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श्रीराम मंदिर अयोध्या की ध्वजा और आध्यात्मिक भारत की पुनर्स्थापना

रेखा पाण्डेय (लिपि)

सनातन धर्म में ध्वजा केवल एक ध्वज नहीं, बल्कि देवालय की चेतना, ऊर्जा और दिव्यता का मूर्त प्रतीक मानी जाती है। मंदिरों के शिखर पर फहराती ध्वजा यह संकेत देती है कि उस गर्भगृह में विराजमान देवी-देवताओं की दैवीय शक्ति सक्रिय है। इसलिए हिंदू परंपरा में कोई भी देवालय या पूजा स्थल ध्वजा के बिना अधूरा माना जाता है।

मंदिर के शिखर पर स्थापित ध्वज और ध्वज स्तंभ को पृथ्वी और ब्रह्मांड के बीच की कड़ी माना गया है। इसे एक्सिस मुंडी अर्थात विश्व-अक्ष कहा जाता है, जो स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल को जोड़ने वाली पवित्र धुरी है। यह वही केंद्र है जहाँ से दैवीय ऊर्जा प्रवाहित होकर मानव जीवन को संरक्षण, शक्ति और दिशा प्रदान करती है। विभिन्न संस्कृतियों में ध्वज स्तंभ के रूप भिन्न हो सकते हैं, किंतु उसका मूल भाव एक ही रहता है—पवित्रता और दिव्य उपस्थिति का बोध।

सनातन परंपरा में ध्वजा के रंग और प्रतीक मंदिर में विराजमान देवता के स्वरूप के अनुरूप चुने जाते हैं। एक प्रचलित कथा के अनुसार देवताओं और असुरों के मध्य हुए युद्धों में देवताओं ने अपने-अपने रथों पर जो चिन्ह धारण किए, वही उनके ध्वज बने। यहीं से ध्वजारोहण की परंपरा आरंभ हुई। मंदिर के शिखर पर ऊँचाई में फहराती ध्वजा मानव के मन से अज्ञान, अहंकार, ईर्ष्या और द्वेष को दूर कर आध्यात्मिकता, सकारात्मकता और विजय का भाव भरती है। प्राचीन काल में ये ध्वज तीर्थयात्रियों के लिए दिशा-सूचक का भी कार्य करते थे। गरुड़ पुराण के अनुसार मंदिर की ध्वजा उस क्षेत्र की पवित्रता, शक्ति और आध्यात्मिक पूर्णता का प्रतीक होती है।

अयोध्या, जिसे भारत की आध्यात्मिक राजधानी कहा जाता है, वहाँ श्रीराम मंदिर का निर्माण केवल एक भवन का निर्माण नहीं, बल्कि पाँच सौ वर्षों की आस्था, संघर्ष और विश्वास की विजय है। वर्ष 2020 में मंदिर का शिलान्यास हुआ और 22 जनवरी 2024, सोमवार, पौष शुक्ल द्वादशी को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। विवाह पंचमी 25 नवंबर 2025 को श्रीराम के विवाह उत्सव के साथ मंदिर को शास्त्रीय दृष्टि से पूर्णता प्राप्त हुई, क्योंकि ध्वजारोहण के बिना मंदिर को पूर्ण नहीं माना जाता। शास्त्रों में ध्वजारोहण को अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक बताया गया है।

श्रीराम की भव्य मूर्ति का निर्माण मैसूर, कर्नाटक के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा किया गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कर-कमलों से श्रीराम मंदिर में भव्य ध्वजारोहण सम्पन्न हुआ। यह भगवा ध्वज मात्र एक कपड़ा नहीं, बल्कि श्रीराम की दिव्य शक्ति, रामराज्य की भावना और सनातन धर्म की पुनः प्रतिष्ठा का प्रतीक है।

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उत्तर भारतीय नागर स्थापत्य शैली में निर्मित मंदिर शिखर पर यह ध्वजा सुशोभित है, जबकि चारों ओर 800 मीटर का परकोटा दक्षिण भारतीय स्थापत्य परंपरा में डिज़ाइन किया गया है। यह समन्वय भारत की सांस्कृतिक और स्थापत्य विविधता को दर्शाता है। ध्वजा का स्वरूप वाल्मीकि रामायण के वर्णनों से प्रेरित है। समकोण त्रिभुजाकार यह ध्वज 20 फुट लंबा और 10 फुट ऊँचा है, जिसे पैराशूट फैब्रिक और रेशमी धागों से तैयार किया गया है ताकि वह मौसम और तेज़ हवाओं का सामना कर सके। तीन परतों वाले इस मजबूत ध्वज की किनारियों पर स्वर्णिम झालर और प्रतीक चिन्हों पर बारीक कढ़ाई की गई है। भगवा रंग त्याग, वैराग्य और सनातन परंपरा की पहचान है।

इस ध्वज पर तीन प्रमुख प्रतीक अंकित हैं—ॐ, सूर्य और कोविदार वृक्ष। सूर्य भगवान श्रीराम के सूर्यवंशी होने का प्रतीक है। सूर्य के मध्य में स्वर्ण धागों से बना ॐ, सृष्टि की आदि ध्वनि और सनातन चेतना का प्रतीक है। नीचे अंकित कोविदार वृक्ष त्रेतायुग का पवित्र वृक्ष माना गया है। वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड और हरिवंश पुराण के अनुसार कोविदार अयोध्या का राजकीय वृक्ष था। जब भरत श्रीराम को लेने चित्रकूट गए, तब उनके रथ पर केसरिया ध्वज था जिस पर कोविदार वृक्ष अंकित था। लक्ष्मण ने उसी ध्वज को देखकर श्रीराम को अयोध्या की सेना के आगमन का संकेत दिया था।

वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड और हरवंश पुराण के अनुसार कोविदार अयोध्या का राजकीय वृक्ष था।जब भरत ,श्री राम को लेने जिस रथ से चित्रकूट गए थे तो उस रथ में केसरिया ध्वज जिसपर कोविदार वृक्ष बना था।लक्ष्मण उसे दूर से देखकर श्री राम से कहा प्रभु अयोध्या की सेना आ रही है।अर्थात कोविदार वृक्ष अयोध्या का प्रतीक चिन्ह था।
“ एष वै सुमहान् सरी श्रीमान् विटपी सम्प्रकाशते।
विराजत्युज्ज्वलस्कन्ध: कोविदारध्वजो रथे ।।18।।”अयोध्या कांड षण्णवति:सर्ग:। श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण।।

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राम मंदिर के 161 फीट ऊँचे शिखर पर 42 फीट ऊँचे ध्वजदंड पर यह ध्वजा फहराई गई है। इसे फहराने और उतारने के लिए आधुनिक ऑटोमेटिक प्रणाली लगाई गई है, जो भारतीय वायुसेना की तकनीकी सहायता से स्थापित की गई। यह व्यवस्था परंपरा और आधुनिकता के अद्भुत समन्वय का उदाहरण है।

प्राण-प्रतिष्ठा के समय गर्भगृह पूर्ण रूप से तैयार था, जबकि परिसर में शिव, गणेश, सूर्य, हनुमान, भगवती, अन्नपूर्णा और शेषावतार के सात उपमंदिर निर्माणाधीन थे। इन उपमंदिरों के शिखरों पर ध्वजारोहण और अभिषेक का आयोजन 31 दिसंबर 2025 को, श्रीराम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की दूसरी वर्षगांठ के अवसर पर, प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में किया जाएगा। यह आयोजन न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना का भी उत्सव होगा।

 

लेखिका साहित्यकार एवं हिन्दी व्याख्याता हैं।