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क्या होंगे ठाकरे ‘एक’? उद्धव की पहल पर राज की खामोशी, MNS ने फिर दिखाया संकोच

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर ठाकरे परिवार की एकजुटता को लेकर चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। एक ओर शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सार्वजनिक मंचों से कई बार यह संकेत दिया है कि वे अपने चचेरे भाई राज ठाकरे के साथ गठबंधन के लिए तैयार हैं, वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) इस पहल पर अब तक ठंडी प्रतिक्रिया ही देती आ रही है।

12 जून को MNS प्रमुख राज ठाकरे और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बीच मुंबई में हुई एक बंद कमरे की मुलाकात ने राजनीतिक हलकों में हलचल पैदा कर दी। इस बैठक के बाद से कयास लगाए जा रहे हैं कि MNS का झुकाव भाजपा और महायुति की ओर बढ़ रहा है। लेकिन शिवसेना (यूबीटी) इस संभावना से विचलित हुए बिना लगातार ‘मराठी मानूस’ की एकता की अपील कर रही है।

राजनीति से ज़्यादा भावनाओं की अपील

पिछले दो महीनों में उद्धव ठाकरे, उनके बेटे आदित्य ठाकरे और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने लगातार बयान देकर यह संकेत दिए हैं कि वे MNS के साथ मिलकर काम करने को इच्छुक हैं। शिवसेना का मुखपत्र ‘सामना’ भी इन संकेतों को हवा देने में पीछे नहीं रहा। पुराने फोटो, भावनात्मक अपील और मराठी अस्मिता को जोड़कर ‘एक ठाकरे’ की छवि बनाई जा रही है।

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हालांकि, MNS की ओर से अब तक कोई ठोस सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने इसे सिर्फ “चुनावी मजबूरी” बताया है और कहा है कि ऐसे गठजोड़ों में अक्सर MNS को “छोटे भाई” की भूमिका में देखे जाने का खतरा होता है।

MNS की चुप्पी और शंका

राज ठाकरे की ओर से सार्वजनिक रूप से अप्रैल 19 के बाद कोई सीधा बयान नहीं आया है। उस दिन एक पॉडकास्ट में उन्होंने कहा था कि “महाराष्ट्र का हित व्यक्तिगत मतभेदों से ऊपर है।” लेकिन इसके बाद से वे पर्दे के पीछे ही रहे हैं। पार्टी नेताओं की मानें तो उन्हें यह चिंता है कि अगर गठबंधन होता है, तो सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर मतभेद हो सकते हैं।

MNS के मुंबई अध्यक्ष संदीप देशपांडे ने स्पष्ट किया कि “महाराष्ट्र के मुद्दों पर एकता जरूरी है, लेकिन चुनावी गठबंधन अलग बात है।” उनका कहना था कि उद्धव ठाकरे गठबंधन चाहते हैं तो उन्हें सीधे प्रस्ताव देना चाहिए, न कि मीडिया के जरिए संकेत भेजने चाहिए।

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शिवसेना (यूबीटी) की रणनीति और राजनीतिक ज़रूरत

2022 में शिवसेना के विभाजन और 2024 के चुनावों में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद, उद्धव ठाकरे अब मराठी शहरी वोटबैंक को दोबारा संगठित करना चाहते हैं। मुंबई, ठाणे, पुणे और नाशिक जैसे क्षेत्रों में जहां MNS की थोड़ी बहुत पकड़ अब भी बची है, वहां एकजुटता भाजपा-शिंदे गठबंधन के खिलाफ ताकत बन सकती है।

लेकिन आंकड़ों पर नज़र डालें तो MNS का नगर निगमों में प्रदर्शन कमजोर रहा है। 2014-2019 के बीच 27 में से 21 नगर निगमों में चुनाव लड़ने के बावजूद पार्टी सिर्फ 26 सीटें ही जीत सकी। जबकि 2009-2014 के दौरान MNS के पास 162 सीटें थीं।

भाजपा के साथ समीकरण और MNS का फायदा

राज ठाकरे की चुप्पी और भाजपा से बातचीत की खबरों को लेकर अटकलें हैं कि MNS शायद महायुति का हिस्सा बनने को तैयार हो सकता है। हिंदुत्व, शहरी मुद्दे और ‘बाहरी बनाम मराठी’ की राजनीति में भाजपा और MNS का मेल स्वाभाविक माना जा रहा है।

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राज ठाकरे के लिए यह गठबंधन विचारधारा से ज़्यादा रणनीतिक लाभ का सौदा हो सकता है — संसाधन, समर्थन और सत्ता में हिस्सेदारी, वह भी बिना पार्टी की पहचान खोए।

ठाकरे भाइयों की एकता की संभावनाएं अभी सिर्फ शब्दों और संकेतों तक सीमित हैं। शिवसेना (यूबीटी) जहां दिल खोलकर पहल कर रही है, वहीं MNS सावधानी से कदम रख रहा है। यदि जल्द ही उद्धव और राज के बीच प्रत्यक्ष संवाद नहीं होता, तो यह प्रस्ताव महज भावनात्मक अपील बनकर रह जाएगा — और भाजपा के लिए यह विभाजित मराठी वोट बैंक एक बार फिर जीत का रास्ता बना सकता है।

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