उनके गुणों और उनकी महानता का अद्भुत वर्णन मिलता है।

माता सीता का जन्म मिथिला (वर्तमान में नेपाल) के राजा जनक के घर में हुआ था, इसलिए उन्हें ‘जानकी’ कहा जाता है। वे माता पृथ्वी की कन्या मानी जाती हैं, जिन्हें राजा जनक ने यज्ञ भूमि से प्राप्त किया था। उनका जीवन संघर्ष और धैर्य का अनुपम उदाहरण है। जानकी जयंती, जिसे जानकी अष्टमी भी कहा जाता है, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है, जो आमतौर पर फरवरी-मार्च के महीने में पड़ती है।

भगवान श्रीराम के जीवन में माता सीता का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण था। वे केवल उनकी अर्धांगिनी ही नहीं, बल्कि उनके धैर्य, त्याग और धर्मपरायणता की प्रेरणा भी थीं। माता सीता के बिना राम कथा अधूरी मानी जाती है। माता सीता ने अपने जीवन में सतीत्व और पतिव्रता धर्म का अनुपालन कर संपूर्ण स्त्री जाति के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया। उनका श्रीराम के प्रति समर्पण दर्शाता है कि प्रेम और निष्ठा सच्चे रिश्ते की नींव होती है।

जब भगवान श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास मिला, तब माता सीता ने अपने सुख-सुविधाओं को त्यागकर उनके साथ जाने का निर्णय लिया। यह उनके कर्तव्यनिष्ठा और प्रेम का प्रतीक था। उन्होंने जीवन के हर संघर्ष को धैर्य और गरिमा के साथ स्वीकार किया। माता सीता केवल कोमल और त्यागमयी नहीं थीं, बल्कि वे अपार शक्ति की भी प्रतीक थीं। अशोक वाटिका में रहते हुए उन्होंने अपनी आत्मशक्ति और धैर्य से रावण को पराजित किया। उनका यह चरित्र दर्शाता है कि नारी केवल सहनशीलता की मूर्ति नहीं, बल्कि आत्मबल और सम्मान की भी संरक्षक होती है।

जब माता सीता को अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी, तब उन्होंने यह प्रमाणित किया कि सच्ची नारी अपने चरित्र और आत्मबल से किसी भी चुनौती का सामना कर सकती है। यह घटना आज भी भारतीय समाज में सत्य, निष्ठा और आत्मसम्मान का प्रतीक मानी जाती है।

माता सीता का जीवन केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव समाज के लिए एक प्रेरणा है। उनके जीवन से हमें अनेक शिक्षाएं मिलती हैं। उन्होंने अपने सुखों का त्याग कर पति धर्म का पालन किया और हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखा। कठिन परिस्थितियों में भी माता सीता ने कभी अपना संयम नहीं खोया और हर संकट का सामना धैर्य से किया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि स्त्री केवल घर की शोभा नहीं, बल्कि आत्मबल और समाज को दिशा देने वाली शक्ति भी होती है। उन्होंने अपने जीवन से यह संदेश दिया कि सत्य और धर्म की सदा विजय होती है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों।

माता सीता भारतीय संस्कृति में स्त्रीत्व, धैर्य, त्याग और मर्यादा की प्रतीक हैं। जानकी जयंती केवल उनका जन्मोत्सव नहीं, बल्कि उनकी महान शिक्षाओं को अपनाने का अवसर भी है। तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस में माता सीता के चरित्र को पढ़कर हम अपने जीवन में धैर्य, भक्ति और प्रेम का संचार कर सकते हैं। जानकी जयंती को विशेष रूप से महिलाओं द्वारा व्रत, पूजा और संकीर्तन के माध्यम से मनाया जाता है। इस दिन रामचरितमानस का पाठ, माता सीता और श्रीराम के नाम का स्मरण और भक्ति भाव से उनका पूजन किया जाता है। इस अवसर पर महिलाओं के लिए माता सीता के गुणों को आत्मसात करने का संदेश दिया जाता है।

“सीय राममय सब जग जानी।
करउं प्रनाम जोरि जुग पानी।।”
अर्थात्, जो संपूर्ण सृष्टि को श्रीराम और माता सीता का स्वरूप मानता है, वह निश्चित रूप से उनके दिव्य आशीर्वाद का पात्र बनता है।

भारतीय संस्कृति में माता सीता को देवी के रूप में पूजा जाता है। वे शक्ति, धैर्य और निष्ठा की प्रतीक मानी जाती हैं। हिंदू समाज में उन्हें देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। उनका जीवन भारतीय नारी के लिए आदर्श प्रस्तुत करता है, जिससे प्रेरणा लेकर महिलाएँ अपने जीवन में सहनशीलता, प्रेम और आत्मसम्मान बनाए रख सकें। हर वर्ष जानकी जयंती के अवसर पर माता सीता की पूजा कर उनके गुणों को आत्मसात करने का प्रयास किया जाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि नारी का सम्मान और उसकी गरिमा की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है।

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