सप्तद्वीपों के माध्यम से विश्व-संस्कृति का सनातन चित्रण : भरतमुनि का नाट्यशास्त्र

‘नाट्यशास्त्र’ केवल रंगमंच, अभिनय या नाट्य-कला का ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह सनातन ज्ञान/धर्म/संस्कृति/ग्रंथ परम्परा का वैश्विक पक्ष, भौगोलिक पक्ष, ऐतिहासिक पक्ष, सांस्कृतिक पक्ष आदि भी प्रस्तुत करता है। नाट्यशास्त्र भारतीय सभ्यता, संस्कृति, समाज और दर्शन का सांस्कृतिक आलेख भी सुचारू रूप से उल्लेखित करता है। इसकी रचना भरतमुनि द्वारा की गई, जिसमें मानव जीवन के विविध आयामों का समावेश हुआ है। इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष यूनेस्को ने नाट्यशास्त्र और गीता को विश्व धरोहर में शामिल किया । अतः संपूर्ण विश्व का अध्ययन और विश्लेषण नाट्यशास्त्र के दृष्टिकोण से करते हुए सम्पूर्ण विश्व और प्राणी जगत में विश्व बंधुत्व का भाव जागृत करते हुए एक सकारात्मक, संवेदनशील उत्तम विश्व समाज और विश्व परिवार को स्थापित किया जा सकता है।
नाट्यशास्त्र में भरतमुनि सप्तद्वीपमयी पृथ्वी का उल्लेख करते हुए प्रत्येक द्वीप की विशिष्टताओं के आधार पर वहां के नृत्य, आचार, वेशभूषा, समाज और भाषा-शैली का वर्णन करते हैं।
सप्तद्वीपानुकरणं नाट्यमेतद् भविष्यति।(नाट्यशास्त्र, प्रथम अध्याय, 49)
सप्तद्वीपा पृथ्वी की भौगोलिक संरचना
पुराणों, विशेषतः विष्णु पुराण, भागवत पुराण, मार्कण्डेय पुराण आदि में “सप्तद्वीपा वसुंधरा” की बात भी की गई है, जिसे भरतमुनि ने भी अपने नाट्यशास्त्र में सुचारू रूप से उल्लेख किया है।
ये सात द्वीप निम्नलिखित हैं:
क्रम द्वीप का नाम समुद्र से घिरा भौगोलिक संकेत :
1. जम्बूद्वीप: खारे जल का समुद्र– भारतीय उपमहाद्वीप
2. प्लक्षद्वीप: इक्षुरस समुद्र– मध्य एशिया या यूरोप
3. शाल्मलिद्वीप: सुरा समुद्र– अफ्रीका
4. कुशद्वीप: घृत समुद्र– दक्षिण-पूर्व एशिया
5. कौंचद्वीप: दूध समुद्र– चीन, जापान, कोरियाई क्षेत्र
6. शाकद्वीप: दधि समुद्र– मध्य व उत्तर एशिया
7. पुष्करद्वीप: जल (मीठे जल) समुद्र– ध्रुवप्रदेश (अंटार्कटिक-आर्कटिक क्षेत्र)
सांस्कृतिक दृष्टिकोण से सप्तद्वीपों की पहचान
भरतमुनि ने प्रत्येक द्वीप के लोगों के भाषा, स्वभाव, नृत्यशैली, वेशभूषा, और आचार-विचार के आधार पर देशी नृत्य की भिन्न विधाओं का विकास बताया।
1. जम्बूद्वीप:
सबसे विकसित सनातन नाट्य परंपरा वाला क्षेत्र
भरत, मगध, वांग, पंचाल, और द्रविड़ क्षेत्रों की नाट्यशैली
नृत्य में गति, लय, भाव और मुद्रा की संतुलित उपस्थिति
2. प्लक्षद्वीप:
धीमे लय में चलने वाले नाट्य
अधिक भक्ति भावनात्मकता
भाषा में स्पष्टता की अपेक्षा लयात्मकता
3. शाल्मलिद्वीप:
संगीत प्रधान नाट्य
स्थूल और उग्र नाट्य भाव
देह-प्रदर्शन और शारीरिक सौंदर्य की प्रधानता
4. कुशद्वीप:
कर्मकांड और अनुष्ठान आधारित नाट्य
ब्रह्मोपासना और श्रुति-स्मृति पर आधारित संवाद
मंद गति और गम्भीर स्वर
5. कौंचद्वीप:
तकनीकी कौशल, यंत्र व उपकरण आधारित नाट्य प्रयोग
मुखावरण (Mask) और कठपुतली जैसी शैली
संवाद कम, संकेत अधिक
6. शाकद्वीप:
औषध, आयुर्वेद, तंत्र पर आधारित प्रदर्शन
देहातीत (transcendental) भावनाएँ
रहस्यमयी संवाद और प्रतीकों का प्रयोग
7. पुष्करद्वीप:
ध्यान, समाधि और योग आधारित नाट्य
मौनाभिनय और दृष्टि-भंगिमा प्रमुख:
संवाद रहित, गूढ़ प्रतीकात्मकता
ऐतिहासिक एवं सामाजिक विश्लेषण
भरतमुनि की सप्तद्वीप अवधारणा एक सनातन वैश्विक सांस्कृतिक भूगोल (Cultural Geography) प्रस्तुत करती है। यह केवल भौगोलिक सीमाएं नहीं हैं, बल्कि मानव सभ्यता के विभिन्न सनातन वैश्विक सामाजिक और सांस्कृतिक स्तरों का संकेत करती हैं:
सभ्यता की विविधता: हर द्वीप एक सनातन वैश्विक सांस्कृतिक इकाई है।
भाषाई वैविध्य: भरतमुनि हर द्वीप की अपनी भाषिक लय की चर्चा करते हैं।
धार्मिक परंपराएँ: यज्ञ, तंत्र, योग, भक्ति, नृत्य – सभी रूप इनमें समाहित हैं।
समाज का वर्गीकरण: वैश्विक समाज की प्रकृति स्थूल, सूक्ष्म, उग्र, शांत, तामसिक, सात्त्विक आदि गुणों से जुड़ी मानी जाती है।
भरतमुनि का पृथ्वी को सात द्वीपों में बाँटना केवल पौराणिक कल्पना नहीं है, बल्कि एक वैश्विक सनातन नाट्यवैज्ञानिक और मानवशास्त्रीय (Anthropological) प्रयोग है:
पृथ्वी की विविध संस्कृतियाँ कैसे भिन्न-भिन्न नाट्यशैली को जन्म देती हैं।
‘लोकधर्मी’ और ‘नाट्यधर्मी’ के संतुलन द्वारा कैसे वैश्विक समाज को कला से जोड़ा जा सकता है।
एक ‘सांस्कृतिक समष्टि (Cultural Unity in Diversity)’ की स्थापना होती है।
नाट्यशास्त्र का सप्तद्वीप वर्णन हमें केवल प्राचीन भूगोल नहीं देता, बल्कि यह दर्शाता है कि किस प्रकार भारत की नाट्य परंपरा ने समस्त पृथ्वी के वैश्विक समाजों को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। यह एक विश्व-परिप्रेक्ष्य में भारतीय नाट्य-दर्शन का सनातन वैश्विक दर्शन है।