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प्रकाश यादव : उम्र की ढलान पे पछताना न हो तो घुमक्कड़ी कीजिए

घुमक्कड़_जंक्शन पर आज मिलवाते हैं आपको प्रवासी छत्तीसगढिया घुमक्कड़ प्रकाश यादव से, वर्तमान में अडानी ग्रुप महाराष्ट्र में कार्यरत हैं एवं अपनी नौकरी के साथ घुमक्कड़ी को भी अंजाम दे रहे हैं, इन्होंने अपनी घुमक्कड़ी के दौरा कई ट्रेक किए हैं एवं उत्तर से दक्षिण तक लगभग भारत के साथ नेपाल भ्रमण भी कर चुके हैं। आईए उनसे ही सुनते हैं उनकी घुमक्कड़ी की कथा……

1-व्यक्ति के जीवन में जीवन में बचपन का अत्यधिक महत्व है, बचपन ही सारे जीवन की नींव है तो शुरुआत बचपन से करते हैं। आपका बचपन कहाँ और कैसे बीता तथा पढाई लिखाई कहाँ हुई?@बचपन का शहर याद आते ही मन में हलचल सी होने लगती है, वह शहर जहाँ मैं पला बढ़ा, जिंदगी का पाठ सिखा, शिक्षा भी वहीँ हुई. वह शहर ओडिशा राज्य का ब्रजराजनगर है, जहाँ से बिरला ग्रुप की नीव रखी गयी थी. बचपन क्या पैदाइश भी वहीँ हुई. वहीँ के माटी-पानी में पले बढे हैं. वैसे तो हम मूलतः छत्तीसगढ़ के हैं. पर रोजी-रोटी के चक्कर के हमारे दादाजी वहां बस गए थे तो हम ओडिशा-वासी हो गए और दो राज्य के संस्कृति के वाहक बन गए.
आपने क्या मजेदार सवाल किया है कि बचपन का समय कैसा था. जबाब तो आप ही ने दे दिया. देखिये बचपन को याद करते ही कैसी मुस्कराहट आपके भी चेहरे पे आ गयी. यही है बचपन और हमारा बचपन भी ऐसे ही बीता. पूरी मस्ती से बीता, हांलांकि माता पिता का discpline हमेशा कण्ट्रोल में रहा. रस्सी उतनी ही बाँधी गयी जितने में हमें सहूलियत हो. खेल के समय खेल पढाई के समय पढाई. बचपन से ही मेधावी रहे लगभग सभी क्षेत्र में तो उसका परिणाम भी मिला. शिक्षकों के चहेते हमेशा रहे. हाँ गर्मियों की छुट्टी में नाना- नानी के यहाँ जाना और मस्ती करना हमेशा याद रहेगा. पूरी शिक्षा वहीँ हुई बस कंप्यूटर इंजीनियरिंग तबके मध्यप्रदेश में हुई.

2-वर्तमान में जीविकोपार्जन के लिए आप क्या करते हैं तथा परिवार में कौन-कौन हैं?@वर्तमान में तो मैं आपके सामने बैठा इंटरव्यू दे रहा हूँ. वैसे पेशे से मैं एक कंप्यूटर इंजिनियर हूँ. और फिलहाल पिछले एक साल से अदानी ग्रुप महाराट्र में आईटी विभागाध्यक्ष के तौर पर अपनी सेवाएँ दे रहा हूँ. इसके पहले करीब १५ वर्षों तक जिंदल स्टील, रायगढ़ में अपनी अपनी सेवाएं दे चूका हूँ. उसके पहले पुणे में रहा.
परिवार में सभी हैं. माता-पिता, छोटे भाई-बहन, वामांगी और दो पुत्रियाँ. वैसे भी आजकल तो संयुक्त परिवार का चलन रहा नहीं. पर मैं अब भी अपने आप को संयुक्त परिवार का हिस्सा मानता हूँ. माता-पिता छोटे भाई के साथ ब्रजराजनगर में ही रहते हैं, और बहने अपने परिवार में, तो मैं भी अपने छोटे से परिवार के साथ अपने कार्यस्थल के निकट कॉलोनी में ही रहता हूँ. वैसे वामांगी भी कंप्यूटर स्नातक है पर गृहणी हैं, और दोनों पुत्रियों की पढाई अभी चल रही है.

3- घुमक्कड़ी से आपका लगाव कैसे हुआ?

@घूमने की रूचि तो वैसे भी बचपन से ही जाग्रत हो गयी. आपकी कब हुई, आपकी भी बचपन में ही हो गयी होगी. यह नैसर्गिक गुण है, बचपन के मेले-ठेले में घूमना और फिर किसी दुसरे गाँव-शहर के मेले की ओर जाना यह भी एक तरह का घूमना ही है, पर समय के साथ बदलता रहता है. पर अपनी बात कहूँ तो मेरी तो घूमने की इच्छा अपनी दादी को देखकर ही जाग गयी थी. दादी ही हमारे परिवार की बड़ी घुमक्कड़ थीं. भारत के लगभग सभी मेलों में घूम चुकी थी और वह भी अकेले तो कभी-कभी समूह लेकर. और उस ज़माने में अपने राशन-पानी, तम्बू के साथ. तो मेरी इच्छा उन्हें ही देखकर हुई और वह भी जगन्नाथ- पूरी से. वह हर साल रथयात्रा के दौरान वहाँ जाती थी तो हमें भी ले जाती थी.तो हम भी साथ जाते थे, यही आदत उनकी शिवरीनारायण की भी थी, तो इस तरह बचपन से ही यह कीड़ा काट लिया था. बस थोडा परवान चढ़ने में टाइम लगा, जब आत्मनिर्भर हो गए और सब सेट हो गया तो यह आगे बढ़ने लगा. साथ ही यह भी था शुरू से की आत्मनिर्भर होने के बाद अपने माता-पिता को समय रहते जितना हो सकेगा उतने जगह घुमाऊंगा, बचपन से ही देखा था उन्हें की वह अपने लिए समय निकाल ही नहीं पाते थे सारा समय हमें ही देते थे. और जब समय उन्हें मिला तो उम्र आड़े आ गयी. पर मुझे ख़ुशी है की समय रहते मैंने उनकी इच्छा के लगभग सारे स्थान घुमा दिया इनमे भारत के चारों धाम तो हैं ही, साथ ही उतराखंड के चार धाम भी. इन धामों को उनके साथ घूम आने के बाद जो संतुष्टि मिली, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.

4- वर्तमान में लोगों की रुचि एडवेंचर याने जोखिम भरी घुमक्कड़ी की तरफ़ बढती दिखाई दे रही है। जिसमें ट्रेकिंग एवं एडवेंचर गेम सम्मिलित हैं। आप किस तरह की घुमक्कड़ी पसंद करते हैं और इनमें क्या कठिनाईयाँ आती हैं?

@किस तरह की घुमक्कड़ी. लगभग सभी तरह की, वैसे अगर घुमने वाला किसी एक में अपने को बाँध ले फिर तो हो गया घुमक्कड़ी. वैसे अधिकतर प्राकृतिक स्थानों की सैर, वन्यजीव, रोमांचक भी पर रोमांचक यात्रा अधिकतर सीमित ही होती है, क्योंकि मैं अधिकतर परिवार के साथ ही घूमता हूँ. अभी तक तो कठिनाई कहीं आई नहीं और जो भी आयीं वह तो घुमक्कड़ी का हिस्सा है, इसलिए मैं उसे कठिनाइयाँ नहीं मानता. वैसे भी मैं जब किसी स्थान में घुमने जाता हूँ तो समझ लीजिये लगभग रम जाता हूँ. चाहे वह प्रसिद्द स्थल ही क्यों न हो, हर जगह अपने आप में कुछ न कुछ अनछुआ सा हर किसी के लिए रहता ही है. और मेरी कोशिश उस अनजाने/अनछुए पहलु को देखने की होती है. जैसे उत्तर से शुरू करें तो कश्मीर का गुलमर्ग, यहाँ अधिकतर आपको सैलानी मिलेंगे जो बर्फ के मैदान या गोंडोला ढूंढेंगे, पर मुझे वहाँ कश्मीर का बेहतरीन कश्मीरी पुलाव मिला और वह भी गोंडोला से ऊपर जाकर. वैसे ही डल में कश्मीरी साग, और अगर सुदूर नुब्रा वेली की बात करें तो वहाँ की आर्गेनिक चाय. थोडा इधर नीचे आयें तो कटरा में पहाड़ी लहसुन. कुछ इसी तरह उत्तराखंड में आयें तो उत्तरकाशी का त्रिशुल तो गुप्तकाशी की गंगा यमुना सरस्वती, दक्षिण में आयें तो तिरुपति के पास स्थित गणपति जी की पीठ. और उसके आगे का सोने का लक्ष्मी मंदिर. इसी तरह रामेश्वरम के अनछुए पहलु. लिस्ट लम्बी है. इस पर बात करें तो शायद यह इंटरव्यू कुछ अलग मोड़ पर चले जायेगा, इसलिए इसे किसी और दिन के लिए रख लीजिये. यह सारे अनछुए पहलु हैं जो आम पर्यटक की नजर से बचे रहते हैं. पर मेरी नजर इन्हें ही खोजती है, चाहे वह खानपान हो या फिर कोई पुरानी विरासत.

5- जब आप पहली बार कहीं घूमने गए तो कैसा अनुभव रहा?

@पहली बार का तो याद ही नहीं क्योंकि घूमना बचपन से ही रहा है. फिर भी एक यात्रा जिसमें मैंने ट्रक द्वारा ट्रक ड्राईवर के साथ यात्रा की थी. वह मजेदार और रोमांचक रही, वह यात्रा मैंने उत्तर ओडिशा से सुदूर दक्षिण ओड़िसा तक की थी कालेज के दिनों में. अनुभव तो मजेदार रहा, ट्रक ड्राईवरों की जिंदगी में झांकने का मौका मिला, कैसे एक ड्राईवर अनजान दूसरे ड्राईवर से तालमेल रखता है, यह जानने मिला. वह कितने चौकस रहते हैं यह देखने मिला. यात्रा में क्या क्या कठिनाइयाँ आती है और उन्हें कैसे हैंडल करना चाहिए इसका अनुभव हुआ. अगर इसपे बताने बैठूं तो लम्बी श्रृंखला हो जाएगी.

6- एक चीज का अनुभव मैंने किया कि घुमक्कड़ों से उनके परिजन परेशान रहते हैं कि न जाने कब घुमक्कड़ी जाग जाए और बैग उठाकर चल पड़े। आप परिवार एवं घुमक्कड़ी के बीच किस तरह समन्वय करते हैं?

@घुमक्कड़ी के दौरान परिवार और शौक के बीच सामंजस्य बैठने की बात आती ही नहीं क्योंकि मेरी यात्रा अधिकतर पारिवारिक ही रही है. फिर भी कभी जरुरत पड़ी तो तालमेल आसानी से बैठ जाता है, क्योंकि वामांगी काफी समझदार है इस मामले में. कई बार ऐसा होता है, कि हम दोनों का जगह को देखने का नजरिया थोडा अलग होता है तो उसी जगह को दोनों अपने-अपने नजरिये से घूम लेते हैं. जगह एक ही होती है, पर उसके दो पहलु हमारे सामने होते है. यही है हमारे बीच आपसी तालमेल.

7- घुमक्कड़ी से अलग आपकी और क्या रुचियाँ हैं?

@वैसे मेरी रुचियाँ कई हैं, जैसे कंप्यूटर प्रोग्रामिंग जो कि घुमक्कड़ी का हिस्सा है ही नहीं, नई चीजों के बारे में जानने सिखने में रूचि, इनसे इतर घुमक्कड़ी से सम्बंधित मुझे फोटोग्राफी, वन्यजीव, ट्रैकिंग का शौक है. फोटोग्राफी की बात करें तो जितने भी जगह गए काफी उम्दा तस्वीरें मिली,
भारत के अधिकतर अभयारण में दस्तक दे चूका हूँ. यह काफी धैर्य वाला और खर्चीला शौक है जो समय भी मांगता है. पर प्रकृति के नजदीक जाकर वन्य जीव को देखना उनसे बातें करने का इससे इतर और कोई दूसरा साधन नहीं. अपने इसी शौक की वजह से ही मैं “बाघ बचाओ परियोजना”से जुडा हुआ भी हूँ. मेरे द्वारा कान्हा में लिए गए मुन्ना की तस्वीर भारत में लिए गए सर्वश्रेष्ठ १० फोटो में से एक आई थी.
ट्रेकिंग की बात करें तो पैदल चलने में मुझे मजा आता है, बस मेरे जुते मेरे साथ रहें. घूमते समय अधिकतर जगह यही अपने ११ नंबर की गाडी से नापने का प्रयास रहता है.वैसे एक मजेदार ट्रैकिंग जान्स्कर क्षेत्र की की है, जहाँ जाने पर पता चला कि सुदूर प्राकृतिक क्षेत्र और प्राकृतिक सुन्दरता क्या होती है यह वहीँ अनुभव किया. जहाँ तक ब्लॉग लेखन की बात है, जब इतने सारे ब्लॉगर लिख रहे हैं, तो पाठक भी तो होने चाहिए न, हाहाहाहा . कभी सोचा था ब्लॉग के बारे में पर बात आई गयी हो गयी तो पाठक बनना ही उचित लगा. वैसे अलग से कुछ नहीं पर मैं जेट एयरवेज के लिए और ट्रिप एडवाइजर(UK) के लिए लिखता हूँ. पर अभी यह भी बंद है.

8- क्या आप मानते हैं कि घुमक्कड़ी जीवन के अत्यावश्यक है?

@यह प्रश्न तो आपने बिलकुल दार्शनिक सा पूछ लिया. हम इतने बड़े घुमक्कड़ तो नहीं कि इस तरह का सवालों पे जबाब दे पायें. एक बात बताइए हमारे शरीर में जो खून दौड़ता है वह एक जगह स्थिर हो जाए तो? पृथ्वी अपनी धुरी पे घुमने के बजाये एक ही जगह स्थिर हो जाए तो? आप अनुमान लगाईये क्या होगा. बस यही जिंदगी में आवश्यक है घुमक्कड़ी के लिए. चाहे वह देशाटन हो चाहे पर्यटन या तीर्थाटन. चलते रहिये रोजमर्रा की जिंदगी से अलग कुछ नया कीजिये, किसी नई जगह पर जाइए, आपको महसूस होगा की आपमें कितनी उर्जा है. स्थिर उर्जा किसी काम की नहीं. घुमेंगें तो नई उर्जा मिलेगी, जो आपके जीवन को नई दिशा देगी. घुमेंगें तो अपने-आप के साथ-साथ देश को समझेंगें. जीवन में परिपक्वता आएगी. वरना यह तो तय है की उम्र के ढलान पे पछतावा होगा.कहते हैं न कि जीवन चलने का नाम. आप निकलिए घूमिये आपका जीवन भी उसी तरह चलता रहेगा.

9- आपकी सबसे रोमांचक यात्र कौन सी थी और उस यात्रा से क्या सीखने मिला?

@सबसे रोमांचक यात्रा, मेरी लगभग हर यात्रा रोमांचक सी ही रही. हमेशा परिवार के साथ नई-नई जगहों पर गया. कभी सार्वजनिक साधन से तो कभी अपने ही साधन से. फिर भी दो यात्रा को मैं सबसे रोमांचक यात्रा मानता हूँ. पहला लदाख यात्रा के दौरान खार्दुंग पास को रात ११ बजे अँधेरे में पार करना जहाँ सड़क और खाई का पता न हो और आगे पीछे कोई गाडी नहीं, ऊपर से बारिश. ऐसी जगह पर परिवार के साथ इसे पार करना कोई कम खतरनाक और रोमांचक नहीं, पर हमारे ड्राईवर जिलाल भाई के हौसले को सलाम जिन्होंने इसे पार करने हमें हौसला दिया यह कहकर कि उसने यह पास इतनी बार पार की है कि अगर आँख पर पट्टी भी बाँध दें तो वह गाडी निकाल लेगा. दूसरी यात्रा कुछ इसी तरह की कान्हा वन्यजीव अभ्यारण्य की ओर की थी जब हम रास्ता भटक गए थे और एक लाल तीर की निशान को देख-देख कर आगे बढ़ रहे थे. बाद में जब पता चला की वह निशाँ किस लिए बनाया गया था, तो हमारी तो जान सुख गयी. हमारी वह यात्रा जो एक घंटे में पूरी होनी थी वह ४ घंटे ले गयी.
अभी तक की यात्राओं के बारे में लिखूं तो भारत के लगभग सभी राज्यों के मुख्य-मुख्य स्थलों को घूम चुके हैं, वहां के रहन-सहन को देख चुके हैं, वहां की स्वादिस्ट व्यंजनों को चख चुके है, बस बचा हैं तो लक्षद्वीप, अंडमान, पूर्वी भारत, और केरल.

10- वर्तमान में हम देख रहे हैं कि लोगों का रुझान घुमक्कड़ी की तरफ़ बढा है, ऐसे नए घुमक्कड़ों को आप क्या संदेश देना चाहते हैं।?

@नए घुमक्कड़ों के लिए सन्देश तो यही है कि घुमने निकले हो तो घूमोगे कहाँ? इस धरती पर न. पर कब-तक जब-तक धरती है तभी तक न, उसके बाद? तो सिर्फ घूमो मत, इस धरती को बचाने संरक्षण करने का भी प्रयास करो. यह कई तरह से हो सकता है. आप कोई भी एक माध्यम चुन लो और अपनी आदत में डाल लो कि जहाँ भी जाओगे अपने लेवल पे प्रयास करोगे, यह मत सोचो की कोई और करेगा या इतने से क्या होगा. आप अपने हिस्से का प्रयास आप तो कर ही दो. पर हाँ इन सबसे ऊपर पहले आत्मनिर्भर बनो और अपनी जिम्मेदारी समझो.

18 thoughts on “प्रकाश यादव : उम्र की ढलान पे पछताना न हो तो घुमक्कड़ी कीजिए

  • July 19, 2017 at 21:02
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    Bahut hi khubsurat shbdon me apka skakshtkar padhkar bahut acha lga..kai baaten apke bate me janne ko mili. bahut bahut bdhai…?

  • July 19, 2017 at 23:45
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    प्रकाश यादव जी के जीवन और घुमक्कड़ी को जानकार बहुत अच्छा लगा ! सार्थक और सुन्दर प्रयास के लिए अनंत बधाई और शुभकामनाएं गुरुदेव ललित शर्मा जी !!

  • July 20, 2017 at 00:05
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    प्रकाश जी को नमस्कार । बहुत अच्छा लगा पढकर आप के बारे में।आपकी यह घुमक्कडी ऐसी ही चलती रहे।

  • July 20, 2017 at 01:55
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    Prakash Yadav sir ko main 10 saal se jaanta hun magar unke saath ki hui sabhi chhoti-badi yatraon ke baad unko nazdik se jaanane ka mauka mila. Unke saath ki hui Chitrakote Falls ki yatra mujhe sada yaad rahegi. Thanks to Lalit Sharma Ji also for sharing this post to us.

  • July 20, 2017 at 03:27
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    प्रकाश जी आपके बारे में विस्तार से जानकार अच्छा लगा .गुरुदेव ललित शर्मा जी धन्यवाद .

  • July 20, 2017 at 05:23
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    प्रकाश जी इतने बरसों से आपको जानते हुए भी आज बहुत कुछ नया जाना आपके बारे में और जान कर लगा कि और बहुत कुछ जानना बाकी रह गया. सबसे पहले तो यही बताइए कि वो लाल निशाँ बनाया किसके लिए था ? जिसके बारे में जानकार आपके प्राण सूख गए.

    आभार ललित जी का जिनके माध्यम और प्रयासों से काफी कुछ नया जाना इस नए प्लेटफार्म पर

  • July 20, 2017 at 05:46
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    प्रकाश जी के इस शानदार साक्षात्कार के द्वारा ललित जी ने जो उनके घुमक्कड़ी व्यक्तित्व पर प्रकश डाला है उसके लिए आपको शुक्रिया !!
    मैं भी धन्य हो गया की ऐसे नेकदिल और टेक्नोगुरु के साथ चलकदमी करने का अवसर मिला बहुत सी बात उस दिन छूट गयी थी आज जानने को मिली .. पढ़कर मज़ा आगया बाकी कौशिक जी कीतरह मेरा भी वही सवाल है .. की वो लाल निशान ????

  • July 20, 2017 at 06:07
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    प्रकाश जी, आपके मुरीद तो पहले से ही थे, अब ये साक्षात्कार पढ़कर मुरीदी और बढ़ गयी । काफी कुछ आपके बारे में नया जानने मिला । आपकी घुमक्कड़ी और विचार को नमन ! आदरणीय ललित जी को साधुवाद जो इन अनछुए पहलुओं को हम तक पहुचाया ।

  • July 20, 2017 at 07:47
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    प्रकाश यादव सर को को मैं दस साल से जानता हूँ मगर उनके साथ की हुई सभी छोटी-बड़ी यात्राओं के बाद उनको नज़दीक से जानने का मौका मिला. उनके साथ की हुई चित्रकोट फाल्स,बस्तर की यात्रा मुझे सदा याद रहेगी. ललित शर्मा जी को भी धन्यवाद।

  • July 20, 2017 at 10:51
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    प्रकाश जी, आपका साक्षात्कार पढ़कर और जीवन के बारे में जानकर बहुत कुछ सीखने को मिला । जबाब देने का आपका अंदाज मन को भा गया, हम तो शायद इस तरह से जबाब भी न दे सके । बहुत अच्छा लगा पढ़कर .. अभी तो आपका जानना बाकी है वैसे आपकी फोटोग्राफी और टेक्नोलोजी के तो हम क्या सभी कायल है ।

    साक्षत्कार के जरिया बने श्री ललित जी को दिल❤ से धन्यवाद ।

  • July 20, 2017 at 14:20
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    गज़ब प्रतिभा के धनी है प्रकाश जी आप ओर आपके विचार मुझसे मेल खाते है क्योंकि जो बातें आपने कहीं है वो मैं सिर्फ सोचा करती थी कभी किसी से कहा नही क्योकि मेरा भी यही सोचना है कि घूमने से मतलब किसी दूर दराज जगह जाना ,ठहरना नही बल्कि मेले में घूमना ,या नानी के घर छुट्टी मनाना भी घूमने की श्रेणी में आता है। आज भी मन होता है घूमने का तो तैयार हो लोकल में बैठ चर्चगेट तक चली जाती हूँ और अपने आपको खाली ओर खुश पाती हूँ।बहुत सुंदर शब्दों की रचना से आपका परिचय मिला । प्रधम मिलन तो हमारा ओरछा में वैसे भी जोरदार था।

  • July 21, 2017 at 09:21
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    हर यात्रा कुछ न कुछ नया अनुभव दे जाती है, और व्यक्ति को और अधिक परिपक्व बनाती है। @Your travel experience is inspiring and motivate us . Thank you for sharing with us .??

  • July 25, 2017 at 11:09
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    बहुत दिनों बाद आज आपका साक्षात्कार पढ़ने का मौका मिला, आपके बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा !

  • July 26, 2017 at 08:40
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    सबसे अच्छा लगा शीर्षक ‘जिंदगी के ढलान पर पछताना ना हो तो घुमक्कड़ी कीजिये’.

  • August 3, 2017 at 05:19
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    प्रियवर प्रकाश जी,

    जैसे रोचक आप, वैसा ही रोचक आपका साक्षात्कार ! ललित जी ने आपसे ज्यादा मजेदार सवाल पूछे तो उत्तर तो बढ़िया होने ही थे ! – ये बेइमानी नहीं चलेगी, नहीं चलेगी ! 😉 😀

    आपकी फोटोग्राफी का मुरीद हो चुका हूं ओरछा दर्शन के दौरान ! अब आपकी प्रोग्रामिंग स्किल्स का मुरीद होना शेष है। परिवार में सबको यथायोग्य अभिवादन सहित,

    सस्नेह,
    सुशान्त सिंहल

  • August 3, 2017 at 05:24
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    अब कम से कम लाल निशान के बारे में बता तो दीजिये कि वह कहां ले जा रहा था जो आपके प्राण सूख गये ! आपने तो सबको काम से लगा दिया कि बेटा – सोचते रहो लाल निशान के बारे में !

    ललित जी, आपको तो पता ही होगा, प्रकाश जी न बताएं तो आप ही रहस्योद्‌घाटन कर दीजिये।

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