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नवरात्रि के नौ रहस्य : क्या आप जानते हैं देवी उपासना के ये अनुष्ठान?

पं अनुप तिवारी

भारतीय संस्कृति में पर्व-त्योहार केवल आनंद और उल्लास का ही माध्यम नहीं हैं, बल्कि वे जीवन को आध्यात्मिकता, अनुशासन और दिव्यता से जोड़ने का अवसर भी प्रदान करते हैं। इन्हीं पर्वों में शारदीय नवरात्रि का विशेष स्थान है। नवरात्रि वर्ष में दो बार चैत्र और शारदीय मनाई जाती है, किंतु शारदीय नवरात्रि का महत्व अधिक है क्योंकि यह वर्ष के उत्तरार्ध में आता है जब प्रकृति शीत ऋतु की ओर बढ़ रही होती है।

नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ है – “नव दिनों की साधना”। इन नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। यह पर्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

पुराणों के अनुसार जब महिषासुर नामक असुर ने त्रिलोकी में उत्पात मचाया, तब सभी देवताओं की शक्तियों का सम्मिलन हुआ और माँ दुर्गा प्रकट हुईं। देवी ने नौ दिनों तक महिषासुर और उसकी सेना से युद्ध किया और दशवें दिन विजय प्राप्त की। यह दिन विजयादशमी या दशहरा कहलाता है। इसलिए नवरात्रि केवल उपासना ही नहीं, बल्कि सत्य की असत्य पर विजय और धर्म की अधर्म पर स्थापना का प्रतीक है।

नवरात्रि के नौ दिन और नौ रूप

नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के एक स्वरूप की आराधना की जाती है।

  1. शैलपुत्री – पर्वतराज हिमालय की पुत्री, शक्ति का आदिम रूप।

    • “वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
      वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥”

    • अर्थ: मैं उन शैलपुत्री देवी की वंदना करता हूँ, जो वृषभ पर आरूढ़ हैं, त्रिशूल धारण करती हैं और जिनके मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित है।

  2. ब्रह्मचारिणी – तपस्या और संयम की प्रतीक।

    • “दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
      देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥”

    • अर्थ: जिनके हाथों में जपमाला और कमंडल है, वे तपस्विनी ब्रह्मचारिणी माँ मेरी रक्षा करें।

  3. चन्द्रघंटा – शौर्य और वीरता का स्वरूप।

    • “पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
      प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टा यशस्विनी॥”

    • अर्थ: रथ पर आरूढ़, शस्त्रों से सुसज्जित चन्द्रघंटा देवी अपने भक्तों को प्रसन्न करती हैं।

  4. कूष्माण्डा – ब्रह्मांड की सृष्टिकर्त्री।

    • “सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
      दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥”

    • अर्थ: अपने हाथों में अमृत और रक्त से पूर्ण कलश धारण करने वाली कूष्माण्डा देवी हमें शुभ प्रदान करें।

  5. स्कन्दमाता – कार्तिकेय की माता, मातृत्व का प्रतीक।

    • “सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
      शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥”

    • अर्थ: सिंहासन पर विराजमान और कमलों को धारण करने वाली स्कन्दमाता माँ हमें शुभ देती हैं।

  6. कात्यायनी – महिषासुर मर्दिनी।

    • “चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शारदूलवरवाहना।
      कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी॥”

    • अर्थ: जिनके हाथों में चमकता हुआ खड्ग है और जो सिंह पर आरूढ़ हैं, वे कात्यायनी देवी हमें कल्याण दें।

  7. कालरात्रि – भय नाशिनी।

    • “एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
      लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥”

    • अर्थ: विकराल स्वरूप वाली कालरात्रि माँ सभी पापों और भय का नाश करती हैं।

  8. महागौरी – सौंदर्य और शांति की देवी।

    • “श्वेतवृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुभा।
      महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥”

    • अर्थ: श्वेत वृषभ पर आरूढ़, श्वेत वस्त्र धारण करने वाली महागौरी देवी हमें सुख और शांति प्रदान करती हैं।

  9. सिद्धिदात्री – सिद्धियों और परिपूर्णता की दात्री।

    • “सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि।
      सेव्यमाना सदा भूयात्सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥”

    • अर्थ: देव, दानव और सिद्ध जिनकी सेवा करते हैं, वे सिद्धिदात्री देवी हमें सिद्धियाँ प्रदान करें।

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नवरात्रि के प्रमुख अनुष्ठान

  1. कलश स्थापना (घटस्थापना)
    नवरात्रि की शुरुआत कलश स्थापना से होती है। कलश में जल, आम्रपल्लव और नारियल स्थापित कर माँ दुर्गा को आमंत्रित किया जाता है। यह “शक्ति के आवाहन” का प्रतीक है।

  2. जगरा एवं जागरण
    गाँव-गाँव में रातभर देवी गीत, जस गीत,  भजन और डांडिया-गरबा होते हैं। यह सामूहिक भक्ति का अनूठा रूप है।

  3. व्रत और उपवास
    श्रद्धालु नौ दिन तक उपवास करते हैं। फलाहार और सात्त्विक भोजन किया जाता है, जिससे शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं।

  4. कन्या पूजन
    अष्टमी या नवमी के दिन कन्याओं को माँ दुर्गा का स्वरूप मानकर उनका पूजन किया जाता है और उन्हें भोजन कराया जाता है।

  5. हवन और पूजन
    नवमी के दिन हवन किया जाता है, जिससे वातावरण शुद्ध होता है और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।

नवरात्रि का सांस्कृतिक महत्व

  • यह पर्व स्त्री शक्ति की महिमा का प्रतीक है।

  • नवरात्रि में डांडिया और गरबा जैसे लोकनृत्य सांस्कृतिक एकता को प्रकट करते हैं।

  • सामूहिक भजन-कीर्तन समाज में समरसता का वातावरण बनाते हैं।

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आध्यात्मिक दृष्टि से नवरात्रि

नवरात्रि केवल बाहरी अनुष्ठानों का पर्व नहीं है, बल्कि आत्मशक्ति को जागृत करने का अवसर है।

  • नौ दिन आत्मसंयम और साधना के होते हैं।

  • यह आत्मशुद्धि से आत्मसिद्धि की यात्रा है।

  • हर दिन देवी का एक रूप हमें जीवन के किसी न किसी पहलू पर ध्यान केंद्रित करने का संदेश देता है।

शारदीय नवरात्रि हमें यह सिखाती है कि जब मनुष्य अपने भीतर की शक्ति को पहचान लेता है, तो कोई भी कठिनाई उसे रोक नहीं सकती। माँ दुर्गा की उपासना केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि जीवन को साहस, धैर्य, संयम और श्रद्धा से भरने का माध्यम है।