छत्तीसगढ़ के कण-कण में बसे हैं राम, यहां के लोगों की जीवन शैली राममय: सुश्री उइके
राज्यपाल ‘‘दक्षिण कोसल में राम कथा की व्याप्ति एवं प्रभाव’’ विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वेबशोध संगोष्ठी में हुई शामिल
रायपुर, 31 अगस्त 2020/ छत्तीसगढ़ के कण-कण में राम बसे हैं। यहां के लोगों की जीवन शैली पूरी तरह से राममय हैं। उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा में भगवान श्री राम का प्रभाव है। छत्तीसगढ़ को दक्षिण कौसल के नाम से जाना जाता है। यह वह पुण्य भूमि है, जिसे भगवान श्रीराम का सान्निध्य मिला और अनेक पुण्य आत्माओं का भी जन्म हुआ है तथा अनेक ऋषि-मुनियों का आशीर्वाद प्राप्त है। यह विचार आज राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने ‘‘दक्षिण कोसल में राम कथा की व्याप्ति एवं प्रभाव’’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबशोध संगोष्ठी में व्यक्त किए। यह संगोष्ठी गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर, अयोध्या शोध संस्थान, अयोध्या, उत्तर प्रदेश शासन तथा सेंटर फॉर स्टडीज ऑन होलिस्टिक डेवलपमेन्ट रायपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गई। राज्यपाल ने कहा कि मुझे बताया गया है कि यह संगोष्ठी ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण तैयार करने की दृष्टि से आयोजित की जा रही है। यह विषय संपूर्ण भारतवासियों ही नहीं पूरे विश्व में हमारी भारतीय संस्कृति के जो उपासक हैं, उन सभी के लिए महत्वपूर्ण हैं।
राज्यपाल ने कहा कि यहां की भूमि और यहां के लोगों में भगवान श्रीराम का इतना प्रभाव है कि उनकी सुबह राम नाम के अभिवादन से होती है और जब वे किसी से मिलते हैं तो वे एक दूसरे से राम-राम कहकर अभिवादन करते हैं। उनके नाम में भगवान राम का उल्लेख मिलता है। हम यदि गांव में जाएं तो वहां के लोग रामचरित मानस का पाठ करते मिलते हैं और पुण्य लाभ लेते हैं। छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में कई रामायण मंडली होती है, जिसके बीच प्रतियोगिता भी होती है। अभी भी कई स्थानों पर रामलीला का मंचन होता है। दशहरे के समय तो यहां की रौनक देखते ही बनती है।
उन्होंने कहा कि भगवान राम का संपूर्ण जीवन प्रेरणादायी है। उनके जीवन से हमें समन्वयवादी जीवन शैली अपनाने की प्रेरणा मिलती है। हम छत्तीसगढ़ को देखें तो यहां भी समन्वयवादी संस्कृति मिलती है। यह सब भगवान श्रीराम के आशीर्वाद से ही संभव हो पाया है। छत्तीसगढ़वासियों के मन में भगवान श्री राम के प्रति अथाह प्रेम है। यहां एक समुदाय ऐसा भी है, जिसके सदस्य अपने पूरे शरीर में भगवान राम के नाम का गोदना गोदवा लेते हैं, भगवान श्री राम के प्रति ऐसा समर्पण शायद ही कहीं देखने को मिले। इसे रामनामी सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने कहा कि हम छत्तीसगढ़ में भगवान राम के प्रति प्रेम भाव की बात करें तो कवर्धा जिले में एक पंचमूखी बुढ़ा महादेव मंदिर का उल्लेख किया जाना चाहिए, जहां पर अनवरत रामधुन गाई जाती है। यही नहीं इस प्रदेश में भगवान श्रीराम इतने गहराई तक समाए हुए हैं कि एक मुसलमान कथा वाचक दाउद खान रामायणी जैसे महापुरूष हुए, जिनमें राम के प्रति इतनी आस्था थी कि आजीवन रामकथा का वाचन करते रहे और उन्हें पूरी रामकथा कंठस्थ थी।
राज्यपाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ को भगवान राम का ननिहाल माना जाता है। यह माना जाता है कि रायपुर जिले के चन्द्रखुरी नामक गांव में माता कौशल्या का जन्म हुआ था, इसका प्रमाण है कि वहां माता कौशल्या का एकमात्र मंदिर स्थापित है। इस नाते भगवान राम को पूरे छत्तीसगढ़ का भांजा माना जाता है। इसलिए भांजे को श्रेष्ठ स्थान देने की परम्परा है और उनके पैर भी छुए जाते हैं। छत्तीसगढ़ को दण्डकारण्य भी कहा जाता है, जहां वनवास के दौरान भगवान राम अधिकतम समय व्यतीत किया था, जिस दक्षिण पथ मार्ग से वे लंका विजय के लिए गये उसे हम राम वन गमन पथ के नाम से जानते हैं। राज्य शासन द्वारा इसे विकसित करने की योजना बनाई गई है।
मुख्य वक्ता श्रीमती रेखा पाण्डेय ने कहा कि रामायण काल में दक्षिण कोसल एक ऐसा स्थान माना जाता है, जहां भगवान श्रीराम ने माता सीता एवं भ्राता लक्ष्मण के साथ वनवास का सर्वाधिक समय व्यतीत किया। यह भूमि श्रीराम की लीला भूमि के साथ ऋषि-मुनियों की प्रमुख केन्द्र रही है। श्रीमती पाण्डेय ने ऋषि-मुनियों का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रदेश के सरगुजा संभाग के देवगढ़ नामक स्थान में जमदग्नि ऋषि की साधना स्थली, बिलासपुर के शिवरी नारायण में मतंग ऋषि, सरगुजा जिले के रामगढ़ में शरभंगा ऋषि के आश्रम होने की मान्यता है। उन्होंने कहा कि साथ ही बिलासपुर जिले के बैतलपुर के समीप महान ऋषि मंडूक, ग्राम तुरतुरिया में वाल्मीकि ऋषि, ग्राम पांडुका के समीप अतरमरा में अत्रि ऋषि आश्रम और राजिम के त्रिवेणी संगम में महानदी के तट पर लोमेश ऋषि, सिहावा क्षेत्र में भीतररास ग्राम में श्रृंगी ऋषि का आश्रम होने की मान्यता है। यह भी माना जाता है कि बस्तर के दक्षिण पूर्व में अगस्त्य ऋषि का आश्रम माना जाता है। श्रीमती पाण्डेय ने कहा कि ऋषि परंपरा में छत्तीसगढ़ को संत कबीर एवं संत शिरोमणी गुरूघासी दास जी का भी सान्निध्य और आशीष प्राप्त हुआ। इन समस्त ऋषि-मुनियों का प्रभाव यहां की संस्कृति में आज तक बना हुआ है।
सेंटर फॉर स्टडीज ऑन होलिस्टिक डेवलपमेन्ट छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष श्री बी. के. स्थापक ने कहा कि भगवान श्री राम हम सबके आस्था के केन्द्र हैं। छत्तीगढ़ को दक्षिण कोसल कहा जाता है, जिसका भगवान श्रीराम का करीब का संबंध रहा है। यहां माता कौशिल्या की जन्मभूमि है, जहां पर माता कौशिल्या के मंदिर का निर्माण किया जा रहा है।
इस कार्यक्रम में गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर की कुलपति डॉ. अंजिला गुप्ता, अयोध्या शोध संस्थान, उत्तर प्रदेश शासन के निदेशक डॉ. योगेन्द्र प्रताप सिंह, ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण, छत्तीसगढ़ के संयोजक एवं सम्पादक इण्डोलॉजिस्ट श्री ललित शर्मा, फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष प्रो. शैलेन्द्र सराफ, सीएसएचडी छत्तीसगढ़ के सचिव श्री विवेक सक्सेना शामिल हुए।