भारतीय ऋषी परंपरा और शिक्षा संस्कृति पुस्तक का लोकापर्ण एवं काव्य गोष्ठी
अलीगढ़ 9 अगस्त/ शहर के जीटी रोड स्थित पीएचसी बन्ना देवी के समीप एक सभा स्थल पर भारतीय ऋषि परंपरा और शिक्षा संस्कृति पुस्तक का लोकार्पण एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन शनिवार को किया गया। जिसमें साहित्याकारों और कवियों ने अपनी रचना प्रस्तुत कर सभी को भाव- विभोर कर दिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. शुभदा पांडेय और प्रा. दिनेश चंद्र शर्मा ने मां सरस्वती के चित्र पर पुष्प अर्पण कर शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि उत्कृष्ट शिक्षक ही श्रेष्ठ शिष्य के निर्माता होता हैं। हमारी प्राचीन शिक्षा रोजगार नहीं परोपकार से अपनी पाठशाला आरंभ करती थी। छात्र पुस्तकों से अधिक गुरूजनों से सीखते थे। जब वशिष्ठ जैसे गुरू होते हैं, तभी राम जैसे वैश्विक व्यक्तित्व के शिष्य होते थे। मुजीब शहजर साहब ने कहा कि यह पुस्तक सही समय पर छात्रों के सर्वांगीण विकास की पौराणिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए वर्तमान में शैक्षिक दर्शन की अवधारणा स्पष्ट करती है।
अलीगढ़ विश्व विद्यालय के जानी फास्टर सर ने कहा कि शिक्षा से हमारा वैचारिक परिमार्जन होता है, और इस दिशा में यह कृति और ॠषियों के विचार आज के समय में सर्वोपरि उपादेयता प्रमाणित करती है। प्रखर समीक्षक डॉ. राजेश कुमार ने सनद कुमार और नारद और के पौराणिक संवाद से शिक्षा, ज्ञान, वाणी, प्राण और मानवीयता की परिभाषाएं रखते हुए शिक्षा को आत्मोत्सर्ग का विधान बताया।
दिनेश चंद्र शर्मा ने कहा कि इन पुस्तकों की आज समाज में महती आवश्यकता है, भारत के विश्व गुरू की प्रमाणिकता इन्हीं ॠषि- मुनियों के ज्ञान और त्याग की शिक्षा- प्रणाली से श्रेष्ठ है। इस मौके पर ओम वार्ष्णेय, डॉ. दौलतराम शर्मा, दिनेश चंद्र शर्मा, डॉ. राजेश सिंह, गाफिल स्वामी, चाचा उदयभानी, जीतेन्द्र मित्तल, डाॅ राजेंद्र वार्ष्णेय, डाॅ इंदिरा गुप्ता, श्रीमती गीतू माहेश्वरी , मनोज अलीगढ़ी, डाॅ कमाल अहमद, मौजूद रहे।