भावनाओं का प्रभाव और महत्व : मनकही
भावनाएँ जीवन का सार हैं। यदि भावनाएँ न होतीं, तो जीवन के कार्यों में न तो उत्साह होता और न ही कोई उद्देश्य। सुख और दुःख का अनुभव हृदय में उत्पन्न होता है, और यह अनुभव ही हमें संवेदनशील बनाता है। हमारी भावनाएँ परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती हैं। जीवन के विभिन्न पहलुओं में विभिन्न भावनाओं का योगदान होता है, जैसे वत्सलता का भाव शिशु के प्रति होता है और भक्ति का भाव ईश्वर के प्रति।
भावनाएँ मनुष्य के कार्यों की प्रेरणा होती हैं। दया, प्रेम, क्षमा, त्याग, ईर्ष्या, और परोपकार जैसे गुण इन्हीं भावनाओं से प्रेरित होते हैं। इन भावनाओं का प्रभाव ऐसा है कि कोई भी व्यक्ति इससे अछूता नहीं रहता। व्यक्ति की भावनाएँ, चाहे अच्छी हों या बुरी, उसके कार्यों और उनके परिणामों को निर्धारित करती हैं। अच्छी भावनाओं से किए गए कार्य न केवल स्वयं के लिए, बल्कि समाज के लिए भी कल्याणकारी होते हैं। वहीं, बुरी भावनाएँ विनाश और हानि का कारण बनती हैं।
शुद्ध और निश्छल भावनाएँ व्यक्ति को पवित्रता की ओर ले जाती हैं। दया, प्रेम, क्षमा, और परोपकार जैसे गुण व्यक्ति को सच्चा और ईमानदार बनाते हैं। ऐसे व्यक्ति सदैव सद्कार्यों की ओर प्रेरित होते हैं और समाज का कल्याण करते हैं। दूसरी ओर, कपट, ईर्ष्या, और झूठ जैसी भावनाएँ व्यक्ति को अधर्म और अनैतिकता की ओर ले जाती हैं। ऐसे व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं।
सामाजिक व्यवस्था में भी भावनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। समाज में विभिन्न प्रकार के लोग रहते हैं, जिनकी भावनाएँ उनके विचारों और कार्यों में झलकती हैं। किसी के विचार और आचरण उसकी भावनाओं के अनुरूप होते हैं। इसीलिए कहा गया है—
“जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।”
अर्थात, व्यक्ति अपने मन के भावों के अनुसार ही हर वस्तु को देखता और अनुभव करता है।
भावनाएँ जीवन का आधार हैं और इनका प्रवाह निरंतर चलता रहता है। जिस भावना के साथ व्यक्ति कार्य करता है, उसका परिणाम भी उसी के अनुरूप होता है। अतः यह आवश्यक है कि हमारी भावनाएँ शुद्ध और सकारात्मक हों। शुद्ध भावनाएँ न केवल व्यक्तिगत जीवन में, बल्कि सामाजिक जीवन में भी शांति और समृद्धि का कारण बनती हैं। मानवता के मूल गुणों—दया, प्रेम, क्षमा, और त्याग को अपनाकर व्यक्ति अपने जीवन को उच्चतर स्तर पर ले जा सकता है।
शुद्ध भावनाओं से प्रेरित कार्य समाज और व्यक्ति दोनों के लिए हितकारी होते हैं। जीवन को सार्थक और सुखमय बनाने के लिए हमें अपनी भावनाओं को शुद्ध और सकारात्मक रखना चाहिए।
रेखा पाण्डेय (लिपि)
व्याख्याता एवं साहित्यकार
अम्बिकापुर, सरगुजा
बहुत सुंदर भावनात्मक अभिव्यक्ति
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