नुआखाई और ऋषि पंचमी का सांस्कृतिक महत्व
छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति में नई फ़सल आने पर नवाखाई का त्योहार मनाया जाता है। जब भी कोई नई फ़सल आती है उसे देवताओं को अर्पित करना लोक संस्कृति में अत्यधिक आवश्यक माना जाता है। बस्तर में भी यह त्योहार मनाया जाता है, इसे पंडुम कहते हैं। अलग अलग अवसर पर मनाये जाने वाले पंडुम के नाम अलग अलग है। यह पंडुम नई फ़सल मनुष्य द्वारा उपभोग से पहले देवताओं को अर्पित की जाती है। विना देवताओं को अर्पित किये वे फ़सल का उपभोग नही करते।
क्या है नुआ खाई त्योहार
वैसे नुआखाई ओडिशा राज्य का एक प्रमुख कृषि पर्व है, जिसे खासकर पश्चिमी ओडिशा में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से किसानों द्वारा नई फसल के स्वागत के रूप में मनाया जाता है, और इसका अर्थ होता है “नुआ” (नई) और “खाई” (खाना), यानी “नई फसल का भोजन”।
नुआखाई का पर्व कृषि आधारित समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह त्यौहार नई फसल की कटाई के बाद मनाया जाता है, जब किसान अपनी उपज को सबसे पहले भगवान को अर्पित करते हैं और फिर परिवार के साथ उसे ग्रहण करते हैं। इस दिन को नई फसल, विशेष रूप से धान की फसल की कटाई और उसका उत्सव मानकर मनाया जाता है।
बस्तर में मनाया जाता है कोड़ता पंडुम
मानसून के बाद नए फसल और जंगल से प्राप्त कंद- मूल का सेवन करने से पहले नवाखाई तिहार या कोड़ता- कुरमी पंडुम मनाया जाता है। समाज के मुताबिक कोड़ता पंडुम में नया धान और ककड़ी, नए कंद -मूल का भोग करने के लिए उपयोग किया जाता है जबकि कुरमी पंडुम में कोसरा- कोदो चावल और भेंडा भाजी (खट्टा भाजी) और जोंदरा (मक्का) का उपयोग करने से पहले देव को अर्पित किया जाता है। इसे ही उड़ीसा और सीमांत छत्तीसगढ़ में नुआ खाई कहते हैं तथा यह पर्व भादो की शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है, जिसे ॠषि पंचमी भी कहते हैं।
नुआखाई कैसे मनाया जाता है?
नुआखाई पर्व पारंपरिक रीति-रिवाजों और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है। इस पर्व के मुख्य आयोजन और प्रक्रिया में सबसे पहले किसान अपने खेतों से ताजे धान, फल, और अन्य फसलें काटकर लाते हैं। इन्हें भगवान को अर्पित करने के लिए घर के पूजा स्थान में रखा जाता है। किसान भगवान जगन्नाथ, लक्ष्मी, और अन्य देवताओं को नई फसल समर्पित करते हैं।
निर्धारित शुभ समय पर (जिसे “लगर” कहा जाता है), नई फसल से बनी भोजन सामग्री भगवान को अर्पित की जाती है। इसके बाद, परिवार के सभी सदस्य साथ मिलकर भोजन करते हैं। इसे ‘नुआखाई भोग’ कहा जाता है। इस दिन लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ मिलते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। नुआखाई पर्व सामाजिक एकता और समर्पण का प्रतीक है। पुराने विवादों को भुलाकर नए सिरे से रिश्ते बनाए जाते हैं।
सांस्कृतिक आयोजन:एवं विशेष भोजन
इस पर्व के अवसर पर पारंपरिक नृत्य, गीत, और संगीत का आयोजन किया जाता है। पश्चिमी ओडिशा का प्रसिद्ध नृत्य “संबलपुरी” विशेष रूप से इस दिन प्रस्तुत किया जाता है। लोग पारंपरिक वेशभूषा पहनते हैं और त्यौहार का आनंद लेते हैं। नुआखाई के दिन खासतौर पर पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं। इसमें नई धान से बने पकवान जैसे “अरिसा पिठा”, “चाकुली पिठा” आदि शामिल होते हैं। इस दिन का भोजन प्रकृति की उपज के प्रति आभार प्रकट करने का एक तरीका है।
नुआखाई का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
नुआखाई केवल एक कृषि उत्सव नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह पर्व किसानों के लिए नई फसल की खुशियों को बांटने और भगवान के प्रति आभार प्रकट करने का एक अवसर होता है। इसके साथ ही यह त्योहार ओडिशा के समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और लोक कलाओं को भी प्रदर्शित करता है। नुआखाई ओडिशा एवं सीमांत छत्तीसगढ़ का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और लोकप्रिय पर्व है, जो किसानों के जीवन और उनकी कड़ी मेहनत का सम्मान करता है। यह त्यौहार नई फसल का स्वागत करने और कृषि के महत्व को समझने के लिए मनाया जाता है।
ॠषि पंचमी क्या है और क्यो मनाई जाती है।
इस दिन पौराणिक पर्व ॠषि पंचमी भी मनाया जाता है। ऋषि पंचमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत और पर्व है, जिसे मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। इसे गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद, भाद्रपद शुक्ल पंचमी तिथि को मनाया जाता है। ऋषि पंचमी व्रत का उद्देश्य सात महर्षियों (सप्तऋषियों) को सम्मान देना और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करना है। यह पर्व मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा उनके अनजानें हुए पापों का प्रायश्चित करने और अपने जीवन को शुद्ध करने के लिए किया जाता है।
इस दिन महिलाएं व्रत रखकर सप्तऋषियों का पूजन करती हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि किसी महिला से रजस्वला (मासिक धर्म) के समय में किसी भी प्रकार की धार्मिक गतिविधियों या घर के कार्यों में अज्ञानतावश कोई त्रुटि हो गई हो, तो ऋषि पंचमी के दिन व्रत करके और पूजन करके उस पाप का प्रायश्चित किया जा सकता है।
सप्तऋषियों की पूजा: इस दिन व्रती महिलाएं कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ इन सात ऋषियों की पूजा करती हैं। ये ऋषि हिंदू धर्म में ज्ञान, धर्म और सत्य के प्रतीक माने जाते हैं। ऋषि पंचमी का व्रत भी प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और पर्यावरण के प्रति जागरूकता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन महिलाएं पवित्र जल से स्नान करती हैं, भूमि को प्रणाम करती हैं और शुद्ध आहार ग्रहण करती हैं, जिससे शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है।
शास्त्रों में ऋषि पंचमी का व्रत करने का महत्त्व वर्णित है। इस दिन स्त्रियां अपने शरीर और आत्मा को शुद्ध करने के लिए व्रत रखती हैं और सप्तऋषियों की पूजा करती हैं। स्कंद पुराण, पद्म पुराण, और अन्य धर्मशास्त्रों में इस व्रत का उल्लेख है। इसे करने से महिलाएं जीवन में प्राप्त अशुद्धियों से मुक्त होती हैं और उन्हें शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त होती है।
स्कंद पुराण में ऋषि पंचमी का वर्णन इस प्रकार आया है –
“रजस्वला नियमात्यागा याच्च पूजाविलङ्घनम्।
ऋषीणां तद्विनाशाय ऋषिपञ्चमिका व्रतम्॥”
अर्थ: “रजस्वला स्त्री यदि मासिक धर्म के नियमों का त्याग कर दे या पूजा के नियमों का उल्लंघन कर दे, तो उस पाप को नष्ट करने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत है।”
पद्म पुराण में ऋषि पंचमी व्रत का उल्लेख आता है, जिसमें यह व्रत महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान हुई अशुद्धियों का प्रायश्चित करने और शुद्धि प्राप्त करने का मार्ग बताया गया है।
“राजस्वला द्विजाः स्त्रीणां दूष्यन्ते नात्र संशयः।
ऋषिपञ्चम्यां पूता हि सप्तानां पापनाशिनी॥” पद्म पुराण, सृष्टि खंड, अध्याय 57:
अर्थ: “रजस्वला स्त्री चाहे अनजाने में ही क्यों न हो, यदि किसी भी प्रकार का पाप कर बैठती है, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि ऋषि पंचमी के दिन व्रत करने से वह सप्तऋषियों की पूजा द्वारा उन पापों से मुक्त हो जाती है और पवित्र होती है।”
ऋषि पंचमी का व्रत न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका संबंध पर्यावरणीय शुद्धि और स्वास्थ्य से भी है। इस दिन महिलाएं प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करती हैं और पवित्र जल में स्नान करती हैं, जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में मदद मिलती है। यह पर्व शुद्ध जीवनशैली और प्राकृतिक संसाधनों के सम्मान का प्रतीक है।
ऋषि पंचमी व्रत महिलाओं के जीवन में शुद्धि, प्रायश्चित, और आंतरिक शांति का पर्व है। यह एक अवसर है, जब महिलाएं अपनी धार्मिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करती हैं और अपने जीवन को पवित्र और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर बनाने का प्रयास करती हैं।
ॠषि पंचमी को मनाया जाने वाला त्योहार नुआखाई ओडिशा और छत्तीसगढ़ की समृद्ध कृषि संस्कृति का महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व नई फसल के स्वागत के साथ-साथ भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक माध्यम है। नुआखाई का उत्सव ग्रामीण समाज के बीच सामाजिक एकता और संस्कृति का प्रतीक है। इसके साथ ऋषि पंचमी महिलाओं के लिए आत्मशुद्धि और प्रायश्चित का पर्व है। सप्तऋषियों की पूजा के माध्यम से यह पर्व नारी शक्ति के आध्यात्मिक और सामाजिक उत्थान का प्रतीक है।