संध्या शर्मा : घुम्मकड़ी एक प्रवृत्ति ही नहीं, एक कला भी है।
1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?
2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं?
हमारा इंडस्ट्रियल प्रिंटिंग और प्रकाशन का बिज़नेस है। अपने काम से संबंधित ग्राफ़िक डिज़ाइनिंग व स्टेशनरी डिज़ाईन के अलावा एक गृहणी के सारे कार्य मैं स्वयम् करती हूँ, परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य व उनकी सभी ज़रूरतों का ख़याल रखती हूँ, इन सब कार्यों के बाद जो भी समय मिलता है, उसमे ब्लॉग लेखन का कार्य भी करती हूँ।
3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?
4 – किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं, ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेलों के प्रति कब और क्यों आकर्षित हुए?
बचपन में मेहमानों को घुमाने के बहाने जबलपुर के दर्शनीय स्थलों के साथ – साथ काले पत्थरों के पहाड़ घुमाते थे, एक बिन रास्ते वाले एक पहाड़ से चढ़ते और पीछे से उतारकर दूसरा पहाड़ घुमाते, एक चोटी नहीं बची थी जिसपर खड़े होकर हमने जबलपुर न देखा हो। गर्मी की छुट्टियों में नेपानगर जाना होता था, वहाँ नेपामिल के क्वार्टर जहाँ हमारे दादा जी रहते थे, उसके ठीक सामने लाल मुरुम की टेकड़ियाँ थी, शाम होते ही हम सब भाई बहन और पड़ौस के दोस्त मिलकर उन ऊँची टेकरियों पर चढ़ते और रात होने से पहले लौट आते, उन टेकरियों पर चढ़ने का मोह हमे अगले दिन की शाम होने तक इतना बैचैन करता था जिसे शब्दों में बयान करना कठिन है।
न जाने कितनी बार मदन महल की पहाड़ियों में घूमते हुए रानी दुर्गावती के किले और संतुलित शिला को देखा होगा, हर बार जाते हैं तो इन सभी से मिलते हैं, जैसे बचपन के साथी हों। कह सकते हैं कि इन रोमांचक ट्रेकिंग का आकर्षण बचपन से था।
5 – उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?
उसके बाद बक्सर का किला देखा था, जिसकी दीवारें बहुत ज्यादा चौड़ी थी, एक सुरंग देखी जिसे बंद कर दिया गया था, लोगों ने बताया कि इसमें से चार रास्ते देश के चारों दिशाओं में जाते थे। खूब मन क्या कि काश! कोई एक बार अंदर घूमने जाने देता।6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?@ मुझे अस्थमा है, अतः मेरे लिए अकेले यात्रा करना असंभव ही है। हमेशा अपने परिवार के साथ ही यात्रा करती हूँ। ईश्वर की कृपा से पूरे परिवार को एक जैसे ही शौक हैं, तो स्थान के चुनाव में भी कोई समझौता नहीं करना पड़ता।
7 – आपकी अन्य रुचियों के विषय में बताईए?
@ मैं विज्ञान की विद्यार्थी थी, लेकिन विवाह और परिवार की ज़िम्मेदारियों के साथ आगे की शिक्षा कला विषय से हुई। चौथी कक्षा में थी तभी अखबार में प्रकाशित एक छोटी सी कविता ने लेखन के प्रति रूचि को बनाए रखा, उसके बाद स्कूल में होने वाली प्रतियोगिताओं में पढ़ने के लिए बाल कविताएं बेटे को लिखकर देती रही। फिर बेटे ने ही ब्लॉग का रास्ता दिखाया और मेरे लिखे को पाठकों तक पहुँचाया। चित्रकारी का शौक भी था अतः ग्राफिक डिज़ाइनिंग में बहुत रूचि है, शौक के साथ -साथ कमाई भी 🙂
8 – घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है?
@ जैसे कहा गया है “घुम्मकड़ी एक प्रवृत्ति ही नहीं, एक कला भी है।” घुमक्क्ड़ी भूगोल के नक्शे में दिखने वाले स्थान को हमारे सामने एक जीती जागती प्रतिमा सा सामने ला खड़ा कर देती है जिसे हम स्पर्श कर सकते हैं, उसे महसूस कर सकते हैं।” उस स्थान की कला और संस्कृति, विरासत और महत्व को भली-भांति जान – समझ सकते हैं।
वन में शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक तंदुरुस्ती के लिए घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) अत्यंत आवश्यक है। प्रकृति के विभिन्न और विविध स्वरूपों के साथ साक्षात्कार कर पाने का सौभाग्य भी घुमक्क्ड़ी से सहज ही प्राप्त होता है। हम देख सकते हैं कि इस प्रकृति ने कहीं हरी – भरी कहीं बर्फीली पर्वतमालाओं से धरती को ढक रखा है, कहीं वनस्पति को तरसते रेतीले रेगिस्तान, तो कहीं असीम विस्तार तक फैले सागर – जल का विस्तार अपनी उच्छल तरंगों से मन को मोह लेता है।
कहीं बसंत का गुलज़ार रहता है और कहीं सर्दी के प्रकोप से पल भर के लिए मुक्ति नहीं मिल पाती। कहीं वर्षारानी की रिमझिम बूँदें व्यथित कर देने की सीमा तक झरती हैं , तो कहीं असहनीय गर्मी से व्याकुल चेतना उसकी कुछ बौछारें पाने को तरस जाती हैं। घुमक्क्ड़ी या देशाटन द्वारा ही इन विविधताओं को जाना-पहचाना और अनुभव किया जा सकता है।
विभिन्न रंग – रूप और बनावट वाले लोगो व उनके वेश – भूषा, रहन – सहन, रीती – रिवाजों, उत्सव – त्योहारों, भाषा- बोलियों, सभ्यता, संस्कृतियों के मनोहारी रूप भी उजागर हो जाते हैं।
9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?
@ हमने अभी तक यादगार नेपाल की यात्रा के साथ – साथ उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, जम्मू , पंजाब, कर्नाटक, बिहार, छत्तीसगढ़ के अनेक महत्वपूर्ण स्थानों की यात्रा की है।
इनमे से नेपाल की यात्रा प्रकृति के सानिध्य और पुरातात्विक व धार्मिक महत्व की दृष्टि से अत्यंत रोमांचक रही। लुम्बिनी में भगवान बुद्ध की जन्मस्थली, पोखरा, पोखरा व काठमांडू के मध्य स्थित मनकामना देवी के दर्शन करना (जहाँ केबल कार द्वारा जाते हैं) व काठमांडू में पशुपति नाथ के दर्शन करना अत्यंत प्रसन्नता व आत्मिक शांति प्रदान करने वाली यात्रा रही।
इसके बाद भी पिछले वर्ष की हुई पचमढ़ी में चौरागढ़ की चढ़ाई मेरे लिए सबसे यादगार यात्रा रही। साँस की तकलीफ के बाद भी लगभग साढ़े तीन घंटों में हमने चढ़ाई पूरी की और महादेव के दर्शन के पश्चात् बंदरों के आतंक और शाम होने पर अँधेरे हो जाने के भय से केवल दस मिनट रूककर वापसी शुरू कर दी थी। रास्ते में खाने व पानी की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। इतनी सीधी खड़ी चढ़ाई कि एक बार कोई गलती से गिरा तो राम नाम सत्य ही समझो। कुल सात घंटों में हम चढ़कर वापस गुप्त महादेव तक आ गए थे, जबकि नीचे स्थित गुप्त महादेव के तीन बार कोशिश के बाद भी दर्शन नहीं कर सके हम, इतनी पतली और कम हवा वाली सुरंग से हार गए।
जीवन की वास्तविकता गतिशीलता में निहित है. मनुष्य का अपने जीवन में विकास करने के लिये उन्मुक्त, स्वच्छंद और बन्धन हीन होना बहुत जरुरी है. उसके मन में नवीन वस्तुओं, दृश्यों और स्थानों के प्रति कौतुहल और जिज्ञासा होनी चाहिए।
इन यात्राओं से प्रकृति के सानिंध्य व मनोरंजन के साथ -साथ स्वास्थ्य लाभ तो होता है, मन- मष्तिस्क में उन स्थानों के प्रति जो अनेक प्रकार की जिज्ञासाजन्य कृतियां रहा करती हैं, उनका हल भी होता है।
नए स्थानों, नए नगरों, नयी संस्कृतियों, नयी वेशभूषा, नए रीति –रिवाज, प्राकृतिक सौन्दर्य और विविध प्रकार के जीव -जंतुओं को निकट से देखने, उनकी निकटता का आनंद लेने से ज्ञान वृद्धि होती है। मन की संकुचित भावना मिट जाती है. मस्तिष्क को चिंतनशील और क्रियाशील बनाने के लिये यात्रा करना बहुत जरुरी होता है। यात्रा करने से चूँकि वातावरण में भी परिवर्तन होता है, इसलिए मनुष्य के मन और मस्तिष्क में नवीनता आ जाती है।
10 – नये घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?
@ हालाकिं मैं भी अभी घुमक्कड़ी की प्राथमिक स्टेज पर ही हूँ, मुझसे कहीं अधिक जानने समझने वाले लोग हैं, फिर भी नए घुमक्क्ड़ों से कहना चाहूंगी कि आत्मनिर्भर बनने के लिये यात्रा बहुत ज़रूरी। सर्वश्रेष्ठ शिक्षा अनुभवों से प्राप्त होती है और ये अनुभव हमें यात्रा से प्राप्त होती है। हमारा ज्ञान भी समृद्ध होता है और हमारी सोच को व्यापकता मिलती है। तो घूमिए और घूमने के साथ – साथ धरती और प्रकृति को सहेजने में भागीदार बनिए।
सबसे महत्वपूर्ण बात कि बैग उठाईये, और निकल जाइए, बिना किसी पूर्व तैयारियों के “Don’t be scared to explore new places, don’t stick to the guidebook, don’t plan every single detail you’ll be disappointed, go with the flow and last but not the least, carry extra cash.”
आप से मिलकर बहुत खुशी हुई। अब शायद कुछ अनजाने लोगों का नंबर लगने लगा है।
हर्षिता जी, इस साक्षात्कार के बाद अब संध्या जी अनजानी कहाँ रही । वैसे भी ये पुरानी ब्लॉगर है ।
बहुत खुशी हुई आपके बारे मे पढ कर।
बहुत साहसी हैं संध्या जी,काम उम्र में ढेर सारी जिम्मेदारी निभाते हुए शौक को पूरा करती हैं ,बहुत अच्छा लगा इनसे मिलकर… वास्तव में भी मिल चुकी हूँ,हँसमुख,और मिलनसार संध्या जी का स्वास्थ्य सदा ठीक रहे और वे घूमती रहें अपनी पसंदीदा जगहों पर,लेखनी तो कमाल है इनकी..शुभकामनाएं
आपका स्नेह यूँ ही बना रहे। आपका और ललित जी का हार्दिक आभार
संध्या जी, आपकी घुमक्कड़ी हमे भी पसंद आई , ये सुनकर बड़ा अच्छा लगा कि हमारी जन्मभूमि बक्सर आपकी शुरुआती घुमक्कड़ी हुई है । संस्कारधानी भी हम खूब घूमे है । परिवार ,व्यापार के साथ घुमक्कड़ी का सामंजस्य बनाये रखना बड़ी बात है । सबसे बड़ी बात कि आप अस्थमा होने के बाद भी घूम रही है । ललित जी का भी आभार
बहुत ही जीवट हैं आप संध्या जी. जैसे मुड़ाव आये , वैसे ही मुड़ गई किन्तु अपने आपको कहीं खोने न दिया आपने।
आपकी बहुमुखी प्रतिभा, आपके स्वतन्त्र विचार और घुमक्कड़ी -सभी को चार चाँद लगाती है आपकी भाषा शैली। आप तो प्रेरणा हैं मेरे लिए…
संध्या जी को जबसे जानती हूँ जब ब्लॉगिंग का स्वर्णिम युग था । वो मेरे ब्लॉग के हर कथन पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती थी ।ओर मेरी भी यही कोशिश होती थी कि उनकी हर कविता पढू। आत्म विभोर हो वो नेरी ओर मैं उनकी कविताओं का अमृतपान करते थे।
आज उनके जीवन की आंतरिक गलियों में झांका तो पता चला कि वो मेरी ही तरह जबरजस्त घुमक्कड़ भी है।
इस अनछुए पहलू से अवगत कराया हमारे ललित जी ने 🙂 तो उनका भी आभार …ओर आगे भी कई घुमक्कड़ी किरदारों से रु ब रु करवाएंगे इसलिए बधाई के पात्र है ।
हम तो आपके लेखन के आज भी कायल हैं और हमेशा रहेंगे दर्शन जी। आपके इस स्नेह का आत्मिक स्वागत व प्यारा सा शुक्रिया ?
सचमुच कला घुमक्कड़ी, कहूँ अनूठी बात।
हर कोई इसमें कहाँ, पारंगत हो पात।।
सहज, सरल, साहित्य प्रेमी, और अद्भुत कला
ग्राफिक डिज़ाइनिंग में तज्ञ आदरणीया संध्या जी
को सादर साभिवादन शुभकामनाएं……
भाई ललित के लालित्य का कहना ही क्या….
संध्या जी से रूबरू कराने के लिए ललित जी आपका बहुत आभार व नमस्कार संध्या जी
आपके पिटारे से नए नए हीरो (डायमंड) की पहचान करवाने के लिए साधुवाद सर आपको
एक नए घुमक्कड़ से मुलाकात ओर जानकारी…..??…आपके पिटारे से नए नए हीरो (डायमंड) की पहचान करवाने के लिए साधुवाद सर आपको
बहुत सुंदर संध्या जी … यूं ही जीवन भर घूमते और आनंद लेते रहें ।
आपके बारे में प्रथम बार जाना और पहचाना ….
बड़ी ख़ुशी हुई इस साक्षात्कार के माध्यम से आपसे मिलकर ….
धन्यवाद ललित सर जी
Bahut hi su der parichay sandhya ji..babut khushi hui apse milkar..lalit ji bahut bahut dhnywad apko .
बहुत बहुत बधाई और आभार जीवंत सन्देश
आपके बारे में मैं पहली बार जान और पढ़ रहा हूँ,
बहुत ही बढ़िया आप के बारे में जानकर अच्छा लगा और ललित सर् का भी शुक्रिया
संध्या जी सचमुच आप ने आपने खुद के जीवन से एक अच्छा उदहारण प्रस्तुत किया है जीवन के सामंजस्य का ।
बहुत अच्छा लगा आपके बारे में जानकार । आभार ललित शर्मा जी का आपसे परिचय करवाने के लिए ।
आप सभी का बहुत – बहुत धन्यवाद और ललित जी का विशेष आभार आप सभी से परिचित करवाने के लिए …