बीमार पर्यावरण की पुकार: अब भी समय है संभलने का

(ब्लॉगर एवं पत्रकार )
हमारा पर्यावरण बहुत बीमार है, आज विश्व पर्यावरण दिवस हम सबके लिए यह चिंता और चिंतन का दिन है कि उसे प्रदूषण की इस गंभीर बीमारी से कैसे राहत मिले! चाहे प्राकृतिक पर्यावरण हो या सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक या राजनीतिक पर्यावरण—आज हमारे आसपास हर तरह का पर्यावरण दूषित होता जा रहा है।
अन्य सभी पर्यावरणों को प्रदूषण से बचाया जा सकता है, लेकिन सबसे पहले प्राकृतिक पर्यावरण को बचाना और स्वच्छ बनाए रखना जरूरी है। पेड़-पौधे और हरे-भरे जंगल, हमारे नदी-नाले स्वच्छ और सुरक्षित रहेंगे तो प्रकृति भी स्वच्छ रहेगी, और समाज को सुख-शांति का अहसास होगा। तब हमारे परिवेश में हर तरह का पर्यावरण भी साफ-सुथरा रहेगा।
लेकिन समस्या यह है कि हमारे कई नदी-नाले प्रदूषण की वजह से बीमार हो रहे हैं, सूखकर बेजान हो रहे हैं, और हरे-भरे पहाड़ उजड़ते जा रहे हैं। दिक्कत यह है कि सब कुछ जानते-समझते हुए भी इंसान पर्यावरण को दूषित कर रहा है और अपने साथ-साथ अपनी दुनिया को भी तबाही के रास्ते पर ले जा रहा है।
पहाड़ों की हरियाली को नोच-खसोट कर उनके नैसर्गिक सौंदर्य को नष्ट करने में अब शायद किसी को कष्ट नहीं होता। बढ़ती जनसंख्या, बढ़ते शहरीकरण और तीव्र गति से फलते-फूलते औद्योगिक विकास की वजह से जल, जंगल, पहाड़ और ज़मीन आज गंभीर संकट में हैं।
अत्यधिक शहरीकरण और सीमेंट-कांक्रीट की लगातार पसरती बस्तियों में (अब तो गांवों में भी) पक्के मकानों का निर्माण हो रहा है। सीमेंट-कांक्रीट की सड़कें बन रही हैं। इन सबमें प्राकृतिक पत्थरों के उपयोग के लिए मनुष्य और मशीनों के हाथों पहाड़ उजड़ते जा रहे हैं। हर कोई आज पक्के घरों में रहना चाहता है। इसमें मनुष्य की कई तरह की मजबूरियाँ भी हैं। चारे-पानी की तलाश में गांवों में आने-जाने वाले बंदर, ग्रामीणों की खपरैल वाली छतों को उजाड़ देते हैं। जंगल कट रहे हैं, तो वहाँ रहने वाले पशु-पक्षियों का जीवन भी खतरे में पड़ गया है।
हमें इन सबका विकल्प भी सोचना होगा। नए जंगल लगाने होंगे। उजड़ते पहाड़ों में सघन वृक्षारोपण करना होगा। आधुनिक ड्रोन टेक्नोलॉजी के जरिए उनमें बरसात के दिनों में फलदार, छायादार वृक्षों के बीजों का छिड़काव हो सकता है। शायद उनमें पीपल जैसे वृक्षों के बीजों का छिड़काव भी हो तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं, क्योंकि पीपल की जड़ें कठोर धरती और पत्थरों की दरारों के बीच भी उगने के लिए जगह बना लेती हैं। लोग कहते हैं कि यह चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देने वाला वृक्ष है।
देश में आज प्लास्टिक और पॉलीथिन का कचरा हमारे पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। शहरों के साथ-साथ हमारे गांव और कस्बे भी प्लास्टिक प्रदूषण के शिकंजे में हैं। अधिकांश लोग जानते हैं कि प्लास्टिक कचरे की रिसाइक्लिंग करके उसे दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है, सड़क निर्माण में प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल हो सकता है, लेकिन इंसान हर तरफ प्लास्टिक के डिब्बों, बोतलों और पॉलीथिन की थैलियों का उपयोग करने के बाद उन्हें लापरवाही से इधर-उधर फेंककर प्रदूषण फैलाने का अपराध कर रहा है। यहाँ तक कि अब तो हमारे महासागर भी इस प्रदूषण की चपेट में आ गए हैं।
यह एक अच्छी पहल है कि भारत सरकार द्वारा देश के कई शहरों में प्लास्टिक इंजीनियरिंग संस्थान संचालित किए जा रहे हैं, जहाँ युवाओं को इस विषय में प्रशिक्षण के साथ डिग्री/प्रमाणपत्र भी दिए जाते हैं। प्लास्टिक रिसाइक्लिंग में इन युवाओं की प्रतिभा का उपयोग करते हुए उन्हें रोजगार के अवसर दिए जा सकते हैं।
अगर देश में कृषि उपजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की तरह प्लास्टिक कचरे की सरकारी खरीदी के लिए भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित हो और जगह-जगह खरीदी केंद्र बना दिए जाएँ, तो जहाँ बड़ी संख्या में गरीबों को कुछ अतिरिक्त आमदनी हो सकती है, वहीं हमारे चारों ओर प्लास्टिक और पॉलीथिन के बेतरतीब फैलते लाखों टुकड़े काफी हद तक साफ हो जाएंगे।
दुनिया भर में कई देशों द्वारा समुद्र और ज़मीन के भीतर तथा हवा में किया जाने वाला परमाणु हथियारों का परीक्षण भी बढ़ते प्रदूषण का एक खतरनाक कारण बन गया है। पूरी दुनिया में परमाणु परीक्षणों और परमाणु हथियारों पर कड़ा प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
रूस-यूक्रेन युद्ध में चल रही भीषण बमबारी से जहाँ जन-धन की भारी तबाही हो रही है, वहीं बमों और बारूदों से हवा, पानी और ज़मीन भी प्रदूषित होती जा रही है। पर्यावरण और मानवता की रक्षा के लिए इस युद्ध को तत्काल रोका जाना चाहिए। दुनिया के सभी देशों को एकजुट होकर प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ को इसके लिए ठोस पहल करने की ज़रूरत है।