मुंबई हमले का षड़यंत्र अब पूरी तरह होगा बेनकाब

भारत ने आतंकवाद के विरुद्ध अपनी दृढ इच्छाशक्ति का एक और प्रमाण प्रस्तुत करते हुए तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण में सफलता प्राप्त की है। यह केवल न्याय का मार्ग प्रशस्त करने वाला कदम नहीं है, बल्कि पाकिस्तान के राज्य-प्रायोजित आतंकवाद की काली सच्चाई को उजागर करने की एक मजबूत शुरुआत भी है। तहव्वुर राणा, जो 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले की एक महत्वपूर्ण कड़ी रहा है, अब भारत की न्यायिक प्रक्रिया का सामना करेगा। लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि उसका भारत आना पाकिस्तान के उन झूठे दावों की कलई खोल सकता है, जिसके पीछे वह वर्षों से आतंकवाद की फैक्ट्री चला रहा है।
जैसे ही अमेरिका ने राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दी, पाकिस्तान की ओर से तुरंत सफाई आने लगी। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया कि राणा पिछले 20 वर्षों से पाकिस्तानी दस्तावेज़ नवीनीकृत नहीं करवा रहा था और अब वह केवल एक “कनाडाई नागरिक” है। यह वही पाकिस्तान है जो अपने ही पाले हुए आतंकवादियों से अनजान बनने का दिखावा करता है। लेकिन राणा के मामले में उसकी बेचैनी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि उसकी पोल खुलने का डर उसे भीतर तक हिला चुका है।
राणा का जुड़ाव केवल डेविड कोलमैन हेडली के माध्यम से मुंबई हमलों तक सीमित नहीं है, बल्कि उसके तार सीधे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI और पाकिस्तानी सेना से जुड़े हुए हैं। हेडली की गवाही और NIA की जांच से यह पहले ही सिद्ध हो चुका है कि “मेजर इकबाल” जैसे पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी सीधे इन हमलों की योजना में शामिल थे। हेडली को फंडिंग, वीजा, और ऑपरेशनल सपोर्ट देने वाले यही लोग थे और राणा इस पूरी योजना का एक सक्रिय पात्र था।
तहव्वुर राणा ने न केवल हेडली को भारत में लॉजिस्टिक सपोर्ट दिया, बल्कि अपनी कंपनी के माध्यम से उसे एक वैध पहचान भी प्रदान की, जिससे वह भारत में खुलेआम घूमकर हमलों की योजना बना सका। उसने हेडली की यात्राओं के दौरान उससे दर्जनों बार संपर्क किया, उसकी यात्राओं के लिए वीजा एक्सटेंशन करवाया और मुंबई में एक फ्रंट ऑफिस खोलने में मदद की, जिसे आतंकवादी गतिविधियों की योजना बनाने का ठिकाना बनाया गया।
यह केवल एक व्यक्ति के न्यायालय में पेश होने का मामला नहीं है। यह एक ऐसे नेटवर्क को सामने लाने का मौका है जो दशकों से भारत में दहशत फैलाने की साजिशें रचता रहा है। पाकिस्तान का यह आतंकवादी मॉडल अब पुराना हो चुका है, पहले आतंकी तैयार करो, फिर उनसे हमले करवाओ और फिर दुनिया के सामने झूठ बोलकर खुद को बेकसूर बताओ। पर अब जब तहव्वुर राणा भारत की न्यायिक प्रणाली के समक्ष खड़ा होगा, तब उसके पास छुपाने को कुछ नहीं बचेगा और पाकिस्तान विश्विक समुदाय के सामने निर्वस्त्र खड़ा होगा।
यह मामला भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों को भी एक नए मोड़ पर ला खड़ा करता है। अगर राणा की गवाही में पाकिस्तानी सैन्य व खुफिया एजेंसियों की भूमिका स्पष्ट रूप से सामने आती है, तो भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा कर सकता है। इससे पाकिस्तान पर न केवल कूटनीतिक दबाव बढ़ेगा, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहयोग को भी नई दिशा मिलेगी।
मुंबई हमला केवल भारत पर हमला नहीं थे, वह मानवता पर हमला थे। उन हमलों में भारतीयों के साथ-साथ विदेशी नागरिक भी मारे गए थे। यह एक अंतरराष्ट्रीय अपराध था, और अब जब तहव्वुर राणा भारत में है, तो न्याय की प्रक्रिया को उस मुकाम तक पहुँचाना आवश्यक है जहाँ दोषियों की पूरी साजिश बेनकाब हो सके।
पाकिस्तान वर्षों से आतंकवाद को एक रणनीतिक औज़ार की तरह इस्तेमाल करता रहा है। तहव्वुर राणा की गवाही, उसके पाकिस्तानी आकाओं के नाम, और उसका आतंकी नेटवर्क, सब कुछ अगर सामने आता है, तो यह पाकिस्तान के लिए एक वैश्विक अपमान की घड़ी होगी। यह समय है कि दुनिया पाकिस्तान से सवाल पूछे और भारत इस सच्चाई को सामने लाने के लिए तैयार है।
भारत के लिए यह केवल न्याय प्राप्त करने का नहीं, बल्कि भविष्य में होने वाले हमलों को रोकने का भी अवसर है। यदि पाकिस्तान के आतंकवादी नेटवर्क और उनके सरकारी संरक्षण को विश्व के सामने रखा जा सके, तो यह आने वाले समय में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
आतंकवाद की कोई सीमा नहीं होती, न कोई धर्म होता है, न कोई इंसानियत। लेकिन जब एक राष्ट्र स्वयं आतंकवाद को पाल-पोस कर दुनिया में फैला रहा हो, तो उसकी पहचान और नीयत पर सवाल उठना स्वाभाविक है। तहव्वुर राणा की मौजूदगी भारत में अब उन सभी सवालों का उत्तर खोजने में मदद करेगी जो वर्षों से अनुत्तरित थे।
आज जब भारत दुनिया को आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट करने का आह्वान करता है, तो तहव्वुर राणा का मामला उस प्रयास को एक ठोस आधार प्रदान करता है। यह सिर्फ एक व्यक्ति की गिरफ़्तारी नहीं, बल्कि एक आतंकवादी राष्ट्र की परतें उधेड़ने की शुरुआत है। अब भारत को न केवल कानूनी मोर्चे पर बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी इस अवसर का भरपूर उपयोग करना होगा। तहव्वुर राणा भारत में है और सच्चाई अब बहुत दूर नहीं।