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राजा राममोहन राय : जिन्होंने समाज सुधार के साथ भाषायी पत्रकारिता की बुनियाद रखी

स्वराज करुण 
(ब्लॉगर एवं पत्रकार )

भारत की महान विभूतियों में राजा राममोहन राय का नाम आज भी सम्मान के साथ याद किया जाता है। आज, 22 मई को, उनकी जयंती है।

वे एक महान समाज सुधारक तो थे ही, साथ ही भारत में भाषायी पत्रकारिता की बुनियाद भी उन्होंने रखी थी। उन्हें सिर्फ 61 साल का जीवन मिला, लेकिन इस छोटी-सी जीवन यात्रा में वे समाज सुधार और सामाजिक जागरण के लिए कई ऐसे ऐतिहासिक कार्य कर गए, जिन्हें भारतीय समाज आज भी याद करता है।

भारत के तत्कालीन अविभाजित बंगाल में 22 मई 1772 को जन्मे राजा राममोहन राय ने देश में सती प्रथा, बाल विवाह, जाति प्रथा और पर्दा प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जन जागरण का ऐतिहासिक अभियान चलाया। उन्होंने इन कुरीतियों के विरुद्ध दमदारी से आवाज़ बुलंद की। समाज सुधार के अपने कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने ‘ब्रह्म समाज’ की भी स्थापना की।

स्वतंत्रता संग्राम के लिए भी उन्होंने भारतीय समाज में जन चेतना जाग्रत करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन दिनों देश में महिलाओं के विधवा हो जाने पर उन्हें पति की चिता में बैठाकर ज़िंदा जला देने की शर्मनाक और अमानवीय परंपरा थी। राजा राममोहन राय ने इसका तीव्र विरोध किया। उनके ही प्रयासों के फलस्वरूप तत्कालीन अंग्रेज़ हुकूमत को सती प्रथा की रोकथाम के लिए कानून बनाना पड़ा। राजा राममोहन राय का मानना था कि देश की आज़ादी के लिए देशवासियों को सबसे पहले इस प्रकार की सामाजिक बुराइयों की बेड़ियों से आज़ाद होने की ज़रूरत है।

उन्होंने अपने विचारों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए देश में भाषायी पत्रकारिता की बुनियाद रखी और ‘बंगदूत’ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन और संपादन शुरू किया। इस समाचार पत्र में आलेख आदि एक साथ तीन भाषाओं—हिन्दी, बांग्ला और फारसी में छपते थे। राजा साहब ने ‘ब्रह्म मैनिकल मैगज़ीन’, ‘संवाद कौमुदी’ और ‘मिरात-उल-अख़बार’ का भी सफलतापूर्वक संपादन और प्रकाशन किया। अंग्रेज सरकार की गलत नीतियों के विरुद्ध उन्होंने अपने इन प्रकाशनों में खूब लिखा। इंग्लैंड प्रवास के दौरान, 27 सितंबर 1833 को, 61 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।

भारत सरकार ने उनके सम्मान में वर्ष 1964 में डाक टिकट जारी किया था।