संजय कौशिक : कम खर्च में अधिक घूमना ही घुमक्कड़ी है।
1 – संजय जी आपका जन्म एवं शिक्षा कहाँ हुई और बचपन कैसा बीता?@ मेरा जन्म हरियाणा के रोहतक जिले (अब झज्जर) के “डीघल” गाँव में हुआ. दादाजी और पिताजी दोनों भारतीय सेना से रिटायर्ड हैं, इसलिए 12वीं तक की पढ़ाई जो झज्जर, हरियाणा के केन्द्रीय विधालय से शुरू हुई तो इलाहाबाद, आगरा, टेंगा वैली (अरुणाचल प्रदेश), सिकंदराबाद (आन्ध्र प्रदेश) से होती हुई झादोड़ा कलां (नजफगढ़, नई दिल्ली) में पूरी हो पाई. ग्रेजुएशन भी यहीं “दिल्ली विश्विधालय” के राजा गार्डन स्थित शिवाजी कॉलेज से की.
2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं ?@ चूँकि मेरी शादी यहीं नजफगढ़ में ही हुई लेकिन शादी के बाद एक बार फिर ये ठिकाना भी श्रीमती जी की सरकारी नौकरी की वजह से छोड़ना पड़ा और हम नजफगढ़ छोड़ कर सोनीपत जा बसे हालाँकि घर अपना नजफगढ़ में अब भी है.
वर्तमान में मैं एक पब्लिक लिमिटेड कम्पनी में गुरुग्राम (गुडगाँव) में कार्यरत हूँ. हरि किरपा से दादा जी का आशीर्वाद सर पर है, जिनके आशीर्वाद से भरा पूरा परिवार है. हाँ माँ का साया पाँच साल पहले ही सर से उठ गया. जिस तरह हम दो बहन भाई हैं, उसी तरह मेरे भी दो बच्चे हैं, बिटिया अंशुल कौशिक दसवीं में पढ़ रही है और बेटा युवराज कौशिक आठवीं में.
3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?
@ जैसा ऊपर बताया, बचपन में ही पिताजी के तबादलों की वजह से हर २-४ साल में एक नया शहर देख लेते थे, लेकिन चूँकि जबतक सचमुच देखने लायक हुए तब तक दिल्ली में आ बसे थे तो रह रहकर वो पुराने दिन अंदर हूक मारते थे. यही वजह थी कि कॉलेज से भी सिकंदराबाद के NCC कैम्प की सुनते ही अपना नाम सबसे ऊपर लिखवाया, पुराने दोस्तों को ढूंढ निकाला, अपने स्कूल में होके आया, देहरादून का पता चला तो उस कैंप में अपना नाम सबसे ऊपर था. बच्चों को संग और कुसंग का प्रभाव बचपन से ही सिखाया जाता है तो, मुझे ऐसा ही संग मिलता गया जो ये बचपन की दबी हुई इच्छाएं मौका पाकर बलवती और कार्यान्वित होती गई. सोनीपत आने पर पहले एक भाई जैसा मित्र मिला, अशोक पंडित जिसने मुझे बताया कि हम हिन्दुओं के चार धाम है बारह ज्योतिर्लिंग हैं तो एक बार शुरू हुए तो हरि किरपा से पूरे करके ही दम लिया, फिर एक “घुमक्कड़ी दिल से” जैसा ग्रुप मिल गया जहाँ आज की तारीख में एक से एक धुरंधरों से साक्षात् मुलाकात हुई, स्वयं ललित जी के दर्शन भी उसी का परिणाम है.
4 – किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं, ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेलों के प्रति कब और क्यों आकर्षित हुए?
@ घुमक्कड़ी वही सबसे बढ़िया लगती है जिसमे कम से कम खर्च में ज्यादा से ज्यादा घुमाई की जाये. चूँकि फौजी का बेटा हूँ तो थोड़े बहुत शारीरिक कष्ट झेल कर भी प्रयास रहता है कि यात्रा का खर्च कम से कम हो. यात्रा में पैदल चलना, सीट मिलना, ना मिलना, इस छोटी मोटी बातों को आड़े नहीं आने देता. अरुणाचल के पहाड़ों के बचपन बीता था तो कहीं विश्वास था कि ट्रेकिंग मेरे लिए कठिन नहीं होगी और अपने एक घुमक्कड़ मित्र अनिल दीक्षित के साथ 2.5 दिन में ध्यान बद्री, कल्पेश्वर होते हुए रुद्रनाथ की यात्रा करके सगर के रास्ते नीचे उतर आये थे. ये विश्वास चेक भी कर लिया क्योंकि इस समय में जाने से पहले लगभग हमारे सभी मित्रों ने और रास्ते में मिलते वाले यात्रियों ने असंभव सा ही बता दिया था.
5 – उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा ?
@ पहली यात्रा का तो पता ही नहीं थी कौनसी क्योंकि ढंग से होश सँभालने से पहले ही घूमना शुरू हो गए थे, हाँ घर से अकेले शायद पहली यात्रा के लिए शायद कॉलेज से हरिद्वार ऋषिकेश काँवड लेने गया तो फिर ऐसा चस्का लगा कि लगातार 8-10 साल तक भोले बाबा की किरपा बनी रही और साल दर साल भक्ति, घुमक्कड़ी, तीर्थाटन जो कहिये चलता ही रहा.
6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?
शुरू शुरू में तो श्रीमती जी ने काफी टांग भी अड़ाई, पहाड़ों के होने वाली दुर्घटनाओं के बारे में भी बता के डराया या पता नहीं डरी, लेकिन अब जब देख लिया है कि ये नहीं रुकने वाले तो ख़ुशी ख़ुशी परांठे पैक करके दे देती हैं..
7 – आपकी अन्य रुचियों के विषय में बताईए?
@ बड़ा अजीब सा किस्म का बन्दा हूँ, किसी भी चीज में रूचि नहीं है और सब कुछ रुचिकर लग जाता है. रामेश्वरम से वापसी में विडिओ कोच में तमिल/कन्नड़ ये ही नहीं पता कौन भाषा की फिल्म थी, पूरी देख डाली फुल्ल मजे लेते हुए. हम तीन यार वो फिल्म देख रहे थे और बाकी सारी बस हमें. वैसे नई नई जगह देखने के आलावा बागवानी और खाने पीने का बड़ा शौक है मुझे.
8 – घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है?
@ जब तक आप साक्षात किसी चीज स्थान को खुद जाकर नहीं देख लेते आप वो अनुभव नहीं कर सकते. जैसे हजारों बार समुन्द्र डिस्कवरी चेंनेल पर और फिल्मों में देखा होगा लेकिन जब रामेश्वरम जाते हुए पहली बार समुन्द्र देखकर जो ख़ुशी की चीख मारी थी उस ख़ुशी को बयान नहीं किया जा सकता. हम हिन्दुस्तान की बात करते हैं, अपने देश की बात करते हैं तो अपने उस देश को अनुभव करने के लिए आपको मद्रासी, मराठी, गोरखा सबसे घर से बाहर निकल कर मिलना भी होगा. खाली किताबों से आप “अनुभव” नहीं कर सकते. और इसी तरह इस घुमक्कड़ी के माध्यम से ही आप अपने मूल्यांकन के साथ साथ अपने में सुधार भी कर सकते हैं.
9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?
@ लेटेस्ट रोमांचक यात्रा तो भाई अनिल दीक्षित के साथ की गई रुद्रनाथ केदार की यात्रा हैं जिसमे हम लगातार तीन रात जंगल में रास्ता भटके और एक रात तो गड़रियों की छोड़ी हुई बिना छत और बीना पूरी दीवारों की झोपडी में बिताई्।
लेकिन इसके आलावा माँ के साथ की गई केदारनाथ यात्रा भी कम रोमांचक नहीं थी. रोमांच तो दिल्ली बस अड्डे से ही शुरू हो गया था जब टिकेट की लाइन में लगते ही कम से कम १० लोगों ने टोक दिया था, “भाई हमारा तो घर है वहां, बच्चे हैं, तुम क्यों माँ बेटे जबरदस्ती मुसीबत मोल ले रहे हो ? आगे ८-९ किलोमीटर का रास्ता बिल्कुल ख़तम हो चुका है, फिर कभी चले जाना केदारनाथ”. डर तो मुझे भी लगा, लेकिन जब माँ ने दृढ होकर कहा “भाई जिसके नाम पर घर से झोला उठाकर चले हैं वो खुद चिंता करेगा, तू क्यों परेशान होता है? तो मेरी भी हिम्मत बढ़ी और सबसे हैरानी की बात ये कि उस यात्रा में जब हम वापसी में ऋषिकेश से दिल्ली वाली बस में बैठे तो कोई अपने सूजे हुए पैर दिखा रहा था कोई अपने 15-16 किलोमीटर पैदल चलने की गाथा गा रहा था, जब हम माँ बेटा बिल्कुल तरोताजा, बिना रूटीन से १० कदम भी अधिक पैदल चले, वापसी में बोनस में टिहरी डैम के दर्शन करते हुए घर की ओर जा रहे थे तो वे सब भी हैरान थे कि तुम कैसे और कहाँ से इतनी सुगमता से केदारनाथ के दर्शन कर आये.
10 – नये घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?
@ आजकल में हिंदुस्तान टाइम्स में पढ़ा था देश में और विदेश में आज के समय में सबसे ज्यादा रोगी आपको डिप्रेशन के मिलेंगे. लोग देश विदेश से शांति ढूँढने अपने देश में आते हैं तो मैं अपना अनुभव बता रहा हूँ, जब घर Office, Office घर और रोज़मर्रा की जिन्दगी से थकने लगा तो मौका देख एक एक छोटा बड़ा जैसा हो टूर मार आओ, अगले टूर तक रिचार्ज हो गए समझो. तो सभी से यही कहूँगा कि जिन्दगी काटना ही सबकुछ नहीं होता कुछ समय जिन्दगी जी के भी देखना चाहिए.
Lalit ji aabhar apka hmare admin Ji se hme milvane ke liye☺Sach kaha aapne sanjay ji jindgi Ji kr bhi dekhni chahiye….Bahut khushi hui apke bare me vistaar se jankar.aap yu hi ghumte rhe aur jèvan ko jeete rhe..meri shubhkamnye apko.☺
वाह मजा आ गया पढ कर।एक और इंटरव्यू छाप दो ये कम है?
सच कहा ,जिंदगी जी ना हो तो घूमो फिरो ,घूमने से मन प्रसन्न और जीवित होता है , बहुत ही प्रेरणादायक जीवन जी रहे हो एडमिन साहब
क्या बात है वाकई में संजय भाई जिंदाबाद है
Bhai kaushik ji ghummakad me to apne modi ji ko bhi pichhe child diya
भगवान् आपको और घूमने की इच्छाशक्ति प्रदान करे।
बहुत अच्छे बेटे, खुश रहो…!!!
Kya baat hai bade bhaiya… its very nice to know your experiences and perception towards life…You are a footmarker for us… hope will always get directions and guidance from you… ??
ललित सर को बहुत बहुत धन्यवाद। संजय कौशिक जी आपके साक्षात्कार का बहुत इंतज़ार था और वो आज पूरा हो गया, अब एक गीत याद आ रहा है, जिसका मुझे था इंतज़ार वो घडी आ गई, कौशिक जी बहुत अच्छा लगा आपके बारे में जानकार , घुमक्क्ड़ी जिंदाबाद
ये पढ़कर आपके बारे में और ज्यादा पता चला और एक लाइन आप पर फिट बैठती है – “घुमक्कड़ी अनुभवों का शब्दकोश है और आपका शब्दकोश काफी बड़ा है”
कौशिक जी, आपके साक्षात्कार का बड़ा इंतजार था । बहुत बढ़िया जीवन परिचय लगा । आपने अपनी थाईलैंड यात्रा का तो जिक्र ही नही किया । और ललित जी का दिल से शुक्रिया !
संजय कौशिक जी आपको व्यक्तिगत तरीके से भली भांति जानता हूँ, परन्तु आपके इस पहलू को भी और अधिक जानने का अवसर मिला। धर्म एवं समाज में आपकी रुचि अभूतपूर्व है। आपसे मार्गदर्शन मिलता रहता है। ईश्वर से कामना की आपकी रुचि बनी रहे तथा जीवन के हर क्षेत्र में आप इसी तरह सामंजस्य बनाये रखें।
वाह। एडमिन हो तो ऐसा।
मिले नहीं पहले हम तुमसे
अब मिलने जैंसी बात हुई
जाना अब संजय कौशिक को
ललित मोहन ने पहल करी।
संजय कौशिक जी को पढकर
सपना इक साकार हुआ
पर्यावरण और कला संस्कृति
से मुझको भी प्यार हुआ।
डीघल वाले इस कौशिक ने
भारत सारा घूम लिया
पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण
भारत माँ को चूम लिया।
देख हौंसला संजय तेरा
बार बार तुम्हें नमन करूँ
सुन कर के बातों को इनकी
लगता मैं भी भ्रमण करूँ।
यूँ ही हरदम रहो घूमते
तुम संग रहे दुआ मेरी
अगले सफर की करो तैयारी
क्यों करते हो अब देरी।
अनुभव साँझा करके तुमने
भारत हमें घुमा डाला
हरियाणे के छोरे से अब
पड गया ‘वधवा’ का पाला।
एडमिन सर,,, अच्छा लगता है natureके साथ टाइम बिताना, दिल को बड़ा है सकून मिलता है।
बिलकुल सही फ़रमाया कौशिक जी। जिंदगी काटना ही सबकुछ नही, कुछ समय जिंदगी जी कर भी देखो।।
आभार ललितजी का????
बिलकुल सही फ़रमाया कौशिक जी। जिंदगी तो सभी काटते हे , कभी जी कर भी देखों,अपने सपनो को अपनी ख़्वाहिशों को फिर जीने का मजा ही कुछ और हे।
आभार ललितजी का????
दादा आपका साक्षात्कार पढ़ कर बड़ा अच्छा लगा । ललित जी हम संजय भाई को प्यार से दादा कहते हैं ये हमारे बचपन के सखा और बंधु हैं।इनकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है।ऐसी सख्शियत के साथ रहने और घूमने का सौभाग्य हर किसी को नही मिलता। दादा आपका परिचय हम से बेहतर कौन जान ओर दे सकता है। घुम्मकड़ी जिंदाबाद, ये जज्बा यूँही बरकरार रहना चाहिए।
जय हो
गजब भाई ….
कई बाते तो मुझे तेरे इस साक्षात्कार से पता चली ….
पता नहीं कहा कहा घूम आया तू … 🙂
और मेरा नाम भी कही पे है इसमें…. :p :p
और सबसे बड़ी बात ये पता चली …”घर से परांठे”
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बहुत बढ़िया भाई… 🙂
बढिया संजय जी । आपके बारे में और बहुत सी बाते पता चली। घुमक्कडी दिल से
कौशिक जी से एक बार संक्षिप्त मुलाकात हुई है और बेहतरीन इंसान लगे ! जिंदगी जीने का सन्देश बहुत सुन्दर और प्रभावी लगा !! शुभकामनाएं कौशिक जी और आभार ललित जी
JOB FOR SALARY. ADVENTURE FOR SOUL
संजय कौशिक जी से मेरी मुलाक़ात ओरछा में हुई थी बहुत ही मिलनसार व्यक्ति है।अब उनसे फ़ोन पर बात होती रहती है। संजय भाई आप ऐसे ही शानदार घुमक्कड़ी करते रहे बहुत बहुत शुभकामनाएँ ???
किसी बात में रूचि नहीं पर सब रूचिकर लगता है, ये लाइन तो सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। ललितजी आभार इतनी अच्छी घुमक्कड़ शख्सियत से मिलवाने के लिए।
हमारे एडमिन साहब के इतिहास के बारे में लिखने के लिए ललित जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
very nice sanjay biya ……
Sanjay ji aap aadarniye to pehle hi the ab aap vandaniye bhi hai. Keval ghumne ke udyeshe se agar aap Ghumte to sayad itni badi baat nahi thi lakin apne Dharam & sankriti ke prati aapki shradha ko koti koti vandan Hai.
Prabhu aapko lambi umar, shudh budhi avm acchi sehat pradan Kare.
Shri Radhey
आज अपने प्रिय मित्र से जान पहचान और गहरी हो गयी ।
कई नयी और अच्छी बाते जानने को मिली ।
ललित जी आपको इसके लिए आभार
बहुत ही बढ़िया साक्षात्कार … मित्र कौशिक जी….
जो बाते आपके बारे में न पता थी वो पता चल गयी….. सच कहा किशन जी ….अब आपसे जन पहचान और गहरी हो गयी…
घुमक्कड़ी ♥ दिल से
भाई जी राम राम
आपके साक्षात्कार के बारे मे पढ़ा
बहुत अच्छा लगा
तभी तो मैं कहता हूं।
घुमक्कड़ी दिल से
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बहुत खूब ! जिंदगी काटना जी सबकुछ नही होता , जिंदगी जी के भी देखना चाहियें।
भाई जी मजा आ गया ,आपकी बाते पढकर भगवान् आपको हमेशा खुश रखे आप हमेशा युही घूमते फिरते रहे और अपना ज्ञान हम जसे भाइयो में बांटते रहो और आपका परिवार हमेशा खुश रहे
ललित जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद .राम राम जी
Bhai ji, apke hi margdrshan ke chalte hum 12 jyotirling, 4dham, tirupati ji sir baba barfani ke darshan kar paye,
Thanks BHAI G
भाई संजय जी आज की ये खबर पढ़ के मन गदद गदद हो गया
ये तो भारत की खबरें है यही प्रार्थना करते हैं किशोरी ज्यू के चरणों मे हमारा भाई भारत ही नही विश्व दर्शन में भी अग्रणी रहे
पुनः आभार भी संजय जी का
Bahut chhota interview hai. Ye dil maange more!
जय राम जी की भाई जी ।
बहुत ही अद्भुत संजय जी आपके विजय मेहरा जी और प्रवीर दहिया जी के साथ से हम भी इस घुमक्कडी की लत लगा चुके है। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप सदैव हमारा मार्ग दर्शन करते रहे। अमरनाथ जी यात्रा, इसका हाल ही का उदाहरण है। और आपके साक्षात्कार को पढ़कर तो मन और भी हर्षित हो उठा है। धन्यवाद।
Wow?
Its Amazing sanjay ji.
Bhagwan aapki yatrao me vridhi kren?
आप अपने समय का सदुपयोग कर रहे ही भाई जी।
लगे रहिये……..आनन्द लीजिये।
जय हिन्द, जय भारत।
admin sir, Nature ke sath joude rehna bhi bahut achi baat ha., nature ke sath tym spend karne se dill ko sakun or shanti mehsus hoti ha.
Bhaìya yeh sab maa ka aasirwad hai
Bhaiya yeh sab maa ka aasirwad he hai
वाह संजय सर् आप तो घुमक्कड़ में सरताज निकले मैंने तो सोचा भी नही था कि आप भी ……..Mast interview
आप जैसे इंसान बहुत कम मिला करते हैं,आपसे जुड़े कई और अनछुये पहलू जानकर बहुत अच्छा लगा।?
वाह भाई मजा आ गया।
जैसे-जैसे आपका साक्षात्कार आगे बढ़ता रहा
मुझे लगा कि मैं खुद भी आप के साथ घूम रहा हूँ
बढ़िया घुमक्कड़ी सर
जय हो कौशिक भाई जी
सच में मज़ा सा आ गया आपका परिचय पढ़कर ऐसा लगा जैसे ये सब और आपको मैं बहुत पहले से जानता हु !
घुमक्कड़ी में तो आपको महारत हासिल है ही साथ ही साथ रिश्तो और परिस्थितयों को सँभालने और बचपन की दबी हुई इच्छाएं पूरी करने में भी आप महारथी हो और यही बात दिल को सुकून देती है की आप जैसा दोस्त मिला
बाकी आपका परिचय पढ़कर अब सबको पता चल ही गया होगा की ..यूँ ही कोई अमित शाह .. ओह्ह माफ़ करे यूँ ही कोई एडमिन नहीं बना देता :p :p
वाह कौशिक जी मजा आ गया पढ़कर