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भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक अनसुनी वीरगाथा

रानी अवंतीबाई मध्य प्रदेश के मंडला जिले के रामगढ़ की महारानी थीं। रामगढ़ रियासत की स्थापना गोंड साम्राज्य के वीर सेनापति मोहन सिंह लोधी द्वारा की गई थी। रियासत में 681 गाँव थे, जिनकी सीमाएँ अमरकंटक, सुहागपुर, कबीर चौंतरा, घुघरी, भुआ-बिछिया और रामनगर तक फैली थीं। रानी अवंतीबाई का जन्म 16 अगस्त 1831 को सिवनी जिले के मनकेहणी गाँव में जमींदार राव जुझार सिंह के यहाँ हुआ था। बाल्यकाल से ही रानी दुर्गावती उनकी आदर्श थीं, और उन्होंने तलवारबाजी और घुड़सवारी में महारत हासिल कर ली थी। अपने साहस और शौर्य के लिए जानी जाने वाली रानी अवंतीबाई ने प्रसिद्ध पिंडारी तलवारबाज कादर बक्श को द्वंद्व युद्ध में पराजित किया था।

रामगढ़ रियासत के राजा लक्ष्मण सिंह के निधन के बाद, उनके उत्तराधिकारी विक्रमजीत सिंह ने राज्य की बागडोर संभाली। उनका विवाह रानी अवंतीबाई से हुआ, जो अपने पति की वीतरागी प्रवृत्ति के कारण राज्य के प्रशासन का कार्यभार संभालने लगीं। रानी के दो पुत्र, अमान सिंह और शेर सिंह हुए। अंग्रेजों ने मंडला पर कब्जा करने के बाद रामगढ़ रियासत पर भी अपनी दृष्टि डाल दी। राजा विक्रमजीत सिंह को विक्षिप्त घोषित कर और उनके पुत्रों को नाबालिग घोषित कर, अंग्रेजों ने रामगढ़ रियासत को हड़पने की योजना बनाई। राजा विक्रमजीत सिंह की मृत्यु के बाद, रानी अवंतीबाई ने अपने पुत्रों की संरक्षिका बनकर राज्य का संचालन किया और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया।

वीरांगना का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

मध्य प्रदेश में जबलपुर कमिश्नरी, गोंडवाना साम्राज्य के राजा शंकरशाह और उनके पुत्र रघुनाथशाह ने अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम छेड़ने की योजना बनाई थी। इस संघर्ष में रानी अवंतीबाई सहित विभिन्न जमींदार और मालगुजारों ने भाग लिया। रानी अवंतीबाई ने सभी रियासतों को एकत्रित करने के लिए काली चूड़ियों की पुड़िया भेजने का प्रस्ताव रखा, जिसे स्वीकृत कर लिया गया। दुर्भाग्यवश, गिरधारी लाल दास नामक एक भेदिए ने अंग्रेजों को इस योजना की जानकारी दे दी, जिसके परिणामस्वरूप राजा शंकरशाह और रघुनाथशाह को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें तोप के मुंह से उड़ा दिया गया।

इस घटना से आहत होकर, रानी अवंतीबाई ने 52वीं नेटिव इन्फेंट्री के सैनिकों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया। उन्होंने राजा शंकरशाह और रघुनाथशाह की वीरांगना पत्नियों के साथ मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया। इसके बाद, उन्होंने विजय राघवगढ़ के राजा सरजू प्रसाद, शाहपुर के मालगुजार ठाकुर जगत सिंह, शहपुरा के ठाकुर बहादुर सिंह लोधी और हीरापुर के मेहरबान सिंह लोधी के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की।

सितंबर 1857 में रानी अवंतीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व संभाला। उन्होंने अंग्रेजों से लगातार 9 महीने तक संघर्ष किया और 6 प्रमुख युद्ध लड़े, जिनमें भुआ-बिछिया, रामनगर, घुघरी और खैरी के युद्ध शामिल हैं। रानी अवंतीबाई ने मंडला के युद्ध में डिप्टी कमिश्नर बाडिंग्टन को पराजित कर, चार माह तक मंडला डिप्टी कमिश्नरी पर अपनी सत्ता स्थापित की।

अंतिम बलिदान और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

मंडला की स्वतंत्रता के बाद, रानी अवंतीबाई ने रामगढ़ को केंद्र बनाकर शासन किया। फरवरी 1858 के अंत में बाडिंग्टन ने अपनी फौज के साथ मंडला पर पुनः हमला किया और रानी फूलकुंवर, उमराव सिंह और धन सिंह को पराजित कर दिया। उमराव सिंह ने रामगढ़ पहुंचकर रानी अवंतीबाई को इस पराजय का समाचार दिया।

मार्च 1858 के आरंभ में, डिप्टी कमिश्नर बाडिंग्टन ने रामगढ़ का घेराव किया। इस युद्ध में रानी अवंतीबाई ने अंग्रेजी सेनाओं की घेराबंदी को तोड़कर देवहारगढ़ के जंगलों में छापामार युद्ध लड़ने का निर्णय लिया। उन्होंने कई बार अंग्रेजों से झड़प की, परंतु 20 मार्च 1858 के दिन, पीछे से रीवा राज्य की सेनाएं आ जाने के कारण रानी अवंतीबाई घिर गईं। इस स्थिति में, रानी ने अपनी अंगरक्षिका गिरदाबाई से यह कहते हुए कि “हमारी दुर्गावती ने जीते जी बैरी के हाथ से अंग न छुए जाने का प्रण लिया था,” अपनी तलवार से आत्मोत्सर्ग कर लिया। वीरांगना रानी अवंतीबाई और उनकी अंगरक्षिका गिरदाबाई ने अपने प्राणों की आहुति देकर स्वदेश के लिए पूर्णाहुति दी।

रानी अवंतीबाई लोधी को प्रथम महिला वीरांगना

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सन् 1857 में रानी अवंतीबाई लोधी को प्रथम महिला वीरांगना के रूप में माना जाता है, जिन्होंने स्वदेश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। 20 मार्च 1858 को रानी अवंतीबाई ने अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए। इसी संग्राम में नाना साहब की दत्तक पुत्री वीरांगना मैना बाई का भी बलिदान हुआ था, जब अंग्रेजों ने 3 सितंबर 1857 को 13 वर्ष की आयु में उन्हें पेड़ से बाँधकर जला दिया था।

मैना बाई को स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम बाल बलिदानी के रूप में दर्ज किया गया है, जबकि प्रथम महिला बलिदानी के रूप में रानी अवंतीबाई को ही मान्यता दी गई है। इतिहास के साक्ष्यों के अनुसार, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान 18 जून 1858 को और बेगम हजरत महल की मृत्यु 7 अप्रैल 1879 को हुई थी। इस प्रकार, रानी अवंतीबाई ही स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम महिला सेनानी थीं, जिन्होंने युद्ध लड़ते हुए अपने देश के लिए आत्मोत्सर्ग किया। रानी अवंतीबाई लोधी की समाधि डिंडौरी जिले के शाहपुर के पास बालपुर गांव में स्थित है।

न्यूज एक्सप्रेस डेस्क

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