कठिन कथा सीता की
बहुत सरल है राम समझना
कठिन कथा सीता की।
जिसने अपनी त्याग तपस्या
किए सिद्ध गीता सी।
चरित परम पावन पुनीत
जो सदा राम हैं गाते।
सीता के स्मरण मात्र से
राम श्रृणी हो जाते।
इसीलिए परिचय देते वे
बोले बंधु भरत से।
कपि से उश्रृण नहीं मैं
कैसे गिनूं भलाई कर से।
सुत कह कर जिसको सीता ने
अपनी व्यथा सुनाई।
उसको याद करूं मैं जब भी
तब- तब दिया दुहाई।
सीता जिसने राज – धर्म को
सर्वोपरि है माना।
प्रजा – पुत्र के हित में
जिसने अपने सुख लघु जाना।
राजकुलों में जन्मी व्याहीं
सदा रही वनवासी।
सुख,संपत्ति समृद्ध को त्यागी
जीवन ज्यों संन्यासी।
राम कथा की सुरसरि सीता
कृपा यदि कर देतीं।
अयाचक बन जाए मन ये।
शरण सदा वो लेतीं।
उनकी आज जयंती पावन
जो जगजननी माता।
नाम बहुत महिमामय इनका
राम से पहले आता।