तीर्थ श्रेष्ठ नर्मदा का आध्यात्मिक एवं पौराणिक महत्व : नर्मदा जयंती विशेष
नर्मदा जयंती, जिसे नर्मदा जन्म दिवस के रूप में भी जाना जाता है, नर्मदा नदी के जन्मोत्सव के रूप में हर वर्ष माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। नर्मदा नदी, जिसे रेवा भी कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप की प्रमुख और पवित्र नदियों में से एक है। इसका उद्गम स्थल मध्य प्रदेश के अमरकंटक पर्वत श्रृंखला में स्थित है, जो विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वतमालाओं के संगम पर स्थित है। नर्मदा जयंती पर श्रद्धालु विशेष पूजा-अर्चना, व्रत और नर्मदा परिक्रमा करते हैं, यह विश्व की एकमात्र नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है तथा शास्त कहते हैं जिसके दर्शन मात्र से कल्याण की प्राप्ति होती है ताकि वे अपने जीवन को पुण्य और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर सकें।
पौराणिक आख्यानों में नर्मदा
नर्मदा नदी का उल्लेख अनेक पौराणिक ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। ‘नर्मदा’ का अर्थ है ‘आनंद दात्री’। ऐसा माना जाता है कि नर्मदा माता भगवान शिव के आशीर्वाद स्वरूप पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। स्कंद पुराण, वामन पुराण, और शिव पुराण में नर्मदा नदी की महिमा का विशेष वर्णन मिलता है।
एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव के पसीने की बूंदों से नर्मदा नदी का जन्म हुआ था। यह कथा दर्शाती है कि नर्मदा माता को स्वयं महादेव के शरीर का अंश माना जाता है। इसलिए नर्मदा नदी को ‘शिव पुत्री’ भी कहा जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब भगवान शंकर ने अपनी जटाओं से गंगा नदी को मुक्त किया, तो नर्मदा माता उनके ह्रदय से उत्पन्न हुईं। यही कारण है कि नर्मदा नदी को गंगा से भी अधिक पवित्र माना जाता है क्योंकि इसे स्वयं भगवान शिव की कृपा प्राप्त है। ऐसा भी कहा जाता है कि नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से ही पापों का नाश हो जाता है, जबकि गंगा स्नान करने से पवित्रता प्राप्त होती है।
1. स्कंद पुराण में नर्मदा महिमा
नर्मदा सर्वतीर्थेषु सदसि स्थापनं कृतम्।
सा गङ्गा या यमुना सा च सर्वपापप्रणाशिनी॥ स्कंदपुराण रेवाखण्ड
अर्थ:नर्मदा को सभी तीर्थों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। यह गंगा और यमुना के समान ही पवित्र और समस्त पापों का नाश करने वाली है।
2. शिव पुराण में नर्मदा की उत्पत्ति
पार्वत्याः सन्निधौ देवो गङ्गां स्रष्टुं प्रचक्रमे।
नर्मदा तु समुत्पन्ना शिवस्यास्रवतो बले॥ शिवपुराण
अर्थ: भगवान शिव जब देवी पार्वती के साथ थे, तब उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने का संकल्प किया। उसी समय, भगवान शिव के परिश्रम से नर्मदा उत्पन्न हुईं।
3. वामन पुराण में नर्मदा की महिमा
नर्मदा स्वर्गसोपाना पातालस्य च संश्रया।
स्नानदानादि कर्तव्यं यः करोति स मुक्तिभाक्॥
अर्थ: नर्मदा स्वर्ग तक पहुँचने का मार्ग है और पाताल तक भी इसका प्रभाव रहता है। जो भी इसमें स्नान, दान, और उपासना करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. नर्मदा अष्टकम् (आदि शंकराचार्य द्वारा रचित)
त्वयि दत्तमनः पुण्ये नर्मदे भगवति स्रुते।
सर्वपापहरे देवि पुनाति जलकणः स्वयम्॥
अर्थ: हे पवित्र नर्मदा! जो व्यक्ति अपना मन तुम्हारे प्रति समर्पित करता है, वह पुण्य प्राप्त करता है। तुम्हारा एक-एक जलकण स्वयं पापों को हरने में सक्षम है।
5. महाभारत में नर्मदा का वर्णन
तत्र स्नात्वा नरः सिद्धिं प्राप्नुयात् पापनाशिनीम्।
नर्मदा तटसंवासात् मुक्तिर्यस्य न संशयः॥
अर्थ: जो मनुष्य नर्मदा के पवित्र जल में स्नान करता है, वह पापों से मुक्त हो जाता है। नर्मदा के तट पर रहने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसमें कोई संदेह नहीं।
लोककथाओं में नर्मदा
नर्मदा नदी को लेकर कई लोक कथायें प्रचलित हैं एक कहानी के अनुसार नर्मदा जिसे रेवा के नाम से भी जाना जाता है और राजा मैखल की पुत्री है। उन्होंने नर्मदा से शादी के लिए घोषणा की कि जो राजकुमार गुलबकावली के फूल उनकी बेटी के लिए लाएगा, उसके साथ नर्मदा का विवाह होगा। सोनभद्र यह फूल ले आए और उनका विवाह तय हो गया। दोनों की शादी में कुछ दिनों का समय था। नर्मदा सोनभद्र से कभी मिली नहीं थीं। उन्होंने अपनी दासी जुहिला के हाथों सोनभद्र के लिए एक संदेश भेजा। जुहिला ने नर्मदा से राजकुमारी के वस्त्र और आभूषण मांगे और उसे पहनकर वह सोनभद्र से मिलने चली गईं। सोनभद्र ने जुहिला को ही राजकुमारी समझ लिया। जुहिला की नियत भी डगमगा गई और वह सोनभद्र का प्रणय निवेदन ठुकरा नहीं पाई। काफी समय बीता, जुहिला नहीं आई, तो नर्मदा का सब्र का बांध टूट गया। वह खुद सोनभद्र से मिलने चल पड़ीं। वहां जाकर देखा तो जुहिला और सोनभद्र को एक साथ पाया। इससे नाराज होकर वह उल्टी दिशा में चल पड़ीं। उसके बाद से नर्मदा बंगाल सागर की बजाय अरब सागर में जाकर मिल गईं। इस तरह नर का मान मर्दन करने के कारण इस दिन से रेवा नर्मदा कहलाई।
एक अन्य लोकथा के अनुसार सोनभद्र नदी को नद (नदी का पुरुष रूप) कहा जाता है। दोनों के घर पास थे। अमरकंटक की पहाडिय़ों में दोनों का बचपन बीता। दोनों किशोर हुए तो लगाव और बढ़ा। दोनों ने साथ जीने की कसमें खाई, लेकिन अचानक दोनों के जीवन में जुहिला आ गई। जुहिला नर्मदा की सखी थी। सोनभद्र जुहिला के प्रेम में पड़ गया। नर्मदा को यह पता चला तो उन्होंने सोनभद्र को समझाने की कोशिश की, लेकिन सोनभद्र नहीं माना। इससे नाराज होकर नर्मदा दूसरी दिशा में चल पड़ी और हमेशा कुंवारी रहने की कसम खाई। कहा जाता है कि इसीलिए सभी प्रमुख नदियां बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं,लेकिन नर्मदा अरब सागर में मिलती है।
नर्मदा परिक्रमा
नर्मदा नदी को ‘जीवित नदी’ के रूप में पूजा जाता है और इसे मातृ रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। इस नदी के तट पर अनेक धार्मिक स्थल स्थित हैं, जैसे ओंकारेश्वर, महेश्वर, अमरकंटक, मांडू, और होशंगाबाद। ओंकारेश्वर में स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के धार्मिक महत्व को और भी बढ़ाता है।
नर्मदा परिक्रमा का विशेष धार्मिक महत्व है। यह परिक्रमा लगभग 2600 किलोमीटर लंबी होती है, जिसमें श्रद्धालु नर्मदा के दोनों किनारों पर पैदल यात्रा करते हैं। परिक्रमा की इस कठिन यात्रा को आध्यात्मिक साधना और आत्मशुद्धि का माध्यम माना जाता है। यह परिक्रमा व्यक्ति के भीतर धैर्य, श्रद्धा, और समर्पण की भावना को जागृत करती है। नर्मदा नदी के तट पर अनेक साधु-संत और तपस्वी अपनी साधना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि नर्मदा के किनारे ध्यान और तपस्या करने से साधक को शीघ्र ही सिद्धि प्राप्त होती है। यही कारण है कि नर्मदा तट पर अनेक आश्रम और तपोभूमियाँ स्थापित हैं।
नर्मदा जयंती के अवसर पर नर्मदा तट पर भव्य धार्मिक आयोजन होते हैं। विशेष रूप से अमरकंटक, ओंकारेश्वर, और महेश्वर जैसे स्थानों पर विशाल मेले और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। श्रद्धालु नर्मदा स्नान, दीपदान, और विशेष पूजा-पाठ करते हैं। इस दिन भक्तजन अपने परिवार के साथ नर्मदा तट पर एकत्र होकर भक्ति गीत, कीर्तन, और हवन जैसे धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। नर्मदा जयंती पर विशेष रूप से नर्मदा आरती का आयोजन किया जाता है, जिसमें सैकड़ों दीप जलाकर नर्मदा माता की आराधना की जाती है। यह दृश्य अत्यंत मनमोहक और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण होता है।
पर्यावरणीय और सांस्कृतिक महत्व
नर्मदा नदी न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका पर्यावरणीय और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है। यह नदी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, और गुजरात के विशाल क्षेत्रों को जीवनदायिनी जल प्रदान करती है। नर्मदा के तट पर पनपने वाली सांस्कृतिक धरोहरें, स्थापत्य कला, और जनजातीय परंपराएँ इस क्षेत्र की विविधता और समृद्धि को दर्शाती हैं। नर्मदा नदी का जल जीवन के विभिन्न रूपों के लिए आवश्यक है और इसके संरक्षण की आवश्यकता अत्यधिक महत्वपूर्ण है। नर्मदा जयंती का पर्व हमें इस नदी के प्रति हमारे उत्तरदायित्व की भी याद दिलाता है। यह पर्व नर्मदा के संरक्षण, स्वच्छता, और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने के संकल्प का प्रतीक भी है।
जैव विविधता संरक्षण में नर्मदा नदी की भूमिका
नर्मदा नदी न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जैव विविधता के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नर्मदा का जल क्षेत्र अनेक प्रकार के जलीय जीवों, मछलियों, और जल पौधों का आवास है। इस नदी में पाई जाने वाली प्रजातियों में से कई अद्वितीय और विलुप्ति के कगार पर हैं, जिनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।
नर्मदा नदी के तटीय क्षेत्रों में विविध प्रकार की वनस्पतियाँ और वन्यजीव पाए जाते हैं, जो इस क्षेत्र की पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाए रखने में सहायक हैं। नर्मदा के जलग्रहण क्षेत्र में पाए जाने वाले जैविक विविधता के कारण यह क्षेत्र अनुसंधान और अध्ययन के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, नर्मदा नदी के स्वच्छ और प्रवाही जल से न केवल जलीय जीवन को पोषण मिलता है, बल्कि यह आसपास के कृषि और वन क्षेत्रों के लिए भी जीवनदायिनी सिद्ध होती है। नर्मदा के जल को संरक्षित रखना न केवल पर्यावरणीय संतुलन के लिए आवश्यक है, बल्कि यह जैव विविधता के संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है।
नर्मदा जयंती एक ऐसा पर्व है जो श्रद्धा, भक्ति, और पर्यावरणीय जागरूकता का अद्भुत संगम है। यह पर्व न केवल नर्मदा माता के प्रति सम्मान प्रकट करने का अवसर है, बल्कि हमारे भीतर आध्यात्मिकता और प्रकृति के प्रति प्रेम को भी जागृत करता है। नर्मदा नदी की पवित्रता, महिमा, और महत्व को समझते हुए हमें इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। नर्मदा माता के आशीर्वाद से हम सभी के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि बनी रहे।