futuredहमारे नायक

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और ‘झंडा ऊँचा रहे हमारा’ के रचनाकार श्यामलाल गुप्त

भारत को स्वतंत्रता सरलता से नहीं मिली। इसके लिए असंख्य बलिदान हुए हैं—एक वे जिन्होंने अपने प्राणों का बलिदान दिया और दूसरे वे जिन्होंने देश की स्वाधीनता के लिए जन-जागरण में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया। श्यामलाल गुप्त ऐसे ही महामना थे, जिन्होंने अपना सर्वस्व राष्ट्र और समाज के निर्माण के लिए अर्पित कर दिया।

उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की और अपने गीतों व लेखों के माध्यम से जन-जागरण किया। सुप्रसिद्ध झंडा गीत—
“विश्व विजयी तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा”

इन्हीं की रचना है। लोग भले उन्हें न जानते हों, लेकिन उनकी इस रचना को देश जानता है। वे केवल रचनाकार ही नहीं, बल्कि एक समर्पित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वे आठ बार जेल गए और दस साल तक फरारी में रहे, साथ ही अपने लेखन से स्वाधीनता की अलख जगाते रहे।

श्यामलाल गुप्त का जन्म कानपुर में हुआ। उनके पिता विश्वेश्वर प्रसाद मध्यमवर्गीय व्यापारी थे और माता कौशल्या देवी धार्मिक विचारों की थीं। घर में रामायण का नियमित पाठ होता था। जब माता व्यस्त होतीं, तो बालक श्याम को रामायण सुनाने में लगा देतीं। इस कारण उनका रामायण से गहरा लगाव रहा और वे मानस मर्मज्ञ भी बने।

See also  मुख्यमंत्री नगरोत्थान योजना: 429 करोड़ से अधिक की स्वीकृतियां, छत्तीसगढ़ के 14 नगर निगमों में तेजी से बदल रही शहरों की तस्वीर

कविता में उनकी रुचि बचपन से थी। पहली रचना उन्होंने पाँचवीं कक्षा में लिखी, जो सराही गई। उनकी रचनाएँ तीन प्रकार की होती थीं—राष्ट्र के लिए समर्पित, समाज के लिए और भगवान राम के लिए। पढ़ाई में भी वे कुशाग्र बुद्धि के थे। आठवीं कक्षा उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। पिता इससे प्रसन्न रहते, लेकिन उनके कविता प्रेम से असंतुष्ट थे। एक बार पिता ने उनकी सभी रचनाएँ कुएँ में फेंकवा दीं, यह कहते हुए कि रचनाकार सदैव दरिद्र रहते हैं और व्यापार में सफल नहीं हो सकते।

घर के इस माहौल से तंग आकर श्यामलाल गुप्त अयोध्या चले गए और दीक्षा लेकर प्रभु सेवा में लग गए। बाद में परिवार उन्हें इस शर्त पर वापस लाया कि उन्हें टोका-टाकी नहीं की जाएगी। लौटने के बाद उनका परिचय सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी से हुआ। इसी के बाद उनकी रचनाओं में राष्ट्रसेवा का आयाम जुड़ा।

See also  संविधान निर्माण में छत्तीसगढ़ का योगदान उल्लेखनीय : विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह

उन्होंने 1921 के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और गिरफ्तार होकर आगरा जेल भेजे गए। 1930 के नमक सत्याग्रह में भी वे गिरफ्तार हुए। 1921 से 1947 तक वे आठ बार जेल गए और 1932 से 1942 तक अज्ञातवास में रहे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने कानपुर, फतेहपुर और आगरा जिलों में आंदोलन का नेतृत्व किया और फतेहपुर में बंदी बनाए गए।

1921 में उन्होंने जूते-चप्पल न पहनने का व्रत लिया और घोषणा की कि देश स्वतंत्र होने के बाद ही वे चप्पल पहनेंगे। वास्तव में 1947 में स्वतंत्रता के बाद ही उन्होंने चप्पल पहनी। उनका ऐतिहासिक गीत “झंडा ऊँचा रहे हमारा” 13 अप्रैल 1924 को कानपुर अधिवेशन में नेहरू जी के सामने गाया गया।

स्वतंत्रता के बाद वे समाज सेवा और शिक्षा प्रसार में जुट गए। उन्होंने स्वयं विद्यालय की स्थापना की और अन्य समाजसेवियों को भी विद्यालय खोलने के लिए प्रेरित किया।

राष्ट्र और संस्कृति को अपना जीवन समर्पित करने वाले इस महान विभूति का निधन 10 अगस्त 1977 को कानपुर में हुआ। विनम्र श्रद्धांजलि एवं शत-शत नमन।

See also  नवा रायपुर में जुटेंगे देश के साहित्यकार, आदि से अनादि तक साहित्य उत्सव का प्रतीक चिन्ह हुआ जारी