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तिरुपति देवस्थानम के AEO राजशेखर बाबू संडे को जाते थे चर्च : बोर्ड ने किया निलम्बित

तिरुपति । तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) ने अपने मार्केटिंग विभाग के नीलामी‑प्रभाग में कार्यरत सहायक कार्यकारी अधिकारी ए. राजशेखर बाबू को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। आरोप है कि उन्होंने नियुक्ति के समय ली गई “हिंदू धर्म का पालन” शपथ का उल्लंघन करते हुए हर रविवार अपने गृहनगर पुत्तूर के एक चर्च में प्रार्थना करना जारी रखा। आंतरिक सतर्कता (विजिलेंस) जांच में यह तथ्य पुष्ट होने के बाद मंगलवार को निलंबन आदेश जारी किए गए।

TTD के आधिकारिक बयान में कहा गया है कि बाबू का आचरण “संस्थान के सेवा‑नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है और एक हिंदू धार्मिक निकाय के प्रतिनिधि‑कर्मी के रूप में घोर गैर‑जिम्मेदाराना माना गया।”

बाबू का पक्ष
भारतीय एक्सप्रेस को दिए संक्षिप्त वक्तव्य में बाबू ने कहा, “मैं किस विश्वास का पालन करता हूँ, इससे फर्क नहीं पड़ता” और उन्होंने यह भी जोड़ा कि वे आगे कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं।

TTD का ‘केवल हिंदू‑कर्मचारी’ संहिता और पिछला बोर्ड‑संकल्प

TTD कर्मचारियों को तिरुमला क्षेत्र में नियुक्ति से पहले लिखित घोषणा करनी होती है कि वे केवल सनातन धर्म का पालन करेंगे। इसी अनुबंधात्मक शपथ के आधार पर कार्रवाई की जाती है। संगठन के भीतर गैर‑हिंदू कर्मियों की उपस्थिति वर्षों से विवाद का विषय रही है।

  • 18 नवंबर 2024 को बोर्ड अध्यक्ष बी. आर. नायडू की अगुआई में पारित प्रस्ताव में तय किया गया था कि सभी गैर‑हिंदू कर्मचारियों को विशेष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति पैकेज (VRS) देकर संस्था से बाहर किया जाएगा या राज्य सरकार के अन्य विभागों में समायोजित किया जाएगा।

  • फरवरी 2025 में भी 18 गैर‑हिंदू कर्मचारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा चुकी है।

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बाबू का निलंबन इसी व्यापक नीति के तहत पहला उच्च‑पदस्थ उदाहरण माना जा रहा है, जिससे संकेत मिलता है कि बोर्ड गैर‑हिंदू कर्मियों के मुद्दे पर अपनी “जीरो टॉलरेंस” रणनीति को सख्ती से लागू कर रहा है।

TTD की अनुशासन समिति विस्तृत दंडात्मक जाँच कर रही है; दोष सिद्ध होने पर बाबू को सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है या वैकल्पिक रूप से पिछले बोर्ड‑संकल्प के अनुरूप उन्हें VRS का विकल्प मिलेगा। meanwhile, TTD ने अपने सभी कर्मचारियों को शपथ‐नियमों की दोबारा याद दिलाते हुए परिपत्र जारी किया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रकरण केवल व्यक्तिगत अनुशासन नहीं, बल्कि धार्मिक न्यासों में कर्मचारियों के धर्म‐आचरण और धर्मनिरपेक्ष श्रम कानूनों के टकराव को भी रेखांकित करता है। आगामी हफ्तों में यह मामला अदालती समीक्षा तक पहुँच सकता है, जिस पर देश‑भर की नज़र रहेगी।