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‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना को लेकर RSS ने सहे अत्याचार: PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के अवसर पर एक विशेष स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना से लेकर अब तक, ‘राष्ट्र पहले’ की विचारधारा को लेकर संगठन ने कई संघर्ष झेले हैं — चाहे वह ब्रिटिश हुकूमत हो या हैदराबाद के निजाम।

प्रधानमंत्री ने बताया कि RSS के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार सहित कई स्वयंसेवक स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के चलते जेल भी गए थे। उन्होंने कहा कि RSS ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान न केवल भागीदारी निभाई, बल्कि कई स्वतंत्रता सेनानियों को आश्रय भी दिया।

शताब्दी वर्ष पर सिक्का और डाक टिकट जारी

RSS की 100वीं वर्षगांठ के मौके पर जारी किया गया विशेष सिक्का और डाक टिकट संगठन के राष्ट्रनिर्माण में योगदान को दर्शाते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “यह पहला अवसर है जब भारत माता की छवि किसी सिक्के पर उकेरी गई है। इस सिक्के पर संघ का मूल मंत्र ‘राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय, इदं न मम’ भी अंकित है, जिसका अर्थ है — ‘सब कुछ राष्ट्र को समर्पित, सब कुछ राष्ट्र का है, कुछ भी मेरा नहीं।’”

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दशहरा पर RSS की स्थापना केवल संयोग नहीं: मोदी

PM मोदी ने कहा कि विजयदशमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। उन्होंने कहा, “दशहरे के दिन RSS की स्थापना केवल एक संयोग नहीं थी, बल्कि यह उस परंपरा का पुनर्जागरण था जो हजारों वर्षों से हमारी संस्कृति में जीवित रही है।”

उन्होंने आगे कहा, “हम सौभाग्यशाली हैं कि हम संघ के शताब्दी वर्ष के साक्षी बन रहे हैं।”

‘हर इकाई का एक ही लक्ष्य – राष्ट्र प्रथम’

प्रधानमंत्री ने बताया कि संघ से जुड़े विभिन्न संगठन समाज के विभिन्न वर्गों के लिए कार्य करते हैं, लेकिन उनके बीच कभी टकराव नहीं होता क्योंकि सभी की दिशा और उद्देश्य एक ही होता है — राष्ट्र की सेवा।

1942 के चिमूर आंदोलन का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों को ब्रिटिश शासन द्वारा प्रताड़ित किया गया। स्वतंत्रता के बाद भी, हैदराबाद के निजामों और गोवा व दादरा-नगर हवेली की आजादी के संघर्ष में संघ के स्वयंसेवकों ने अपना योगदान दिया।

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आपातकाल के दौर में भी डिगा नहीं लोकतंत्र पर विश्वास

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “RSS के स्वयंसेवकों का लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं में अटूट विश्वास रहा है। आपातकाल जैसी कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने किसी तरह की कटुता नहीं पनपने दी, बल्कि उससे लड़ने की ताकत पाई।”