सामाजिक समरसता और आध्यात्मिकता के प्रतीक संत सेन महाराज

भारत संत परम्परा की भूमि है, भक्ति काल में अनेक संत हुए जिन्होंने समाज का मार्गदर्शन किया। भारतीय संत परंपरा में संत सेन एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। वे 14वीं-15वीं शताब्दी के दौरान भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। संत सेन जी नाई जाति से संबंध रखते थे। बावजूद इसके, उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान, सामाजिक समानता और भक्तिपूर्ण जीवन के माध्यम से जनमानस को प्रभावित किया।
संत शिरोमणि सेन महाराज की जयंती प्रतिवर्ष वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार निर्धारित होती है। संत सेन का जन्म मध्य भारत में हुआ था, परंतु उनके जन्मस्थान को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ मानते हैं कि वे मध्य प्रदेश के रीवा या आसपास के किसी क्षेत्र में जन्मे थे। वे पेशे से नाई थे, लेकिन उनका हृदय ईश्वर भक्ति में रमा हुआ था। उन्हें कबीर, रविदास, नामदेव और अन्य संतों की भांति भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख स्तंभ के रूप में देखा जाता है।
संत सेन ने कर्मकांड और जातिवाद का विरोध किया। उन्होंने आडंबरपूर्ण धार्मिक क्रियाओं को नकारते हुए सच्चे भक्ति मार्ग की वकालत की। उनका मानना था कि भगवान की भक्ति सबके लिए समान रूप से सुलभ है — चाहे वह किसी भी जाति, वर्ग या धर्म का क्यों न हो।
प्रमुख वाणियाँ
उनकी वाणियाँ सीधी, सरल और आत्मा को छू लेने वाली होती थीं। कुछ प्रमुख वाणियाँ निम्नलिखित हैं:
“सेंवक सेवा करत भया, हरि चरणन रत लाग।
जनम जनम का बंधन कटै, मन होत अनुराग।।”
इस वाणी में सेवा के महत्व और ईश्वर-भक्ति से जन्म-जन्मांतर के बंधनों के नाश का उल्लेख है।
“नाई को क्यों न कहा, जो हरि का भजन करे।
कासी में पांडे फिरे, मन उन का उजरै।।”
यहां वे जाति के दंभ पर प्रहार करते हैं। एक नाई जो ईश्वर की भक्ति करता है, वह उन ब्राह्मणों से श्रेष्ठ है जो केवल कर्मकांड में उलझे हैं।
इनकी वाणियाँ “गुरुग्रंथ साहिब” में भी शामिल की गई हैं (राग रामकली, अंग 923), जो उनकी आध्यात्मिक गरिमा और मान्यता का प्रमाण है।
भक्ति आंदोलन में संत सेन का योगदान अमूल्य है। उन्होंने विशेषकर शूद्र और दलित वर्ग के लोगों में आत्मगौरव और भक्ति भावना का संचार किया। उनके उपदेशों और भजनों ने सामाजिक समरसता की भावना को प्रोत्साहित किया। उन्होंने समाज में फैली ऊँच-नीच की भावना को सिरे से नकारा और सभी को एक ही परमात्मा की संतान बताया।
संत सेन के द्वारा रचित भजन और दोहे ब्रज और अवधी भाषा में हैं। उनकी कुछ रचनाएँ सिक्ख धर्मग्रंथ “गुरुग्रंथ साहिब” में भी संकलित हैं, जो दर्शाता है कि उनकी वाणी ने केवल हिंदू समाज ही नहीं बल्कि सिक्ख समुदाय को भी प्रभावित किया।
आज जब समाज फिर से जाति, वर्ग और धर्म के नाम पर बँटा हुआ प्रतीत होता है, तब संत सेन जैसे महापुरुषों की वाणी और विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं। उन्होंने जो सामाजिक न्याय, समानता और भक्ति का संदेश दिया था, वह आज के युग में भी मार्गदर्शक है।
संत सेन एक ऐसे संत थे जिन्होंने न केवल आध्यात्मिक जीवन जिया बल्कि सामाजिक क्रांति का भी मार्ग प्रशस्त किया। उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रेरणा देती हैं कि जाति, धर्म और वर्ग के भेदभाव से ऊपर उठकर हम सब एक मानवता के सूत्र में बंधें।
संदर्भ
- गुरुग्रंथ साहिब, अंग 923 – संत सेन की वाणी (राग रामकली)
- डॉ. रामकुमार वर्मा: हिंदी भक्ति आंदोलन की सामाजिक दृष्टि, राजकमल प्रकाशन
- हजारी प्रसाद द्विवेदी: भक्ति आंदोलन और संत परंपरा
- डॉ. विद्यानिवास मिश्र: भक्ति साहित्य का सामाजिक परिप्रेक्ष्य
- Encyclopaedia of Sikh Religion and Culture, R.C. Dogra