प्रदीप चौहान : जीने का नज़रिया बदल देती है घुमक्कड़ी।

घुमक्कड़ जंक्शन पर आज हमारे साथ हैं पेशे से साफ़्टवेयर इंजीनियर एवं हरियाणा के पलवल शहर के निवासी प्रदीप चौहान। घुमक्कड़ी के अलावा ये अपने संस्मरण ब्लॉग़ पर भी लिखते हैं एवं घुमक्कड़ी को जीवन के अनिवार्य मानते हैं। आईए इनसे चर्चा करते हैं घुमक्कड़ी की……

1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?

@-मूल रूप से तो मैं उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से हूँ लेकिन मेरा जन्म हरियाणा के पलवल शहर में हुआ। दरअसल, पिताजी शादी के बाद नौकरी के चक्कर में उत्तर प्रदेश से निकलकर हरियाणा आ गए, यहाँ 17 जून 1984 को मेरा जन्म हुआ। मेरे बचपन की बात करे तो ये बहुत मस्ती में बीता, तीन भाई-बहनों में मैं सबसे छोटा हूँ, हम तीनों दिन-भर खूब बदमाशी करते थे। बचपन में गर्मी की छुट्टियाँ गाँव में दादा-दादी के पास ही बीतती थी, वैसे पिताजी के डर से हम तीनों हमेशा ही अनुशासन में रहे।
शिक्षा की बात करें तो मेरी 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई पलवल में ही एक सरकारी स्कूल में हुई, स्कूल के दिनों में मैं अपने स्कूल में हमेशा ही मेधावी छात्रों की श्रेणी में रहा। 12वीं के बाद इंजिनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए फरीदाबाद स्थित एक कॉलेज में दाखिला ले लिया और रोजाना घर से ही आता-जाता रहा। रोजाना डेढ़ से 2 घंटे का सफ़र तय करके कॉलेज पहुँचता, दिन-भर पढ़ाई करने के बाद शाम को वापसी में भी इतना ही समय लगता। मेरा मानना है कि आज मैं जीवन में जो भी हूँ ये माता-पिता की परवरिश और मेरे शिक्षकों की मेहनत का ही परिणाम है।

2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं ?

@ वर्तमान में मैं गुड़गाँव स्थित एक निजी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजिनियर के पद पर कार्यरत हूँ। परिवार में माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी (अर्चना) और दो बच्चे (शौर्य और उत्कर्ष) है। बड़े भाई रक्षा मंत्रालय में अनुभाग अधिकारी (Section Officer) है जबकि बहन गोरखपुर में प्राइमरी अध्यापक है। पिताजी पिछले वर्ष ही सरकारी नौकरी से रिटायर हुए है।

3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?

@ कॉलेज के दिनों तक तो घूमने का बिल्कुल भी शौक नहीं था, खाली समय होने के बावजूद भी कहीं घूमने-फिरने नहीं जाता था। दरअसल उस समय तक शायद पता भी नहीं था कि घूमना किसे कहते है। घूमने का शौक मुझे पहली नौकरी मिलने के बाद 2007 से लगा, जब पहली बार कुछ दोस्तों के साथ वैष्णो देवी की यात्रा पर गया। वैसे मेरे परिवार में मेरे अलावा किसी को घूमने-फिरने का ज़्यादा शौक नहीं है, यही कारण है कि मेरे घूमने-फिरने से लगभग सभी को आपत्ति रहती है।
मेरे घूमने फिरने को अक्सर फ़िजूलखर्ची की निगाहों से देखा जाता है, कई बार मुझे मेरी घूमने की प्रवृति के कारण आवारा भी करार दे दिया जाता है। लेकिन मैं हमेशा इन हर बार इन परिस्थितियों से उबरकर फिर कहीं घूमने निकल जाता हूँ। घूमने-फिरने से इतिहास के प्रति मेरा जो लगाव बढ़ा है उसे मैं ही जानता हूँ। कभी कभी तो सोचता हूँ कि काश स्कूल समय में ही मुझे घूमने का मौका मिल जाता तो इतिहास अच्छे से समझ आता। फिलहाल मैं हर महीने अपनी तनख़्वाह में से कुछ पैसे घूमने जाने के लिए निकाल कर अलग कर देता हूँ, फिर मौका मिलते ही कहीं घूमने निकल जाता हूँ।

4 – किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं, ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेलों भी क्या सम्मिलित हैं, कठिनाइयाँ भी बताएँ ?

@ घुमककड़ी तो मुझे हर तरह की पसंद है, फिर चाहे वो ऐतिहासिक जगह की हो, पर्वतीय नगरों की, या किसी अन्य स्थान की, मुझे तो बस घूमने और नई जगहें देखने से मतलब है। ये घूमने का ही जुनून है कि मैं मई-जून की तपती गर्मी में भी कई बार ऐतिहासिक किलों और चिड़ियाघर की घुमककड़ी पर निकला हूँ। ऐसा कई बार हुआ है कि घूमने जाने की योजना बनाकर अंतिम समय में जब सबने मना कर दिया तो मैं अकेले ही घूमने निकल पड़ा। वैसे अब तक अधिकतर मैं ऐतिहासिक जगहों और पर्वतीय शहरों में ही ज़्यादा गया हूँ। ट्रेकिंग का शौक तो है, लेकिन अभी ट्रेकिंग करने का ज़्यादा मौका नहीं मिला है। अभी तक त्रिऊंड, सुरकंडा देवी, तुंगनाथ, और देवरिया ताल के अलावा छोटे-मोटे ट्रेक करने का ही मौका मिला है। रोमांचक खेलों के प्रति भी अच्छी रूचि है, रिवर राफ्टिंग, बोटिंग, और जंगल सफारी भी की है। अधिकतर यात्राओं पर दोस्तों के साथ जंगल में काफ़ी अंदर तक पैदल ही घूमने निकल पड़ता हूँ। कठिनाइयाँ तो ज़्यादा नहीं है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पहाड़ी क्षेत्रों में हुए हादसों के कारण सुदूर जगहों पर जाने के लिए अगर एक भी दोस्त का साथ मिल जाए तो यात्रा थोड़ी आसान लगती है और समय भी अच्छे से गुजर जाता है।

5 – उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?

@ 2007 में नौकरी मिलने के बाद मार्च 2008 में पहली बार कुछ दोस्तों के साथ वैष्णो देवी की यात्रा पर गया, अगले कुछ सालों तक लगातार वैष्णो देवी की यात्रा पर ही जाता रहा। पहला अनुभव निश्चित तौर पर काफ़ी अच्छा रहा, इस यात्रा के बाद ही पता चला कि कहीं घूमने जाते हुए क्या-क्या तैयारियाँ करनी पड़ती है और किन सावधानियों का ख्याल रखना पड़ता है। अब अधिकतर यात्राओं पर जाते हुए खुद से ही योजना बनाता हूँ, लगातार घूमते रहने से निर्णय लेने में परिपक्वता भी आती है और अगर समूह में यात्रा कर रहे हों तो नेतृत्व करने का भी सुनहरा अवसर मिलता है।

6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?

@ घूमते हुए परिवार और अपने शौक के बीच सामंजस्य बिठाना बहुत मुश्किल काम है और दिक्कत तब और बढ़ जाती है जब आपके साथ छोटे बच्चे हों। मेरे तो दोनों ही बच्चे छोटे है इसलिए मैं पारिवारिक यात्राओं के दौरान ऐसी जगहों को प्राथमिकता देता हूँ जहाँ या तो मैं पहले जा चुका हूँ या जहाँ ज़्यादा पैदल ना घूमना पड़े। बच्चों के गोदी में लेकर पहाड़ी क्षेत्रों में चलना बड़ा चुनौती भरा काम है। नई जगहों या ट्रेकिंग वाली यात्राओं पर दोस्तों के साथ ही जाना पसंद करता हूँ, ताकि यात्रा का पूर्ण आनंद ले सकूँ। शादी से पहले तो अधिकतर यात्राएँ दोस्तों के साथ ही होती थी लेकिन अब कुछ यात्राएँ परिवार संग तो कुछ दोस्तों संग करता हूँ।

7 – आपकी अन्य रुचियों के विषय में बताइए?

@ घुमककड़ी के अलावा, नयी-नयी जगहों के बारे में यात्रा लेख पढ़ना, लंबी दूरी की यात्राएँ करना, और अपने यात्रा वृतांत लिखने का शौक है। शुरुआत 2012 में घुमक्कड़ डॉट कॉम पर अपने यात्रा वृतांत लिखने से की थी, फिर बाद में 2014 से अपने ब्लॉग लेखन का काम शुरू कर दिया ! वर्तमान में अपना मेरा ब्लॉग मै हूँ मुसाफ़िर नाम से है जिसपर नियमित रूप से मैं अपने यात्रा वृतांत लिखता हूँ।

8 – घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है?

@ देखिए इस बारे में मैं ज़्यादा तो नहीं जानता, मुझसे भी बड़े-बड़े अनेकों घुमक्कड़ बैठे है लेकिन अपनी अभी तक की यात्राओं के अनुभव के आधार पर इतना ज़रूर जान पाया हूँ कि घूमने फिरने से नयी-नयी जगहों के बारे में, नए लोगों के बारे में, अलग-अलग संस्कृतियों और ख़ान-पान का पता चलता है। अपनी रोजमर्रा के काम-काज से जब मन ऊबने लगता है तो थोड़ा समय निकालकर घूम लेने से शरीर में नई ऊर्जा का संचार हो जाता है और काम करने में आनंद भी आता है। मैं भी अक्सर काम के बीच में छुट्टियाँ लेकर घूमने निकल जाता हूँ फिर चाहे वो कोई छोटी-मोटी यात्रा ही क्यों ना हो।

9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?

@ मेरी सबसे रोमांचक यात्रा तुंगनाथ की थी, इस यात्रा से मुझे एक नयी दिशा मिली और अपने जीवन की अहमियत भी पता चला। तुंगनाथ से वापिस आते हुए एक हादसे में मुझे काफ़ी गंभीर चोटे लगी, भोलेनाथ की कृपा रही कि हल्की-फुल्की चोट से ही मामला निबट गया और मैं सकुशल घर पहुँचा। आज भी उस हादसे की तस्वीरें मेरे जहन में ज्यों की त्यों है। वैसे घूमने-फिरने की बात करें तो मेरी अधिकतर यात्राएँ पहाड़ी क्षेत्रों और ऐतिहासिक क्षेत्रो की ही रही है फिर भी अभी तक उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर के कुछ क्षेत्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, और राजस्थान के काफ़ी शहर घूम चुका हूँ। हर यात्रा मुझे एक नया अनुभव देती है, हर नई यात्रा मुझे अपनी पिछली यात्राओं पर की गई ग़लतियों को सुधारने का एक नया मौका भी देती है।

10 – नये घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?

@ बस इतना ही कहना चाहूँगा कि मानव जीवन बहुत मुश्किल से मिलता है इसलिए इसकी अहमियत को समझिए। जीवन में भाग-दौड़ तो सारी उम्र ही लगी रहेगी, इसलिए जब भी मौका मिले, अपनी दिनचर्या से समय निकाल कर कहीं घूमने ज़रूर जाइए। जीवन के अंतिम पड़ाव में आपके पास इन यात्राओं से जुड़ी यादें ही रह जाएगी, जो आपको प्रसन्नचित रखने के लिए नितांत आवश्यक है। निरंतर घूमते रहने से अन्य लोगों और अपने आस-पास के वातावरण के प्रति आपका दृष्टिकोण बदल जाता है जो आपको लोगों की भीड़ से अलग करता है।

10 thoughts on “प्रदीप चौहान : जीने का नज़रिया बदल देती है घुमक्कड़ी।

  • October 5, 2017 at 00:10
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    आप तो मेरे शहर लखनऊ के करीब के ही हैं
    आपसे मिलकर अपने शहर के जैसी ही feeling आ रही।

    अच्छा लगा आपके बारे में जानकर ।

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  • October 5, 2017 at 10:07
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    किसी की सरल तो किसी की कठिन, हर घुमक्कड़ की अपनी ही एक दास्ताँ है. वैसे ही जैसे कि हर जगह की होती है. अच्छा लगा आपसे मिलकर।

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  • October 5, 2017 at 14:17
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    सच में जीवन के अंतिम पड़ाव में इन खूबसूरत यादों के सहारे ही मन प्रसन्न रहेगा ,वरना जिंदगी बोझ लगेगी।
    बधाई हो भाई आपको और ललित जी का दिल से आभार।

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  • October 7, 2017 at 22:45
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    Bahut ghumte hai apne bhai shaab…Or sabhi ko ghar bete apne lekho se ghuma b dete hai.. Good brother keep it up…

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