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प्रधानमंत्री मोदी की बहु-देशीय यात्रा: बहुपक्षीय मंचों से हटकर व्यावहारिक कूटनीति की जरूरत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक महत्वपूर्ण बहु-देशीय विदेश यात्रा पर निकले हैं, जिसमें वे दो महाद्वीपों के कई देशों का दौरा कर रहे हैं। इस यात्रा का मुख्य आकर्षण ब्राजील में आयोजित वार्षिक ब्रिक्स शिखर सम्मेलन है, लेकिन प्रधानमंत्री की यात्रा इससे कहीं अधिक व्यापक है। ब्रिक्स के अलावा, वे अर्जेंटीना और त्रिनिदाद और टोबैगो के साथ द्विपक्षीय बैठकों में भी भाग लेंगे, जबकि यात्रा के मार्ग में घाना और नामीबिया में भी उनकी उपस्थिति तय है।

ब्रिक्स की बदलती तस्वीर और भारत की भूमिका

कुछ वर्ष पहले तक ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) को वैश्विक व्यवस्था में बदलाव का वाहक माना जा रहा था। लेकिन हाल के वर्षों में इस मंच के भीतर गहराती खाइयाँ—विशेषकर भारत और चीन के बीच—इसकी सीमाओं को उजागर कर चुकी हैं। अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर मिली का BRICS में शामिल होने से इनकार करना यह दर्शाता है कि हर देश इस मंच को उतनी ही प्राथमिकता नहीं देता।

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बहुपक्षीय रणनीति बनाम यथार्थवादी कूटनीति

आज की वैश्विक परिस्थिति में—जब अमेरिका की विदेश नीति अनिश्चितता से गुजर रही है और वैश्विक शक्ति संतुलन अस्थिर हो रहा है—भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए व्यावहारिक कूटनीति अपनाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा का मूल उद्देश्य भी भारत के आर्थिक और रणनीतिक हितों को मज़बूत करना है।

एक दशक की यात्रा: चीन से उम्मीद से टकराव तक

2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी की पहली विदेश यात्रा भी ब्रिक्स सम्मेलन के लिए ब्राजील ही थी। तब उन्होंने रूस के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करने, चीन से बेहतर तालमेल की संभावना तलाशने और वैश्विक मंचों पर भारत की भूमिका को मज़बूत करने की कोशिश की थी। हालांकि, जल्द ही यह उम्मीदें चीन के साथ सीमा विवादों में उलझ गईं। 2017 और 2020 की झड़पों ने चीन के इरादों को लेकर भारत की रणनीतिक सोच में स्थायी परिवर्तन ला दिया।

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अमेरिका के साथ बढ़ती नजदीकी और रूस की स्थिति

चीन से बिगड़ते रिश्तों के बीच भारत और अमेरिका के संबंधों में उल्लेखनीय प्रगति हुई। वहीं दूसरी ओर, रूस—जिसे कभी क्षेत्रीय संतुलन का आधार माना जाता था—अब पश्चिमी देशों से दूर होकर चीन के साथ और अधिक घनिष्ठ हो चुका है। क्रीमिया (2014) के बाद यूक्रेन पर 2022 में हुए हमले ने रूस की विदेश नीति को निर्णायक रूप से मोड़ दिया, जिससे भारत-रूस संबंधों की दिशा भी प्रभावित हुई है।

एक ही सप्ताह में BRICS और क्वाड की कूटनीति

दिलचस्प रूप से इस सप्ताह एक ओर जहाँ प्रधानमंत्री मोदी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं, वहीं विदेश मंत्री एस. जयशंकर अमेरिका में क्वाड (QUAD) देशों की बैठक में शामिल हो रहे हैं। यह भारत की “मल्टी-अलाइनमेंट” रणनीति को दर्शाता है—जहाँ भारत वैश्विक शक्तियों के बीच संतुलन साधने का प्रयास करता है। हालांकि, यह धारणा कि भारत इन प्रतिद्वंद्वी शक्तियों के बीच बिना किसी कीमत चुकाए आसानी से आगे बढ़ सकता है, अब जाँच के घेरे में है।

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दुनिया में मौजूदा भू-राजनीतिक अस्थिरता के बीच भारत के लिए समय की माँग है कि वह आदर्शवाद से ऊपर उठकर व्यावहारिकता को प्राथमिकता दे। इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री का जोर भारत के सामरिक हितों की रक्षा, रणनीतिक साझेदारियों को संतुलित करने और घरेलू मजबूती पर केंद्रित होना चाहिए। एक स्थिर, सक्षम और आत्मनिर्भर भारत ही वैश्विक मंचों पर टिकाऊ प्रभाव बना सकता है।