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साहित्य-साधना के एकांत तपस्वी : शिवशंकर पटनायक

स्वराज करुण 
(ब्लॉगर एवं पत्रकार )

आज के प्रचार और प्रसार के तेज़ युग में, जहाँ लेखक और कलाकार मंच, मीडिया और सोशल मीडिया के ज़रिए लोकप्रियता की दौड़ में शामिल हैं, वहीं कुछ रचनाकार ऐसे भी हैं जो पूर्णतः मौन और साधना के मार्ग पर चलते हुए साहित्य को समर्पित हैं। छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के पिथौरा निवासी वरिष्ठ साहित्यकार श्री शिवशंकर पटनायक ऐसे ही एक निर्लोभी, समर्पित और मौलिक रचनाकार हैं, जो आज 1 अगस्त 2025 को अपना 82वाँ जन्मदिन मना रहे हैं। इस अवसर पर उन्हें हार्दिक शुभकामनाएँ एवं अभिनंदन।

प्रचार-प्रसार के इस युग में भी उनमें न तो ‘आकाशवाणी’ से प्रसारित होने की इच्छा है और न ही ‘दूरदर्शन’ के पर्दे पर दिखने की चाहत! रेडियो और टेलीविजन के मायावी संसार से अलग रहकर वे बहुत ख़ामोशी से साहित्य-साधना में लगे रहते हैं। वे हैं छत्तीसगढ़ के पिथौरा (जिला – महासमुंद) निवासी वरिष्ठ साहित्यकार 82 वर्षीय शिवशंकर पटनायक, जिनका आज एक अगस्त को जन्मदिन है। उन्हें जन्मदिन की हार्दिक बधाई और बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

उन्होंने बड़ी संख्या में हिन्दी में कहानियों, उपन्यासों और निबंधों की रचना की है। व्यंग्य रचनाएँ भी लिखी हैं। हिन्दी नाट्य लेखन की एकांकी विधा में भी उन्हें महारत हासिल है।

सचमुच ‘कलम के धनी’ हैं : कलम से ही लिखते हैं

आज कम्प्यूटर क्रांति के इस दौर में जब अधिकांश पढ़े-लिखे लोगों में कलम से लिखने की आदत छूटती जा रही है, दो-चार वाक्य कलम से लिख लेने पर बहुतों की उँगलियों में दर्द होने लगता है, तब यह देखकर और सुनकर आश्चर्य नहीं होगा कि वरिष्ठ साहित्यकार श्री पटनायक आज भी लंबी-लंबी कहानियाँ और बड़े से बड़े उपन्यास अपने हाथ से लिखते हैं। वे पिथौरा के अपने बड़े-से पैतृक मकान के छोटे-से कमरे में, अपनी पलंग के सामने रखी छोटी-सी टेबल पर खूब जमकर लिखते हैं। अब तक प्रकाशित पुस्तकों की उनकी हस्तलिखित पांडुलिपियाँ, यदि गिनी जाएँ तो हजारों पृष्ठों में होंगी। वे फुलस्केप कागज के दोनों ओर लिखते हैं।

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वास्तव में ऐसे ही लोग ‘कलम के धनी’ होते हैं, क्योंकि वे सचमुच कलम से लिखते हैं। उन्हें प्रेमचंद की तरह ‘कलम के सिपाही’ का दर्जा दिया जा सकता है। श्री पटनायक इस अंचल के अकेले ऐसे साहित्यकार हैं, जिनके साहित्य पर पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर से तीन शोधार्थियों को पीएच.डी. की उपाधि मिल चुकी है।

पिथौरा के गद्य साहित्य के एकांत साधक

आमतौर पर साहित्य सृजन में रचनाकार के आस-पास के माहौल का भी बड़ा योगदान रहता है। एक ऐसे इलाके में, जहाँ अधिकांश साहित्यिक गतिविधियाँ केवल कविताओं पर केंद्रित रहती हैं, वहाँ शिवशंकर पटनायक इकलौते ऐसे रचनाकार हैं, जो हिन्दी में गद्य लेखन की साहित्यिक विधा को पूरी तल्लीनता से आगे बढ़ा रहे हैं। वर्तमान में वे पिथौरा अंचल में हिन्दी गद्य-साहित्य के इकलौते और एकांत साधक हैं।

प्रकाशित कृतियाँ

श्री पटनायक कहानी, उपन्यास, निबंध और व्यंग्य विधाओं के सिद्ध हस्त रचनाकार हैं। इन सभी विधाओं में उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें 7 कहानी संग्रह, 9 उपन्यास, दो खंडों में 5 लघु उपन्यास, एक व्यंग्य संग्रह, तत्व चिन्तन पर आधारित 5 आलेख संग्रह, तथा पिथौरा के स्थानीय इतिहास पर आधारित एक पुस्तक शामिल है।

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1. कहानी संग्रह –

पराजित पुरुष

पलायन

प्रारब्ध

डोकरी दाई

बचा… रे… दीपक

अंत एक संत का

मंदिर सलामत है

2. उपन्यास –

भीष्म – प्रश्नों की शर-शैय्या पर

कालजयी कर्ण

एकलव्य

कोशल नंदिनी

आत्माहुति

अग्नि स्नान

देवी करिया धुरवा

नागफनी पर खिला गुलाब

समर्पण

3. लघु उपन्यास (दो खंड – आदर्श नारियां) –

कुन्ती

द्रौपदी

अहल्या

तारा

मंदोदरी

4. चिन्तनपरक लेख संग्रह –

मनोभाव

विकार-विमर्श

मानसिक दशा एवं दर्शन

नारी-अस्मिता : संकट एवं समाधान

आप मरना क्यों नहीं चाहते

5. व्यंग्य संग्रह –

क्या आप इज़्ज़त की तलाश में हैं?

6. स्थानीय इतिहास –

पिथौरा सौ साल

नाट्य साहित्य

अप्रकाशित नाटक –

अदालत का फैसला

बंग के फूल (वर्ष 1971 में मंचित)

अमानत

‘बंग के फूल’ नाटक बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जिसका मंचन 1971 में पिथौरा क्षेत्र के विभिन्न गाँवों में हुआ था।

लोक देवता करिया धुरवा पर पहला उपन्यास

उनका उपन्यास ‘देवी करिया धुरवा’ छत्तीसगढ़ के लोक देवता करिया धुरवा और उनकी धर्मपत्नी की जीवनगाथा पर आधारित है। यह संभवतः इस प्रदेश के किसी भी लोक देवता पर लिखा गया पहला उपन्यास है। पिथौरा से 6 किमी दूर ग्राम अर्जुनी स्थित उनके मंदिर में हर वर्ष अगहन पूर्णिमा पर तीन दिवसीय मेला लगता है।

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विशेष उपलब्धियाँ

कहानी ‘डोकरी दाई’ को ‘कथा मध्यप्रदेश’ ग्रंथ में शामिल किया गया है, जो अविभाजित मध्यप्रदेश के कथाकारों पर केंद्रित पाँच खंडों में प्रकाशित महत्वपूर्ण संकलन है।

शिक्षा व सेवा यात्रा

जन्म: 1 अगस्त 1943, पिथौरा

शिक्षा: हाई स्कूल तक पिथौरा, बी.एससी. (रायपुर), एम.ए. (इतिहास), बी.एड.

सेवा: शिक्षक से लेकर सहकारिता विभाग के संयुक्त पंजीयक पद तक

सेवानिवृत्ति: वर्ष 2003, छत्तीसगढ़ शासन से

“ये भी कोई उम्र है उपन्यास लिखने की?”

नवमीं कक्षा में पढ़ते समय उन्होंने उपन्यास ‘पुष्कर’ लिखा था। जब यह बात स्कूल प्राचार्य उमाचरण तिवारी को पता चली तो पहले डाँटा, फिर उपन्यास पढ़कर शाबाशी भी दी।

रचनात्मक निर्देशन और प्रतिबद्धता

विद्यालय में नाट्य कार्यक्रमों हेतु प्राचार्य की हिदायत थी – “बाहर के नाटक नहीं, शिक्षक स्वयं लिखें।” इसी प्रेरणा से ‘बंग के फूल’ नाटक का सृजन हुआ।

शिवशंकर पटनायक जैसे साहित्यकार न केवल हमारे समय के निर्लोभी और समर्पित रचनाकार हैं, बल्कि वे आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श भी हैं। उनकी साधना, सृजन और साहित्य के प्रति निष्ठा इस बात की प्रेरणा देती है कि सच्चा साहित्य वहीं फलता-फूलता है, जहाँ लेखन शोर नहीं करता, बल्कि अपनी गहराई से पाठक को भीतर तक प्रभावित करता है।
उनके 82वें जन्मदिवस पर हम उन्हें कोटिशः बधाई देते हैं और उनके सतत साहित्य-सृजन की मंगलकामना करते हैं।