राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के वार्षिक उद्बोधन के प्रमुख बिंदु
आज नागपुर में आयोजित विजयादशमी उत्सव के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने अपने वार्षिक उद्बोधन में कई प्रमुख विषयों पर चर्चा की, जिनमें सामाजिक एकता, सुरक्षा, सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण, और महिलाओं के प्रति सम्मान शामिल थे। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विजय दशमी के मौके पर कहा है कि कई शक्तियां चाहती है कि भारत आगे ना बढ़े कुछ शक्तियां चाहती हैं कि भारत आगे ना बढ़े. कारण बनता है असंतोष को व्यक्त करने के भी तरीके हमारे संविधान ने बताए प्रजातांत्रिक रीति से हमको जो अच्छा नहीं लगता उसका विरोध हम कर सकते हैं, करना भी चाहिए, अगर अपने को अच्छा नहीं लगता चुप रहो, ऐसा कोई नहीं कह सकता, परंतु उसकी एक पद्धति है उसका पालन होना चाहिए।
अभी गणेश उत्सव के पथराव विसर्जन के जुलूस पर हुआ, क्यों हुआ कोई कारण नहीं, ऐसी बातों का नियंत्रण त्वरित करना प्रशासन का काम है, कई करते हैं, कहीं थोड़ी ढिलाई भी दिखती है परंतु प्रशासन आते तक तो समाज को भुगतना पड़ता है तो इसलिए समाज को तैयार रहना चाहिए सावधान रहना चाहिए, तैयार रहना चाहिए गुंडागर्दी नहीं चलने देनी, गुंडागर्दी किसी की भी हो वो क्षम्य नहीं, अपना और अपनों का प्राण और चीज वस्तु इसकी रक्षा करना यह अपना अधिकार है मूलभूत अधिकार है। बातें प्रशासन को पुलिस को करनी है उनको ही करनी देनी चाहिए, उनके आते तक अपने प्राण को बचाना अपनों के प्राणों को बचाना ये अपना अधिकार है उसके लिए समाज को सजग रहना पड़ेगा।
प्रमुख बिंदु:
संगठित और सशक्त समाज की आवश्यकता: भागवत ने हिंदू समाज को एकजुट और सशक्त होने की अपील की। उन्होंने कहा कि दुर्बल और असंगठित रहना एक अपराध है। आज के समय में संगठित समाज ही बाहरी और आंतरिक चुनौतियों से निपट सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर समाज एकजुट रहेगा, तो न केवल सुरक्षा बल्कि विकास और उन्नति के रास्ते भी मजबूत होंगे
सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का क्षरण: भागवत ने आधुनिक समाज में मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के जरिए फैल रही बुरी आदतों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि बच्चों और युवाओं पर इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है, जिससे नैतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है। उन्होंने इस पर कड़ी निगरानी रखने और युवाओं को सकारात्मक मूल्यों की ओर प्रेरित करने की आवश्यकता पर जोर दिया
महिला सुरक्षा और सम्मान: भागवत ने महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में महिलाओं का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है और हमें इस परंपरा का पालन करना चाहिए। महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों को रोकने के लिए समाज को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने कोलकाता की एक घटना का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे ऐसी घटनाएं पूरे समाज को कलंकित करती हैं
राष्ट्रीय एकता और बाहरी खतरों से सुरक्षा: भागवत ने देश के विभिन्न हिस्सों, जैसे पंजाब, जम्मू-कश्मीर, और पूर्वोत्तर राज्यों में हो रही अशांत गतिविधियों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बाहरी ताकतें समाज में विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रही हैं, और हमें सतर्क रहना चाहिए। प्रशासन को भी ऐसी घटनाओं पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए, लेकिन समाज को भी अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी उठानी होगी
समाज में सद्भाव और समरसता: उन्होंने सामाजिक समरसता पर जोर देते हुए कहा कि सभी वर्गों और जातियों के बीच आपसी भाईचारा होना आवश्यक है। समाज में सौहार्द और परस्पर सहयोग से ही हम एक मजबूत और एकजुट देश का निर्माण कर सकते हैं
मोहन भागवत ने अपने भाषण में समाज को आत्मनिर्भर बनने और अपनी समस्याओं का समाधान खुद करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि समाज की जागरूकता और एकजुटता से ही देश की चुनौतियों का समाधान संभव है।