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पाकिस्तान ने डोनाल्ड ट्रंप को 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए किया नामांकित

पाकिस्तान ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को वर्ष 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए औपचारिक रूप से नामांकित किया है। इस अभूतपूर्व कदम के पीछे पाकिस्तान का तर्क है कि ट्रंप ने हाल ही में भारत-पाकिस्तान के बीच उत्पन्न गंभीर तनाव के दौरान “निर्णायक कूटनीतिक पहल और नेतृत्व” दिखाया, जिससे क्षेत्रीय हालात बिगड़ने से बचे।

इस नामांकन की घोषणा ऐसे समय में हुई जब खुद डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि उन्हें अब तक कई बार नोबेल शांति पुरस्कार मिल जाना चाहिए था। उन्होंने यह दावा भी किया कि भारत-पाकिस्तान संकट के अलावा उन्होंने कांगो और रवांडा के बीच युद्धविराम संधि कराने में भी अहम भूमिका निभाई है, जिसकी घोषणा सोमवार को की जानी है।

ट्रंप ने कहा, “मुझे ये पुरस्कार कभी नहीं मिलेगा क्योंकि ये सिर्फ उदारवादियों को दिया जाता है। लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता, लोग सब कुछ जानते हैं, और वही मेरे लिए सबसे ज़रूरी है।”

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हालांकि, भारत ने पाकिस्तान के दावों को सिरे से खारिज कर दिया है और कहा है कि भारत-पाक तनाव को कम करने में ट्रंप की भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।

अमेरिका के पूर्व पेंटागन अधिकारी माइकल रुबिन ने ट्रंप की आलोचना करते हुए कहा, “डोनाल्ड ट्रंप ऐतिहासिक समझ से परे हैं। वे कई बार अपनी प्रतिष्ठा के लिए दूसरे देशों की सुरक्षा को भी खतरे में डाल देते हैं।”

इसके जवाब में ट्रंप ने कहा, “चाहे मैं भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध रोकूं, सर्बिया और कोसोवो के बीच शांति कायम करूं, या फिर मिस्र और इथियोपिया के बीच तनाव को शांत करूं — मुझे नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा। लेकिन मैं जानता हूं कि जनता सच्चाई समझती है।”

पाकिस्तान ने क्यों किया ट्रंप का समर्थन?

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि “क्षेत्रीय अस्थिरता के उस नाजुक दौर में राष्ट्रपति ट्रंप ने दूरदर्शिता और नेतृत्व का परिचय देते हुए इस्लामाबाद और नई दिल्ली दोनों से संवाद किया। इसका नतीजा यह हुआ कि एक बड़ा परमाणु संकट टल गया।”

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बयान में यह भी कहा गया कि ट्रंप की मध्यस्थता ने एक खतरनाक स्थिति को नियंत्रण में लाया, जिससे क्षेत्र और दुनिया भर में करोड़ों लोगों को संभावित तबाही से बचाया जा सका। पाकिस्तान ने साथ ही यह भी दोहराया कि “दक्षिण एशिया में स्थायी शांति तभी संभव है जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के जम्मू-कश्मीर संबंधी प्रस्तावों को पूरी तरह लागू किया जाए।”

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