आहोम साम्राज्य की अनूठी स्थापत्य कला और परंपरा मोइदम
मोइदम (Moidams) असम राज्य के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर हैं। ये मोइदम ताई-अहोम राजाओं और उनके प्रमुख व्यक्तियों के मकबरे या समाधि हैं, जिन्हें उनके निधन के बाद निर्माण कराया गया था। मोइदम ताई-अहोम साम्राज्य की अनूठी स्थापत्य कला और परंपराओं का प्रतीक माने जाते हैं, और इन्हें असम की ऐतिहासिक नगरी चाराईदेव (Charaideo) में मुख्य रूप से पाया जाता है, जो वर्तमान में असम के शिवसागर जिले में स्थित है। ताई – अहोम राजवंश के सदस्य इसका इस्तेमाल शवों को दफनाने के लिए करते थे। शवों के साथ उनकी प्रिय वस्तुओं को भी इस टीलेनुमा संरचना में दफनाया जाता था।
मोइदम का निर्माण:
मोइदम की स्थापना चाओ लुंग सिउ-का- फा ने 1253 में की थी। इस मोइदाम के भीतर 90 संरचनाएं हैं, जो ऊंची भूमि पर स्थित हैं। इसका क्षेत्रफल 95.02 हेक्टेयर है और इसका बफर जोन 754.511 हेक्टेयर है। इन्हें ईंट, पत्थर या मिट्टी से खोखले टीले जैसा बनाया जाता था और सबसे ऊपर एक मंदिरनुमा आकृति होती है। इन समाधियों का निर्माण मुख्य रूप से राजाओं और उनके प्रमुख दरबारियों के अंतिम विश्राम स्थल के रूप में किया गया था।
चाराईदेव को ताई- अहोम साम्राज्य का आधिकारिक पवित्र स्थल माना जाता है, और यहीं पर प्रमुख मोइदम स्थित हैं। इन्हें अक्सर पिरामिड-शैली में बनाया जाता था, जिसमें गोल या अर्ध-गोलाकार मीनारें होती थीं, जो उनकी स्थापत्य शैली को दर्शाती थीं।
उपयोग और महत्व:
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व: मोइदम को सिर्फ समाधि के रूप में नहीं बल्कि धार्मिक महत्व के केंद्र के रूप में भी देखा जाता था। यह स्थल अहोम समुदाय के लिए पूजा और अनुष्ठान का स्थान था।
राजाओं की स्मृति: मोइदम का निर्माण मुख्य रूप से अहोम राजाओं की याद में किया गया था, जो यह दर्शाता है कि अहोम समाज में अपने शासकों के प्रति आदर और श्रद्धा की परंपरा थी।
आध्यात्मिक महत्व: यह माना जाता था कि राजाओं की आत्माएं इन मोइदमों में वास करती हैं, और उनके पूर्वजों की आत्माओं को सम्मानित करने के लिए यहाँ पूजा और बलिदान किया जाता था।
स्थापत्य विशेषताएँ:
मोइदम एक विशेष प्रकार की भूमिगत संरचना होती थी, जिसमें लकड़ी और मिट्टी का उपयोग करके घुमावदार गुंबद का निर्माण होता था। इनके ऊपर एक ऊंची मीनार होती थी, जो इन्हें खास पहचान देती है। ये मीनारें आकाश की ओर इंगित करती थीं, जो शायद आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक मानी जाती थीं।
युनेस्को की धरोहर सूची में सम्मिलित
असम सरकार और भारत सरकार के संयुक्त प्रयासों से मोइदम आज यूनेस्को की सूची में पूर्वोत्तर की पहली सांस्कृतिक धरोहर बन गये हैं। यह निर्णय भारत में आयोजित किए जा रहे विश्व धरोहर समिति (डब्ल्यूएचसी) के 46वें सत्र में लिया गया। इसे वर्ष 2023-24 के लिए यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल करने के लिए भारत के नामांकन के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
इसे युनेस्को की सूची में सम्मिलित होने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह भारत के लिए बेहद खुशी और गर्व की बात है कि मोइदम ने विश्व धरोहर सूची में जगह बनाई है। चराईदेव में ‘मोइदम’ गौरवशाली आहोम संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं, जो पूर्वजों के प्रति अत्यधिक श्रद्धा रखती है। मुझे आशा है कि लोग महान आहोम शासन और संस्कृति के बारे में सीखेंगे। यह दिन स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया।