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घुमक्कड़ी वह दवा है जो नीरस जीवन को ऊर्जा देती है : रितेश गुप्ता

घुमक्कड़ जंक्शन पर आज आपको हम मिलवा रहे हैं आगरा निवासी पेशे से एकाऊंटेंट रितेश गुप्ता से। इन्होंने अपने पेशे से समय निकाल कर भारत के ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक स्थलों का भ्रमण किया एवं उससे सकारात्मक उर्जा ग्रहण की। इनका कहना है कि मनुष्य को जीवन में सफ़ल होने के लिए सकारात्मक ऊर्जा घुमक्कड़ी से मिलती है। आईए ललित शर्मा के साथ उनसे करते हैं घुमक्कड़ी की बातें एवं जानते हैं उनके अनुभव……

1-आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?@ सर्वप्रथम सभी पाठकों को मेरा नमस्कार । मेरा जन्म उत्तर प्रदेश आगरा जिले में ही हुआ था और शिक्षा-दीक्षा भी इसी शहर से की हुई है । मैंने B.COM के साथ कंप्यूटर कोर्स किया हुआ हैं । कंप्यूटर एकाउंट में लगभग महारत हासिल की हुयी हैं कह सकते है । आगरा से हमारा रिश्ता बचपन से ही जुड़ा हुया हैं, यहाँ की गलियों में पले और बड़े हुए है । बचपन में जहाँ हम किराए पर रहते थे वहाँ की छत से ताजमहल और लालकिला दिखाई देता था । आगरा में रहकर हम लोग मुश्किल से ही यहाँ के स्मारक देखने जा पाते हैं । खैर मैं अपने शहर आगरा से प्यार करता हूँ, यहाँ पर घूमना रहना मुझे पसंद हैं। हमारे आगरा शहर का नारा हैं “Green Agra Clean Agra” ।

2-वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं ?

@ मेरा वर्तमान में मेरा कार्यक्षेत्र आगरा ही है और अपनी दैनिक दिनचर्या में मैं अपने प्रोफेशन (एकाउंटेंस ) में नम्बर्स और कंप्यूटर से डील करता हूँ । मेरा मुख्य काम कंप्यूटर एकाउंट, सेल्स टैक्स, इन्कम टैक्स, ऑनलाइन कार्य और अन्य सोफ्वेयर में काम करना और सलाह देना होता हैं ।
मैं एक सयुक्त परिवार में रहता हूँ । मेरे घर में सबसे बड़ी मेरी दादी जी, उसके बाद मेरी माताजीऔर पिताजी हैं । हम चार भाई हैं, जिसमें सबसे बड़ा मैं हूँ, मेरे जिंदगी और मेरे हर सफ़र के साथी मेरी धर्मपत्नी और मेरे दो बच्चे है ।

3-घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?

@ वैसे तो बचपन से ही मैं अपने परिजनों के साथ पता नहीं कहाँ-कहाँ गया पर अपने होश में (उस समय भी काफी छोटा था) सर्वप्रथम मैं अपने माता पिताजी और उनके मित्रों के साथ वैष्णो देवी और उसके बाद हरिद्वार गया था । इस यात्रा से मैं बहुत प्रभावित हुआ और घूमने के भूत मेरे सर पर चढ़ गया, पर छोटा होने के कारण माता पिता के बिना नहीं जा सकता था । फिर इस यात्रा के काफी साल बाद सन 1995 में अपने आठ मित्रों के साथ स्वछन्द रूप से मैं वैष्णो देवी और पतनीटॉप अपने परिजनों के बिना गया । उसके बाद मैं अक्सर अपने मित्रों के साथ नई-नई जगह खोजकर घुमक्कड़ी करने लगा । उस समय इन्टरनेट नही था सो एक पत्रिका आती थी “सरिता का पर्यटन विशेषांक”, उसी में नई जगह हम सब मित्र खोजकर घूमने की योजना बनाते थे । अब तक मैं देश की काफी प्रसिद्ध स्थल घूम चुका हूँ और घूमता भी रहूँगा क्योकि नई जगह देखने और समझने का शौक है । आजकल यदि साथ में घूमने वाले मित्र जाए तो बहुत हैं अन्यथा मैं अपने परिवार के साथ ही घूमने जाता हूँ । वैसे घूमना मेरा शौक हैं, मैं अपने समय के अनुसार और पूर्ण सहूलियत से घूमता हूँ ।

4-किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं, ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेलों भी क्या सम्मिलित हैं?

@ मेरी अधिकतर घुमक्कड़ी परिवार के साथ होती है यदि साथ मिल गया तो मित्रो के साथ भी । वैसे प्रारंभिक घुमक्कड़ी मित्रो के साथ ही की है । शादी के बाद परिवार के साथ भी घुमक्कड़ी करने लगा । अकेला अभी तक कही भी घूमने नही गया। पहाड़ो पर घूमना बेहद पसंद है जहाँ तक हो कोशिश रहती है की पहाड़ो पर ही घूमता रहूँ । नई जगह देखना, प्राकृतिक नजारों का आनंद लेना, प्रकृति को करीब से देखना- समझना, स्थानीय खाने का स्वाद लेना, संस्कृति समझना, ऐतिहासिक तथ्यों जानना, स्थानीय मन्दिरो के दर्शन करना आदि कुछ दिल से अच्छा लगता है । अभी तक पहाड़ो पर कोई बड़ी विशेष ट्रेकिग नहीं की है, घूमते समय तीन-चार किलोमीटर की ट्रेकिंग तो हो ही जाती है । वैष्णो देवी की यात्रा पर तो कई बार जा चूका हूँ पर उसे हम ट्रेकिंग नही कह सकते ।

5-उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?

@ बिना परिजनों के मेरी पहली यात्रा सन 1995 में अपने आठ मित्रों के साथ स्वछन्द रूप से मैं वैष्णो देवी और पतनीटॉप की थी । जहाँ से हमने समझा की कैसे रेल से यात्रा की जाती है, टिकिट कैसे आरक्षित करते है, ठहरने के होटल किस तरह ढूँढे जाते है और स्थानीय लोगो कैसे समझा जाता है । हमारी ये पहली यात्रा बहुत शानदार रही थी । हम लोग झेलम एक्सप्रेस से आगरा से जम्मू गये थे वहां से बस से कटरा पहुंचे । एक होटल ठहरने के लिए किया और दूसरे दिन माता वैष्णो देवी तक की पैदल यात्रा हाथी मत्था वाले रास्ते की थी । पहली बार गये थे और इतना पैदल चले तो उस समय लौट कर आने के बाद काफी परेशानी हुई थी। उस दिन सारा दिन होटल में में ही आराम किया था । अगले दिन पतनीटॉप एक टैक्सी से करके गये थे, वहां के नजारे देखकर हम अभिभूत ही हो गये । दो दिन वही रुके और सैर सपाटे का आनन्द लिया। लौटकर जम्मू वापिस आये और एक दिन जम्मू शहर घूमने के लिए दिया, रघुनाथ मंदिर बहुत अच्छा लगा था हमे । उस समय अपने घर के लिए काफी खरीदारी भी की । ये था मेरी पहली यात्रा के अनुभव ।

6-घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?

@ सामान्य दिनों में मैं अक्सर अपने काम में बहुत व्यस्त रहता हूँ । इस व्यस्त दिनचर्या में जब मौका लगता है या कोई लम्बा अवकाश आ जाये तो तभी हम लोग घूमने निकल ही जाते है किसी ने किसी बहाने से । अधिकतर यात्राएं परिवार के साथ ही की है तो परिवार के साथ सामंजस्य आसानी से बन जाता है । यदि किसी मित्र के साथ जाना हुआ तो भी कोई न कोई तरीका निकल ही जाता है, सैर करने के लिये ।

7-आपकी अन्य रुचियों के साथ बताइए कि आपने ट्रेवल ब्लॉग लेखन कब और क्यों प्रारंभ किया?

@ अन्य रुचियों में यात्रा ब्लॉग पढ़ना, यात्रा सम्बन्धी किताबे पढ़ना, गूगल मैप पर नई जगह खोजना, ऑनलाइन इंटरनेट पर आपने कार्य सम्बन्धी खोज करना, संगीत सुनना, यात्रा विवरण लिखना और नया शौक कैमरे और मोबाइल फ़ोटो खींचना।
ब्लॉग लिखने से पहले मै किताबो और नेट पर यात्रा लेख पढ़ा करता था, और सोचा की क्यों न मैं भी अपने यात्रा अनुभव लोगो के सामने प्रस्तुत करुँ, जिससे पढ़ने वाले मेरी गयी जगह के बारे में जान सके और उनकी कुछ सहायता हो जाये। फिर एक वेबसाइट पर पहली हिंदी पोस्ट डाली तो लोगो पसन्द आयी और मुझे मनोबल मिला ।
फिर उसके बाद दूसरे की देखा-देखी अपना ब्लॉग 22 जुलाई 2011 शुरू किया और नाम रखा “सफर है सुहाना” । कुछ साल के बाद अपना डोमेन नेम www.safarhaisuhana.com नाम से लिया और ब्लॉग को वेबसाइट का रूप दिया । इस प्रकार लिखने का ये सिलसिला चल पड़ा और ये प्रक्रिया सतत अभी तक जारी है । व्यस्त रहने के कारण कम ही लिख पाता हूँ जो कि ये शिकायत सभी को मुझसे हमेशा रहती है पर अपने यथा सम्भव जल्द से जल्द लिखने की कोशिश जारी रहती है ।

8-घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है?

@ सामाजिक और भौगोलिक ज्ञान के साथ-साथ मन की शांति और अपना ज्ञान विस्तारित करने के लिए घुमक्कड़ी बहुत आवश्यक है । एक शहर में रहकर हम नागरिकों को, उनकी संस्कृति को, खान-पान और भौगोलिक संरचनाओं को नही समझ सकते, तो इन सब को समझने के लिए जगह-जगह घूमना भी जरूरी है। घुमक्कड़ी एक दवा की तरह से है जिससे नीरस जीवन को ऊर्जा मिलती है और जीवन मे जोश और स्फूर्ति का संचार भी होता है । घुमक्कड़ी आपको समय समय पर तरो-ताजा रखती है, मेरा कहना है कि घुमक्कड़ी करते रहिए और प्रसन्न रहिये ।

9-आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?

@ मेरी सबसे रोमांचक यात्रा मनाली-रोहतांग की थी । ये यात्रा हम लोग नोयडा से कार टैक्सी के द्वारा की थी । रात में यहां से निकले तो मुख्य मनाली हाइवे दुर्घटना के कारण बन्द हो गया था, सो अन्य गाँव के रास्ते से यात्रा की जो कि एक अंजाने डर की बीच की थी । फिर उसके बाद मनाली से रोहतांग पास की यात्रा । खतरनाक और खराब सड़क जो कि डराने के लिए काफी थी, जाम के कारण नदी से गाड़ी निकलना आदि । इस यात्रा के हर पल मुझे अभी भी रोमांचित करते है।
अभी तक मैं 13 राज्यो की यात्रा कर चुका हूं । जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, उड़ीसा, गोवा, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान आदि राज्यों के विभिन्न जगहों और शहरों की यात्रा कर चूका हूँ । इन राज्यों की यात्रा से यहाँ की स्थानीय संस्कृति, वेशभूषा, खानपान, इतिहास के बारे में जानने को मिला । वैसे हर यात्रा हम लोगो को कुछ न कुछ सीखने को मिलता है और अनुभव भी मिलता है ।

10-नये घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?

@ आप जिस स्थल की यात्रा पर हो, वहां के नियम कानून और प्रकृति का सम्मान जरुर करे, कोई ऐसा कार्य न करे जिससे वहां के प्रशासन या स्थानीय नागरिको को कष्ट पहुचे । गंदगी न फैलाये और ऐतिहासिक ईमारतो पर लेखन और तोड़-फोड़ बिल्कुल भी न करे । यदि आप प्रकृति का सम्मान करेंगे तो प्रकृति भी आपको अपने तरीके से पुरस्कृत करेगी । एक बात और कहना चाहूँगा की जब मौका लगे जरुर घूमने जाए, इससे मानसिक संतुष्टि तो मिलती है साथ ही साथ नई जगह को देखने और समझने को भी मिलता है । तो फिर व्यस्त दिनचर्या में समय निकालिए और निकल पड़िये एक नई घुमक्कड़ी करके दुनिया को देखने के लिए।

16 thoughts on “घुमक्कड़ी वह दवा है जो नीरस जीवन को ऊर्जा देती है : रितेश गुप्ता

  • July 26, 2017 at 19:52
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    परिवार के साथ घुमक्कड़ी का आनंद ही और रहता है, इकट्ठे होने का मौका मिलता है ,जो लोग अलग अलग शहरों में बसे हैं उन्हें भी , “सफर है सुहाना” भी पढूँगी …?

  • July 26, 2017 at 20:16
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    रितेश गुप्ता जी बहुत बहुत आभार आपका जो आपने बिलकुल सरल शब्दों में अपना साक्षात्कार दिया, बहुत कुछ नया जाने को मिला आपके बारे में, और धन्यवाद ललित शर्मा जी को ऐसे शुभ कार्य के लिए।

  • July 26, 2017 at 23:18
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    उम्दा साक्षात्कार ! बढ़िया लगा आपका साक्षात्कार पढ़कर !

  • July 26, 2017 at 23:40
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    बढ़िया रितेश भाई, अच्छा लगा “दिल से” आपसे यहाँ भी मिलकर । ईश्वर आपकी ये घुमक्कड़ी यूँ ही चलाते रहें ऐसी प्रार्थना ।

    • July 27, 2017 at 23:49
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      GDS

  • July 27, 2017 at 00:18
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    बढ़िया और प्रेरणा दायक लगा रितेश जी के बारे में जानके, 1995 में मैं 1 साल का था जब रितेश जी ने पहली ट्रिप की थी, नमन????

  • July 27, 2017 at 00:26
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    वाह रितेश जी , बहुत बढ़िया साक्षात्कार ! ईश्वर आपकी घुमक्कड़ी बनाये रखे

  • July 27, 2017 at 00:53
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    बोहत ही सरल और साफ शब्दों मै बयां किया है आप ने अपने अनुभवों को और साथ ही रोचकता को और साथ ही सहमत हु इस बात से के घुमने से मानसिक संतुष्टि तो मिलती है साथ ही साथ नई जगह को देखने और समझने को भी मिलता है उम्दा

  • July 27, 2017 at 02:07
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    बहुत सुंदर विचार है आपके जीवन व घुमक्कडी को लेकर। आप को ओर नजदीक से जानकर अच्छा लगा

  • July 27, 2017 at 02:35
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    रितेश जी आपके बारे में पहले से ही परिचित हूँ . बाकि जानकारी आज मिल गयी . ललित शर्मा जी का भी धन्यवाद .

  • July 27, 2017 at 22:36
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    आपसे ऐसे तो पूर्व परिचय है, किन्तु विस्तार से जानकर मुलाकात का सा आभास हुआ. समय निकालना ही कठिन है..

  • July 27, 2017 at 23:35
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    मैं भी घूमने की जगह सरिता के पर्यटनक अंक के जरिये करती थी।शिमला गई थी तो यही अंक हाथो में था ।
    अपने परिवार को समय देकर जो समय अपना होता है उसको यूज करना भी कमाल है और ये कमाल हम घुमक्कड़ करते है।
    बहुत खूब रितेश ,बधाई हो

  • July 28, 2017 at 03:06
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    Congratulations, I got to know you through your nice interview. The title of your blog is “Safar hai Suhana” is appropriate because of the subject matter. Thanks to Lalit Sharma Ji.

  • August 3, 2017 at 05:09
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    प्रिय रितेश, आज एक भेद की बात बता ही दूं ! मेरी बड़ी तमन्ना है कि एक बार हम दोनों परिवार सहित घुमक्कड़ी पर निकलें ! देखें, कब मेरी ये इच्छा पूरी होती है। आपके बारे में काफी कुछ तो जानता ही हूं ! बची खुची कसर इस साक्षात्कार से पूरी होगयी ! व्यक्तित्व के कुछ पहलू यदि अब भी अछूते रह गये होंगे तो एक इंटरव्यू मैं भी ले डालूंगा ! वहां कसर निकाल लूंगा। ललित शर्मा जी को इस श्रंखला को आरंभ करने के लिये हार्दिक साधुवाद !

    सस्नेह,
    सुशान्त सिंहल

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