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भाई-बहन के प्रेम और विश्वास का पर्व ‘सलूमण’

दिनेश शर्मा, कैथल

भारत उत्सवों का देश है। जहां हर अवसर पर हर परिस्थिति में जीवन को सकारात्मक दिशा देने के लिए कार्य करने की परम्परा रही है। यहां मनाया जाने वाला प्रत्येक त्योहार जन-मानस को नया सन्देश देता है। भारतीय त्योहारों की इसी श्रृंखला में श्रावण माह में मनाया जाने वाला पर्व है रक्षाबंधन। जो श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन न केवल भारत मॉरीशस, नेपाल और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों के साथ-साथ दुनिया भर बसने वाले भारतवंशी भी इस त्योहार को पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं।

भारत की तरह नेपाल में रक्षाबंधन को जनेऊ पूर्णिमा के नाम से संबोधित किया जाता है। इस दिन घर के बड़े लोग अपने से छोटे लोगों के हाथों में एक पवित्र धागा बांधते हैं। राखी के अवसर पर यहां एक खास तरह का सूप पिया जाता है, जिसे कवाती कहा जाता है। इस अवसर पर बहनें अपना प्रेम रक्षा सूत्र के रूप में भाई की कलाई पर बांध कर प्रदर्शित करने के साथ उससे रक्षा का वचन लेती हैं। भाई इस अवसर पर कुछ उपहार देकर भविष्य में संकट की स्थिति में उसकी सहायता करने का वचन देते हैं।

भाई-बहन के पवित्र स्नेह का प्रतीक यह त्योहार भारत भर में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश में इसे श्रावणी या सलूनो भी कहते हैं। श्रीकृष्ण की लीला स्थली ब्रज में यह त्योहार बड़े उत्साह और विधिविधान से मनाया जाता है। सावन मास में हरियाली तीज यानि श्रावण शुक्ल तृतीया से श्रावणी पूर्णिमा तक यहां के मन्दिरों और घरों में ठाकुर जी को झूले में विराजित किया जाता है। ठाकुर जी यानी श्री कृष्ण जी का यह ये झूला-दर्शन श्रावणी पूर्णिमा अर्थात् रक्षाबन्धन के दिन समाप्त होता है।

उत्तरांचल में रक्षाबंधन को श्रावणी कहते हैं। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपनयन कर्म होता है। इस दिन उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके उनको नवीन यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है। इस दिन वृत्तिवान् ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं। अमरनाथ यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर रक्षाबन्धन के दिन ही पूर्ण होती है।

जबकि राजस्थान में इस दिन रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बांधने की परंपरा है। रामराखी सामान्य राखी से थोड़ी-सी अलग होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है और यह भगवान को ही बांधी जाती है। वहीं चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बांधी जाती है। जोधपुर में राखी के दिन दोपहर में पद्मसर और मिनकानाडी में गोबर, मिट्टी एवं भस्मी से स्नान कर शरीर को शुद्ध किया जाता है, फिर धर्म तथा वेदों के प्रवचनकर्त्ता अरुंधती, गणपति, दुर्गा, गोभिला तथा सप्तर्षियों के दर्भचट अर्थात् पूजास्थल बनाकर मन्त्रोच्चारण के साथ उनकी पूजा की जाती है।

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इसके बाद उनका तर्पण किया जाता है ताकि पितृॠण चुकाया जा सके। फिर घर आकर हवन किया जाता है, वहीं पर रेशम के डोरे से राखी बनायी जाती है तथा उसको कच्चे दूध से अभिमन्त्रित किया जाता है। यह राखी भगवान को अर्पित करने के बाद ही भोजन किया जाता है।

बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इस पूर्णिमा को कजरी पूर्णिमा के विशेष रूप में मनाने की रीत चली आ रही है। किसानों और महिलाओं के लिए यह एक खास दिन होता है। कजरी पूर्णिमा के दिन महिलाएं पेड़ के पत्तों के पात्रों में खेत से मिट्टी भरकर लाती हैं और उनमें जौ को बोया जाता है फिर इन पात्रों को अंधेरे में रखा जाता है। जहां ये पात्र रखे जाते हैं, वहां पर चावल के घोल से चित्रकारी भी की जाती है।

कजरी पूर्णिमा के दिन सारी महिलाएं इन जौ को सिर पर रखकर जुलूस निकालती हैं और पास के किसी तालाब या नदी में इसे विसर्जित कर देती हैं। महिलाएं इस दिन उपवास रखकर अपने पुत्र व भाई की लंबी आयु की कामना करती हैं। उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में रक्षाबंधन को झूलन पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण और राधा की पूजा की जाती है। साथ ही महिलाएं अपने भाइयों के अच्छे जीवन के लिए उनकी कलाइयों पर राखी बांधती हैं।

देश के पूर्वी हिस्से ओड़िशा में राखी को गमहा पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घर की गाय और बैलों को सजाते हैं और एक खास तरह का पकवान, जिसे मीठा और पीठा कहा जाता है, बनाते हैं। राखी के दिन ओड़िशा में मीठा और पीठा को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों में बांटा जाता है। यही नहीं, इस दिन राधा-कृष्ण की प्रतिमा को झूले पर बैठा कर झूलन यात्रा निकाली जाती है।

इसी प्रकार गुजरात, महाराष्ट्र और गोवा में राखी का त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। जल के देवता वरुण को प्रसन्न करने के लिये नारियल अर्पित करने की परम्परा भी है। नारियल की तीन आंखें होने के कारण उसे शिव का प्रतीक माना जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। रक्षाबंधन के दिन पूजा करने के कारण मुंबई के समुद्र तट नारियल से भर जाते हैं। गुजरात के कुछ हिस्सों में रक्षाबंधन को पवित्रोपन के नाम से भी मनाया जाता है।

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वहीं दक्षिण भारतीय राज्यों जैसे तमिलनाडु तथा केरल के साथ ही देश के विभिन्न भागों में रहने वाले दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं। इस दिन ये यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मण नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण करके नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करके वे बीते वर्ष के पुराने पापों को पुराने जनेऊ की भांति त्याग देते हैं और शुद्ध नये यज्ञोपवीत के साथ नया जीवन आरम्भ करने की प्रतिज्ञा लेते हैं।

इस दिन यजुर्वेदीय ब्राह्मण 6 महीनों का वेद अध्ययन भी शुरू करते हैं। इसलिए इस पर्व का एक नाम उपक्रमण भी है जिसका अर्थ ही होता है नयी शुरुआत। हरियाणा में भी समस्त उत्तर भारत की तरह ही भाई-बहन का यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इसे यहाँ सलूमण के नाम से मनाते हैं। सलूमण के त्योहार की जन-मानस में लोकप्रियता के दृष्टिगत ही हरियाणा सरकार महिलाओं को अपने भाईयों को इस दिन रक्षासूत्र बांधने के लिए आवा-गमन हेतु मुफ्त बस सेवा उपलब्ध कराती है।

जिस तरह से अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग ढंग से रक्षाबंधन को मनाया जाता है उसी तरह से इस त्योहार को मनाने के पीछे भिन्न-भिन्न कहानियां प्रचलित हैं। रक्षाबंधन की सबसे अधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार महाभारत के समय एक बार भगवान कृष्ण की अंगुली में चोट लग गई थी और उसमें से खून बहने लगा था। ये देखकर द्रौपदी जो कृष्ण जी की सखी भी थी उन्होंने आंचल का पल्लू फाड़कर उनकी कटी अंगुली में बांध दिया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन से रक्षासूत्र या राखी बांधने की परंपरा शुरू हुई।

जैसा कि आप सब जानते हैं कि जब द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था तब श्रीकृष्ण ने ही उनकी लाज बचाकर सबसे उनकी रक्षा की थी। राखी के सम्बन्ध में एक अन्य मान्यता प्रचलित कहानी है। जब महाभारत के युद्ध मे युधिष्ठिर ने कृष्ण से पूछा कि मैं सारे दुखों से कैसे पार पा सकता हूं, तो कृष्ण कहते हैं कि तुम अपने सभी सैनिकों को रक्षा सूत्र बांधो, इससे तुम्हारी विजय पक्की है। युधिष्ठिर ऐसा ही करते हैं और उन्हें विजय मिलती है। ये घटना श्रावण माह की पूर्णिमा को हुई थी, इसलिए इसे रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाने लगा और इस दिन सैनिकों को राखी बांधी जाती है।

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इसी तरह से वामन अवतार से जुड़ी एक कथा के अनुसार राजा बलि बड़े दानी राजा थे और भगवान विष्‍णु के भक्‍त थे। एक बार वे भगवान को प्रसन्‍न करने के लिए यज्ञ कर रहे थे। अपने भक्‍त की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्‍णु एक ब्राह्मण का वेष धारण करके यज्ञ स्थल पर पहुंचे और राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा ने ब्राह्मण की मांग स्‍वीकार कर ली। ब्राह्मण ने पहले पग में पूरी भूमि और दूसरे पग ने पूरा आकाश नाप दिया। राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं, इसलिए उन्‍होंने फौरन ब्राह्मण की तीसरा पग अपने सिर पर रख लिया।

उन्‍होंने कहा कि भगवान अब तो मेरा सबकुछ चला गया है, अब आप मेरी विनती स्‍वीकार करे और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान को राजा की बात माननी पड़ी। उधर मां लक्ष्‍मी भगवान विष्‍णु के वापिस न लौटने से चिंतित हो उठीं। उन्‍होंने एक निर्धन महिला का वेष बनाया और राजा बलि के पास पहुंचकर उन्‍हें राखी बांध दी। राखी के बदले राजा ने कुछ भी मांग लेने को कहा तो मां लक्ष्‍मी फौरन अपने असली रूप में आ गईं और राजा से अपने पति भगवान विष्‍णु को वापिस लौटाने की मांग की। राखी का मान रखते हुए राजा ने भगवान विष्‍णु को मां लक्ष्‍मी के साथ वापिस भेज दिया।

रक्षाबंधन को लेकर इस प्रकार की और भी अनेक कथाएँ भारतीय लोकमानस में कही-सुनी जाती हैं। जिनमें भाई-बहन के प्रेम, रक्षासूत्र और भाई के द्वारा बहन की रक्षा करने संबंधी उल्लेख मिलता है। इस प्रकार की परम्पराएं निसंदेह समाज को नयी दिशा देती हैं और संबंधों में ऊर्जा का संचार करती हैं। आइए, हम सब संकल्प लें की हम अपनी परम्पराओं को जीवित रखेंगे।