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धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण : मकर संक्रांति

दिनेश शर्मा दिनेश

मकर संक्रान्ति भारत का एक प्रमुख त्योहार है। जिसे लगभग सम्पूर्ण भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पंजाब में लोहड़ी, उत्तराखंड में उत्तरायणी, असम में बिहू, गुजरात में उत्तरायण, कर्नाटक में एलु-बिरोधु, केरल व तमिलनाडु में पोंगल और बिहार के कुछ जिलों में यह पर्व ‘तिला संक्रांत’ नाम से भी मनाया जाता है। जबकि सम्पूर्ण उत्तर भारत में और पड़ोसी देश नेपाल में भी यह पर्व मकर संक्रांति के नाम के नाम से जाना जाता है। वहीं हरियाणा में पंजाबी समाज माघी-लोहड़ी तथा शेष हरियाणवी जन-मानस मकर संक्रांति को ‘सकरात’ के नाम से मनाता है।

इस पर्व पर उत्तर प्रदेश, बिहार में काली उड़द दाल और चावल से बनी खिचड़ी खाने की खास परंपरा है। साथ ही तिल और गुड़ से बनी चीजें भी खाई जाती हैं और उनका दान किया जाता है। बिहार में तो इस दिन खासतौर से दही-चिवड़ा भी खाया जाता है। गुजरात में उत्तरायण पर पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है, जो पूरे 2 दिनों तक चलता है। इस दिन यहां उंधियू और गुड़-मूंगफली से बनी चिक्की खाने का प्रचलन है। इस पर्व पर पंजाब और हरियाणा के पंजाबी समाज में मकर संक्रांति को माघी और लोहड़ी के नाम मनाते हैं।

हालांकि लोहड़ी मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। जिसमें आग जलाकर उसकी परिक्रमा करते हुए पूजा की जाती है। साथ ही रेवड़ी और मूंगफली बांटे जाते हैं। केरल में मकर विलक्कू के दिन लोग सबरीमाला मंदिर जाकर मकर ज्योति के दर्शन करते हैं। कर्नाटक में एलु बिरोधु के अवसर पर महिलाएं आसपास के परिवारों में एलु बेला यानी ताजे फल, गन्ने, तिल, गुड़ और नारियल बांटती हैं। तमिलनाडु में पोंगल 4 दिन तक चलता है। पहले दिन इंद्रदेव दूसरे दिन सूर्यदेव, तीसरे दिन मट्टू यानी नंदी या बैल की पूजा और चौथे दिन काली मंदिर में कन्या पूजा होती है। इसी प्रकार असम में बिहू का त्योहार पर नारियल के लड्डू, तिल पीठा, घिला पीठा और बेनगेना खार आदि पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं। हरियाणा में सकरात के दिन खिचड़ी, मूंगफली और रेवड़ी आदि बांटे जाते हैं।

भारतीय ज्योतिष में सूर्य के मार्ग को 12 राशियों में बांटा गया है। सूर्य अपने मार्ग पर चलते हुए जब एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो विस्थापन की इस क्रिया को संक्रांति कहते हैं। इसके अनुसार ही जिस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, उस दिन मकर संक्रांति मनाया जाता है। मकर संक्रांति में ‘मकर’ शब्द मकर राशि की ओर संकेत करता है तथा ‘संक्रांति’ से अभिप्राय संक्रमण अर्थात् प्रवेश करना है।

स्कंध पुराण में मकर संक्रांति का धार्मिक महत्त्व विस्तार से बताया गया है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन मलमास के समापन के साथ माघ महीने की शुरुआत होती है। शादी-विवाह जैसे शुभ और मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। माना जाता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस वापस लौटता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण के समय को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है।

इसलिए मकर संक्रांति एक तरह से देवताओं की सुबह होती है। इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध और अनुष्ठान का बहुत महत्व है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार मकर संक्रांति का त्योहार इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन पिता सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि मकर में पूरे एक महीने के लिए आते हैं। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने इस दिन अपने पूर्वजों के लिए तर्पण किया था। कहा जाता है की इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।

महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपनी देह का त्याग किया था। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माओं को पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है। इस दिन नदी स्नान करके सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद दान-दक्षिणा आदि का कार्य किया जाता है। इस दिन तिल, गुड़, कंबल खिचड़ी आदि का दान बेहद शुभ माना जाता है। मकर संक्रांति पर तिल खाना, खिलाना, दान करने बेहद पुण्य का काम माना जाता है।

इसके साथ-साथ इस पर्व को मनाने के कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होने लगते हैं जिससे मौसम में बदलाव आना शुरू हो जाता है। शरद ऋतु धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है और बसंत का आगमन होने लगता है। धीरे-धीरे सूरज की किरणें सीधी धरती पर पढ़ने से मौसम में गर्माहट आने लगती है। जिसके चलते फसलों का विकास तेजी से होने लगता है। मकर संक्रांति पर्व ऐसे समय में आता है जब किसान रबी की फसल लगाकर खरीफ की फसल घर ले आते हैं। इसलिए मकर संक्रांति पर्व पर खरीफ की फसलों धन, मक्का, गन्ना, मूंगफली, उड़द का इस्तेमाल किया जाता है। इस दिन इन्हीं से बने पकवानों का सेवन किया जाता है।

सकरात के अवसर पर हरियाणा में ग्रामीण परिवेश में लोग सुबह-सुबह उठ जाते हैं। सूर्य उदय होने पहले उठकर नहा लेते हैं। महिलाएं नहाकर घर जके बाहर आग जलाती हैं। 25-30 वर्ष पहले तो बुजुर्ग घर के बाहर गली में आग जलाकर बैठ जाते थे। घंटों तक आग के पास सेंकते रहते और हुक्का गुड़गुड़ाते रहते थे। आज भी अधिकतर घरों की महिलाएं भी सुबह ही देसी घी का हलवा बनाती हैं और घर के सभी सदस्यों का मुंह मीठा करवाती हैं।

सकरात के दिन बूढ़ों की बहुत सेवा होती थी। घर की बहू के मायके से सभी बुजुर्गों के कंबल और महिलाओं के शाल आते थे। बहू अपनी सास-ससुर व बुजुर्ग दादी सास -दादा ससुर को कंबल ओढ़ाती थी। ग्रामीण भाषा में इसे बूढ़ों को मनाना कहते थे। इस दिन कई गांवों में बुजूर्ग रूठकर घर से दूर जा बैठते थे। तब घर की महिलाएं पड़ोसनों को साथ लेकर गीत गाती हुई जाती थी और कंबल या चद्दर ओढ़ाकर बुजुर्ग को मनाकर घर लाती थी। इस अवसर पर हरियाणा में जकड़ियाँ गाई जाने की परम्परा रही है-

म्हारै सबतै बड़ा त्योहार मान्नै सै सकरात नै,
ससुरे का कंबल, सासू की तील,
ऊपर रुपये धरकै, मनावण चली परात मैं।
मेरे पीहर तै आया बाणा थारे मान मैं,
मनै आसीरवाद दे दो सास-ससुर जी,
मैं आई सूं थारे सम्मान मैं।

इस अवसर पर हर घर में खुशी का माहौल होता था। बुजुर्गों की खूब सेवा होती थी। आज भी यह परंपरा पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है और गाँवों में सकरात के दिन आज भी ऐसा किया जाता है। इस दिन कुछ महिलाएं अपनी सास के मायके जाकर सास के भाइयों को भी कंबल ओढ़ाकर आती थी। हरियाणा में लोग इस त्योहार अपनी बेटी के ससुराल जाकर उन्हें खाने की वस्तुएं जैसे तिल लड्डू, मूंगफली, रेवड़ी आदि देकर आते हैं। जिसमें साथ मायके पक्ष की ओर से रजाई, कंबल, शाल, तिल, गुड, चावल आदि वस्तुएं भेजी जाती हैं।

पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते चलन के कारण इन परंपराओं का रंग धूमिल पड़ रहा है। लेकिन गांव, देहात तथा छोटे शहरों में आज भी लोग अपनी परंपरा और संस्कृति को जिन्दा रखे हुए हैं तथा मकर संक्रांति पर बड़े बुजुर्गों का सम्मान पारंपरिक रूप से करते हैं। निसंदेह यह त्योहार हमें प्रकृति के निकट रहने और भाईचारे का संदेश भी देता हैं।

 

– दिनेश शर्मा दिनेश
गाँव फरल जिला कैथल
हरियाणा – 136021
मोबाइल : 9355891858
ईमेल : DINESHPHARAL@GMAIL.COM

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