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भारत, सनातन संस्कृति और संघ: पश्चिमी झूठे विमर्श के विरुद्ध ऐतिहासिक सत्य

प्रहलाद सबनानी

भारत आज विश्व के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक परिदृश्य को बदलने में अपनी प्रभावी भूमिका निभा रहा है। पश्चिमी देशों के वर्चस्व को पूर्वी देशों से चुनौती मिल रही है, जिसका नेतृत्व भारत करता हुआ दिखाई दे रहा है। इसलिए, अमेरिका के कुछ विघ्नसंतोषी संस्थानों सहित कुछ विकसित देश सनातन हिन्दू संस्कृति, भारत एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निराधार आरोप लगाकर झूठे विमर्श गढ़ने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। दरअसल, पश्चिमी देशों की समस्या यह है कि वे केवल अपनी आधी अधूरी जानकारी को ही पूर्ण जानकारी मानते हुए अपने विचार तय करते हैं। जबकि, उनके विचार स्पष्टत: सत्यता की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं। भारत पर आक्रांताओं एवं अंग्रेजो के शासनकाल में भी सनातन हिंदू संस्कृति एवं भारतीय संस्कारों पर जो विचार गढ़े गए थे, वे पूर्णत: गलत पाए गए थे।

जैसे, सनातन संस्कृति के संस्कार रूढ़िवादी हैं एवं यह विज्ञान के धरातल पर खरे नहीं उतरते हैं, आदि, आदि। उनके द्वारा सनातन संस्कृति के बारे में गढ़े गए विचार पूर्णत: उनके आधे अधूरे ज्ञान पर ही आधारित थे। परंतु, आज सनातन हिंदू संस्कृति के संस्कार विज्ञान के धरातल पर खरे पाए जा रहे हैं। पश्चिमी देशों के तथाकथित विद्वानों में सनातन हिंदू संस्कृति, भारत एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में जानकारी का पूर्णत: अभाव है। अमेरिका से प्रकाशित न्यूयॉर्क टाइम्स नामक एक समाचार पत्र में हाल ही में प्रकाशित एक लेख में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में असत्य विचार प्रकट किए गए हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित यह आलेख न तो भारत के सामाजिक यथार्थ का परिपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है, न ही संघ की वैचारिक और संगठनात्मक वास्तविकता को। इस लेख में तथ्यों, आंकड़ों और स्वतंत्र स्रोतों का संतुलित उपयोग नहीं किया गया है और यह लेख पूर्णत: पूर्वाग्रहों पर आधारित दिखाई देता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास एवं संघ के स्वयंसेवकों द्वारा सम्पन्न किए गए अतुलनीय कार्यों के बारे में इन महानुभावों को कोई जानकारी ही नहीं है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना वर्ष 1925 में हुई थी और इसके साथ ही संघ ने देश के विभिन्न नगरों एवं ग्रामों में शाखाओं की स्थापना करते हुए भारत के युवाओं में राष्ट्रीयता के भाव को जागृत करना प्रारम्भ कर दिया था। वर्ष 1947 आते आते तो भारत में संघ के स्वयसेवकों की एक बड़ी फौज खड़ी हो चुकी थी। वर्ष 1947 में जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा को पार करने की कोशिश की थी तब संघ के स्वयसेवकों ने कश्मीर की सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बिना किसी प्रशिक्षण के लगातार नजर बनाए रखी थी और तब पाकिस्तानी सेना को रोकने हेतु भारतीय सेना के जवानों के साथ संघ के कई स्वयसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी थी। साथ ही, भारत में विभाजन के समय दंगे भड़कने के दौरान पाकिस्तान से जान बचाकर आए हिंदू शरणार्थियों की सहायता के लिए संघ के स्वयसेवकों ने 3,000 से अधिक राहत शिविर भारत में लगाए थे।

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कश्मीर के भारत में विलय के समय पाकिस्तान की सेना कबाईलियों के भेष में भारत की सीमा में घुस रही थी, ऐसे में तात्कालीन केंद्र सरकार यह फैसला नहीं ले पा रही थी कि इन परिस्थितियों के बीच क्या किया जाय क्योंकि उस समय कश्मीर के महाराजा श्री हरी सिंह जी भारत में कश्मीर के विलय सम्बंधी प्रस्ताव पर अपने हस्ताक्षर नहीं कर पाए थे। इन विकट परिस्थितियों के बीच सरदार पटेल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरु गोलवलकर जी से मदद मांगी और उन्हें कश्मीर में महाराजा श्री हरी सिंह जी से मिलने भेजा। श्री गुरु जी तुरंत कश्मीर गए एवं महाराजा श्री हरी सिंह जी को समझाया और कश्मीर के भारत में विलय सम्बंधी प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करा लिए और उसे दिल्ली भेज दिया। इस प्रकार उन्होंने पाकिस्तानी सेना के पूरे कश्मीर पर कब्जे को विफल करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया।

दादरा, नगर हवेली और गोवा को मुक्त कराते हुए भारत में विलय में भी संघ के स्वयसेवकों की प्रमुख भूमिका रही थी। 21 जुलाई 1954 को दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया था, 28 जुलाई 1954 को नरोली और फिपारिया को मुक्त कराया गया और फिर राजधानी सिलवासा को मुक्त कराया गया था। संघ के स्वयसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुर्तगाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया था एवं दादरा नगर हवेली को पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त कराकर भारत सरकार को सौंप दिया था।

भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु ने गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से साफ इंकार कर दिया था अतः वर्ष 1955 में संघ के स्वयंसेवकों ने श्री जगन्नाथ राव जोशी जी के नेतृत्व में गोवा पहुंच कर गोवा मुक्ति आंदोलन प्रारम्भ किया, जिसके परिणामस्वरूप जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कई कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा सुनाई गई। हालत बिगड़ते देख अंततः भारतीय सैनिकों ने हस्तक्षेप किया और वर्ष 1961 में गोवा को आजादी प्राप्त हुई।

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इसी प्रकार वर्ष 1962 में भी चीन के साथ भारत के युद्ध के समय संघ के स्वयसेवकों ने भारतीय सेना की भरपूर मदद की थी। संघ के स्वयंसेवक पूरे उत्साह के साथ सेना की मदद के लिए सीमा पर पहुंचे थे। स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से जवानों की मदद में पूरी ताकत लगा दी थी। सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद और ययां तक कि शहीदों के परिवारों की चिंता भी संघ के स्वयसेवकों ने की थी। संघ के इस महान योगदान को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु ने भी पहचाना था और 26 जनवरी 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड में संघ के स्वयंसेवकों को शामिल होने का निमंत्रण दिया था। गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने के लिए महीनों की तैयारी की जाती है परंतु केवल 2 दिन पहिले मिले निमंत्रण पर संघ के 3,500 स्वयंसेवक गणवेश में गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल हुए थे।

वर्ष 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहायता की आवश्यकता पड़ी थी। आपने देश में कानून व्यवस्था की स्थिति को सम्भालने और विशेष रूप से दिल्ली की यातायात व्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित करने हेतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अनुरोध किया था ताकि इन कार्यों में व्यस्त पुलिसकर्मियों का भारतीय सेना की मदद में उपयोग किया जा सके। युद्ध के इस कठिन समय में घायल जवानों को सबसे पहिले रक्तदान देने में भी संघ के स्वयंसेवक ही सबसे आगे रहे थे। युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ हटाने का कार्य भी संघ के स्वयसेवकों द्वारा ही सम्पन्न किया गया था।

भारत में शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने हेतु विद्या भारती, शिक्षा भारती, एकल विद्यालय, वनवासी कल्याण आश्रम, स्वदेशी जागरण मंच, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जैसे संगठनों की स्थापना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने की। यह समस्त संगठन आज शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय कार्य करते हुए भारतीय संस्कृति के संस्कारों को भारतीय युवाओं के बीच ले जाने का कार्य सफलतापूर्वक कर रहे हैं। 1952 में गोरखपुर में प्रारंभ हुए प्रथम विद्यालय के साथ विद्या भारती वर्तमान में 12,830 औपचारिक विद्यालय तथा 11,350 अनौपचारिक केंद्र के साथ कुल 24,180 प्राथमिक, माध्यमिक, वरिष्ठ माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा स्तर पर संचालित करती है जिनमें अध्ययनरत छात्रों की संख्या लगभग 34,48,000 तथा शिक्षकों की संख्या 150,000 है।

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वर्ष 1955 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की गई थी। भारतीय मज़दूर संघ विश्व का पहिला ऐसा मजदूर आंदोलन था, जिसने विध्वंस के स्थान पर निर्माण की धारणा की नीति अपनाई थी। विनिर्माण इकाईयों में विश्वकर्मा जयंती का चलन भारतीय मजदूर संघ ने ही प्रारम्भ किया था। आज भारतीय मजदूर संघ विश्व का सबसे बड़ा, शांतिपूर्ण और रचनात्मक मजदूर संगठन बन गया है।

सेवा भारती, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा चालित एक प्रकल्प है। यह मुख्यत: वनवासी क्षेत्रों में कार्य करता है। इसके मुख्य कार्य हैं – शिक्षा, संस्कार, सामाजिक जागरूकता, स्वरोजगार, धर्म-परिवर्तन से वनवासियों की रक्षा, आदि। सेवा भारती, भारत के दूरदराज और दुर्गम क्षेत्रों में 2 लाख से अधिक सेवा कार्य कर रहा है। लगभग 35,000 एकल विद्यालयों में 10 लाख से अधिक छात्र अपना जीवन संवार रहे हैं। सेवा भारती ने जम्मू कश्मीर से आतंकवाद में अनाथ हुए 57 बच्चों के गोद लिया है जिनमें 38 मुस्लिम एवं 19 हिंदू बच्चे शामिल हैं।

वर्ष 1971 में ओड़िसा में आए भयंकर चक्रवात, वर्ष 1977 में आंध्रप्रदेश में आए चक्रवात, भोपाल गैस त्रासदी के दौरान, वर्ष 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों, वर्ष 2001 में गुजरात में आए भूकम्प, उत्तराखंड में आई भयंकर बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा में संघ के स्वयसेवकों ने राहत और बचाव कार्यों में हमेशा आगे रहकर भागीदारी की है।

महात्मा गांधी ने वर्ष 1934 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक शिविर की यात्रा के दौरान वहां पूर्ण अनुशासन देखा और छुआछूत की अनुपस्थिति पायी। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से पूछताछ की और जाना कि वहां लोग एक साथ रह रहे हैं तथा एक साथ भोजन कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में इसी प्रकार के विचार बाबा साहेब अम्बेडकर के भी थे।

भारतीय सनातन हिन्दू संस्कृति, भारत एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में हमें अपनी जानकारी को सुदृद्ध करना चाहिए, इसके बाद ही हम उक्त के बारे में गढ़े जा रहे झूठे विमर्श को ध्वस्त करने में सफल हो सकेंगे।