साहित्यिक अभिव्यक्ति और वर्षा का अद्भुत संयोग : पावस काव्यगोष्ठी
पिथौरा/ वर्षा ऋतु के स्वागत में श्रृंखला साहित्य मंच, पिथौरा द्वारा 2 जुलाई की संध्या को ‘पावस काव्यगोष्ठी’ का आयोजन किया गया, जो साहित्य और प्रकृति के एक सुंदर, संवेदनशील संगम का साक्षी बना। यह आयोजन न केवल साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध रहा, बल्कि इसकी संयोगवश प्राप्त प्रकृति की प्रतिक्रिया ने इसे और भी भावपूर्ण बना दिया। अगले ही दिन पिथौरा और आसपास के क्षेत्रों में अच्छी बारिश हुई, जिसकी लंबे समय से प्रतीक्षा हो रही थी। किसानों के चेहरों पर मुस्कान और कवियों के भावों में ऊर्जा – दोनों इस गोष्ठी की सफलता का प्रमाण बने।
गोष्ठी शाम 6 बजे से प्रारंभ होकर रात 8:30 बजे तक चली। इसमें श्रृंखला साहित्य मंच से जुड़े कई रचनाकारों ने अपनी प्रभावशाली कविताएँ प्रस्तुत कीं, जिनमें वर्षा, बादल, बिजली, जल, कृषक जीवन, और ग्रामीण संवेदनाएँ केंद्र में रहीं। हास्य-व्यंग्य, क्षणिकाएँ और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी कविताओं ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि स्वराज्य ‘करुण’ ने की एवं मंच संचालन श्रृंखला साहित्य मंच के अध्यक्ष प्रवीण ‘प्रवाह’ ने किया।
प्रमुख काव्य प्रस्तुतियाँ:
गुरप्रीत कौर – युवा कवयित्री ने अपनी रचना से गोष्ठी का शुभारंभ किया। उनकी कविता में पावस की मर्मस्पर्शी कोमलता और प्राकृतिक भावनाएँ समाहित थीं:
“वारिद भी नमी समेटे
अंबर के साये में
मस्त हो के उड़ रहे हैं…नमी बढ़ जाए तो
बूँदों को बरसने देना चाहिए।”
इन पंक्तियों ने श्रोताओं को एक शांत, सौम्य मानसून की अनुभूति दी।
अनूप दीक्षित – अपनी विशेष शैली ‘कुंडलिया’ में किसान और वर्षा के संबंध को शब्द दिए:
“पावस के आगमन से, हर्षित हुआ किसान,
दादुर भी करने लगे, खुश होकर गुणगान।खुश होकर गुणगान, मोर मस्ती में झूमे,
बादल से गिरकर पानी, धरती को चूमे।बोले अनूप कवि, झूम उठे सब प्राणी,
नभ से बरसे प्रेम बनके अमृत पानी।”
इस कविता ने श्रोताओं को ग्रामीण भारत की सजीव झलक दी।
स्वराज्य ‘करुण’ – अध्यक्षीय आसंदी से वर्षा के बादलों की आत्मीय, कल्पनाशील तस्वीर खींचते हुए उन्होंने यह रचना प्रस्तुत की:
“नभ में तैर रहे हैं देखो, टुकड़े-टुकड़े बादल,
हिप्पी जैसे बाल बढ़ाए, बिखरे-बिखरे बादल।घर-बार नहीं है इनका, ये निरंतर चलते राही हैं,
लगते हैं शरणागत जैसे, उजड़े-उजड़े बादल।”
इस रचना में कल्पना और यथार्थ का सुंदर समन्वय दिखाई दिया।
प्रवीण ‘प्रवाह’ – प्रतीकात्मकता और दर्शन से परिपूर्ण रचनाओं में उन्होंने मानवता का पक्ष उठाया:
“कोमलता स्थापित हो मानव के मन में,
चिंतन से बाहर आ जाएँ सारे पत्थर।पत्थर में भी कोमलता के भाव जगा दूँ,
सोच रहा हूँ हर पत्थर के पंख लगा दूँ।मनुष्य मनुष्य हो, वृक्ष-सा हरा रहे,
घृणा को मिटा दूँ, प्रेम से भरा रहे।”
यह कविता भावनाओं को गहराई से छूने वाली रही।
बंटी छत्तीसगढ़िया – छत्तीसगढ़ी भाषा में हास्य और व्यंग्य की मिठास लिए, अपनी पारंपरिक शैली में उन्होंने खूब तालियाँ बटोरीं:
“बाबू के दाईं रिसाए हवस ओ,
थोथना ला काबर ओरमाए हावस ओ।मेला जाए के तोला साध धरे है,
काबर तैं झगरा मताए हावस ओ।झन समझ मोर मन ला भुला के,
मया तोर दाई ले मिलाए हावस ओ।”
इन पंक्तियों में घरेलू संवादों और व्यावहारिक हास्य की झलक रही।
संतोष गुप्ता – अपनी लघु कविताओं से उन्होंने वर्षा का संतुलित, सूक्ष्म चित्रण किया:
“धरती को जल, अंबर को मेघ मिल गया,
धरती में बीजों को मिट्टी का स्नेह मिल गया।नन्हें-नन्हें पौधों को मिल गई खुशियाँ,
हरे-भरे वृक्षों को पवन का संग मिल गया।”
संक्षिप्त होते हुए भी यह रचना बहुत प्रभावशाली रही।
एफ. ए. नन्द – क्षणिकाओं के माध्यम से उन्होंने पावस का आनंद और भक्ति भाव को प्रस्तुत किया:
“बादल गरजे, बिजली चमके,
पानी बरसे झम झम झम।बादल गरजे, मयूरा नाचे,
कांवड़िया बोले बम बम बम।”
श्रवणाभिराम और लयबद्धता के साथ इन पंक्तियों को खूब सराहा गया।
एस. के. नीरज – उनकी रचना में पावस की सांगीतिकता और प्रकृति का सौंदर्य झलका:
“वर्षा की बूँदें पावनी, झर-झर पड़े फुहार,
दादुर, मोर, चकोर का, मन भावन उपहार।मेघा स्वाती देखकर, चातक भाव विभोर,
तड़प मिटी उसकी तभी, बरसे मेह घनघोर।”
कविता में प्रकृति, परंपरा और प्रतीकों का सुंदर प्रयोग था।
श्रीमती सरोज साव – उन्होंने वर्षा ऋतु की व्यापकता और प्रकृति के पुनर्जीवन पर कविता सुनाई:
“चौमासा, वर्षा, पावस ऋतु, बारिश –
सारे नाम तुम्हारे और कितने रूप हैं सारे।पावस प्रकृति के पल्लवित होने का आधार,
बिना इसके सारे मौसम होते हैं निराधार।जीवन के प्रवाह का यह पहला गीत है,
हर बूँद में छिपा एक नन्हा नवनीत है।”
गोष्ठी के अंत में वरिष्ठ सदस्य उमेश दीक्षित ने ‘पावस काव्यगोष्ठी’ की सार्थकता पर प्रकाश डालते हुए सभी कवियों की सराहना की और उन्हें बधाई दी। गायत्री शक्तिपीठ पिथौरा के प्रमुख संचालक तुकाराम पटेल ने आयोजन के सफल संचालन हेतु आभार प्रदर्शन किया। गोष्ठी को सफल बनाने में सुरेंद्र साहू, नरेश नायक, भोजराज साहू, रामललन सिंह तथा गायत्री परिवार के सभी सदस्यों का योगदान अत्यंत सराहनीय रहा।