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बलिदान की अमर गाथा: प्रीतिलता वादेदार

सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी प्रीतिलता वादेदार का जन्म 5 मई 1911 को चटगाँव में हुआ था। अब यह क्षेत्र पाकिस्तान में है। उनके पिता नगरपालिका के क्लर्क थे। वे चटगाँव के कन्या विद्यालय की मेधावी छात्रा थीं। उन्होंने सन् 1928 में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वे इंटरमीडिएट परीक्षा में पूरे ढाका बोर्ड में पाँचवें स्थान पर आईं।

पिता भले ही शासकीय सेवा में थे, पर प्रीतिलता स्वराज आंदोलन से जुड़ गईं। इसके चलते कलकत्ता विश्वविद्यालय ने उनकी डिग्री रोक दी थी, जो उनके बलिदान के 80 वर्ष बाद मरणोपरांत जारी की गई। यह घटना अपने आप में सबसे अलग और ऐतिहासिक मानी जाती है।

स्कूली जीवन में वे पहले एक संस्था बालचर से जुड़ीं। यह संस्था अंग्रेजों के प्रति वफादारी का अभियान चला रही थी, लेकिन वे बचपन से रानी लक्ष्मीबाई के जीवन चरित से अत्यधिक प्रभावित थीं। इस कारण उनके मन में भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के विचार उठते थे। धीरे-धीरे अंग्रेजों के प्रति उनके मन में और दूरियाँ बढ़ीं। उन्होंने यह संस्था छोड़ दी और क्रांतिकारी आंदोलन के समीप आ गईं।

इसी बीच उनकी भेंट प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्य सेन से हुई। प्रीतिलता उनके दल की सदस्य बन गईं। जब वे सूर्य सेन से मिलीं, तब वे अज्ञातवास में थे। सूर्य सेन के संदेश यहाँ-वहाँ पहुँचाने का काम क्रांतिकारी प्रीतिलता को मिला, जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक पूरा किया। इससे प्रभावित होकर उनके दल ने उन्हें इंडियन रिपब्लिकन आर्मी में महिला सैनिक बना दिया।

एक दिन वे अपने दल के साथ जा रही थीं कि घलघाट क्षेत्र में पुलिस ने घेर लिया। क्रांतिकारियों के इस समूह में अपूर्व सेन, निर्मल सेन, प्रीतिलता और सूर्य सेन शामिल थे। जमकर मुकाबला हुआ, जिसमें अपूर्व सेन और निर्मल सेन का बलिदान हो गया, जबकि सूर्य सेन और प्रीतिलता घेरा तोड़कर निकलने में सफल हो गए। उस समय क्रांतिकारी सूर्य सेन पर 10 हजार रुपये का इनाम घोषित था।

इसके बाद सूर्य सेन ने अंग्रेजों पर हमला करने की योजना बनाई। योजनानुसार पहाड़ी की तलहटी में स्थित यूरोपीय क्लब पर धावा बोलना था। यह पहाड़ी अंग्रेजों की ऐय्याशी का एक बड़ा अड्डा था। 24 सितम्बर 1932 की रात, प्रीतिलता के नेतृत्व में क्रांतिकारी वहाँ पहुँचे। हथियारों के साथ प्रीतिलता ने पोटेशियम सायनाइड नामक विष भी रख लिया था, क्योंकि वे चाहती थीं कि जीवित रहते अंग्रेजों की गिरफ्त में न आएँ।

प्रीतिलता अपने दल के साथ क्लब पहुँचीं। बाहर से खिड़की में बम लगाया गया। बम विस्फोट से क्लब में एकाएक चीखें सुनाई देने लगीं। 13 अंग्रेज जख्मी हो गए और बाकी भाग गए। इस घटना में एक यूरोपीय महिला मारी गई। थोड़ी देर बाद क्लब से गोलीबारी शुरू हो गई। प्रीतिलता को एक गोली लगी और वे घायल हो गईं। जब भागने में सफल न हो सकीं, तो उन्होंने पोटेशियम सायनाइड खा लिया। उस समय उनकी उम्र मात्र 21 वर्ष थी। इस प्रकार, अंग्रेजों से लड़ते हुए प्रीतिलता ने अपना बलिदान दे दिया।